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________________ सरस्वती के परम उपासक ग्रन्थ अकादमी की स्थापना की तथा उसकी योजना एवं का एक बार ही नहीं, कितनी ही बार दौरा किया तथा नियम जब साह जी को भेजे और उनसे संस्था का संरक्षक गरीब से लेकर अमीर तक जन सेवा के भाव-भरे, वह सब बनने के लिये निवेदन किया तो उन्होंने साहित्य प्रकाशन उनके महान् व्यक्तित्व का परिचायक है। जयपुर में प्रायोकी योजना की प्रशंसा करते हए तत्काल उसका संरक्षक जित एक सभा मे वे इतने द्रवीभूत हो गये कि सारी सभा बनना स्वीकार कर लिया। इसलिये पता नही उन्होंने के ही प्रांसू बह निकले थे। कितनी प्रकाशन संस्थानों को जैन साहित्य के प्रचार प्रसार मे योग दिया। साहू जी पुरातत्व के प्रेमी थे। प्राचीन मन्दिरों के जैन साहित्य एवं जैन समाज की सेवा के लिये उनके जीर्णोद्धार में उन्होंने विशेष रुचि ली। दक्षिण भारत हृदय में गहरे भाव थे। भगवान महावीर के 25002 एवं बुदेलखण्ड के कितने ही मन्दिरो का उन्होने जीर्णोद्धार करवा कर मन्दिरों को कला एवं सम्पत्ति को नष्ट होने निर्वाण महोत्सव का जिस कुशलता एवं सजगता से बचा लिया। मे संचालन किया तथा समस्त जैन समाज को एकसूत्र मे बांधने का जो प्रशसनीय कार्य किया वह साहजी जैसे साहू जी के कार्यों का वर्णन करने के लिये किसी एक व्यक्ति से ही सम्भव था और वह सब उनके वर्षों को बड़े ग्रन्थ की प्रावश्यकता है जिसमें उनके जन्म से लेकर साधना का फल था । स्वास्थ्य खराब होने एवं धर्मपत्नी मृत्यु पर्यत उसके व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर सागोपाग श्रीमती रमा जी का वियोग होने पर भी उन्होने जिस वर्णन रहे। तभी जाकर हम उनके पूरे कार्यों से समाज असाधारण साहस एवं सूझबूझ से काम लिया, सारे देश को एवं प्रागे पाने वाली पीढ़ी को परिचित करा सकेंगे। D00 (पृष्ठ ४९ का शेषाश) पदों का दायित्व तन्मयता से सम्भाला । निर्वाण महोत्सव किया। अन्तिम क्षणो मे साह जी के परिणाम इतने निर्मल के बहुमुखी कार्यक्रमों को मापने चिन्तन, उत्साहपूर्ण हो गये थे कि उन्होने अपने पुत्र श्री अशोक कुमार जैन से नेतृत्व और मुखर श्रद्धा के प्रत्यक्ष प्रभाव से उपलब्धियों इच्छा व्यक्त की थी कि वे स्वस्थ होने के उपरान्त का जो वरदान दिया, वह जैन समाज के इतिहास मे हस्तिनापुर मे मुनिश्री शान्ति सागर जी महाराज के प्रबिस्मरणीय रहेगा। निर्देशन मे शेष जीवन व्यतीत करेंगे। महाराजश्री जब दिगम्बर जैन समाज की उत्कट प्राकांक्षा के अनुरूप जैसी दीक्षा उचित समझेगे दे देगे। प्राज उनके वे शब्द प्रापने अखिल भारतीय स्तर पर दिगम्बर जैन समाज के हम फिर सुनने के लिए कितने प्रातुर है । हमे चाहिए कि एक मंच ‘दिगम्बर जैन महासमिति' के गठन का निर्णय हम उनकी इस पुण्य तिथि को साकार करने के लिये, कर दिगम्बर जैन महासमिति की स्थापना की। उसके उनके द्वारा निर्देशित कार्यक्रम को पूग व रने के लिये संस्थापक अध्यक्ष का दायित्व वहन किया तथा पगपग पर दिगम्बर जैन सहासमिति को संगठित रूप दे, उसे सब समाज का मार्ग दर्शन किया। प्रकार से समर्थ मौर क्रियाशील बनाये । समाज ने अपनी श्रद्धा स्वरूप प्रापको 'दानवीर" एफ 94, जवाहर पार्क वेस्ट तथा "श्रावकशिरोमणि'' की उपाधियो से सम्मानित लक्ष्मीनगर, दिल्ली-110092 DDD
SR No.538031
Book TitleAnekant 1978 Book 31 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1978
Total Pages223
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size12 MB
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