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________________ उन्हें श्रमण-दीक्षा की प्राकांक्षा थी! भी गणेश ललवानी साह शान्ति प्रसादजी के नाम से हम सभी म्यूनाधिक सिद्धान्त ग्रहण करना इसकी सहमा प्रतिभा भी उनमें रुप में परिचित हैं। उनके निधन से भारत ने अपना एक थी। पतः उनमा व्यवसायी वर्ग में प्रमुख बनना सा. ख्यातिमान उद्योगपति ही नही खोया, खो दिया एक भाविक ही था। जिस प्रकार वे 'फेडरेशन प्रामाण्डियन सहृदय साहित्य एवं कलाप्रेमी को भी। भारतीय वाङ्मय चेम्बर प्राफ कामर्स' जैसी उच्च सस्थानों के अध्यक्ष बने के क्षेत्र में यह क्षति सहज ही पूर्ण होने वाली नहीं, क्योंकि गए, उपी प्रकार उनके द्वाग सम्मानित भी हए । वह भी भारतीय ज्ञानपीठ की प्रतिष्ठा से लेकर पाज तक, मर्थात् एक बार नहीं अनेक बार । देश की प्रौद्योगिक प्रगति को १९४४ से अब तक, साहजी ने भारतीय साहित्य पोर कार्यान्वित करने के लिए स्वर्गीय प. जवाहरलालजी ने सस्कृति के विकास, प्रचार व प्रसारण में जो सहयोग दिया जिस प्रथम राष्ट्रीय समिति का गठन किया, उसमें देश के वह अनायास ही दृष्टिगत नहीं होता। तरुण प्रौद्योगिक वर्ग का प्रतिनिधित्व करने के लिए साह जी को ही चुना था। गत ४५ वर्षों से वे जिन उद्योंगो से उत्तर प्रदेश के अन्तर्गत नजीबाबाद के प्रख्यात् साहू सम्बन्धित थे, वे थे कागज, चीनी, सिमेट, बनस्पति, ऐम. परिवार में उनका जन्म हवा । उनके पिता का नाम बेस्टस, पाट निर्मित वस्तुए", भारी रसायन, नाइट्रोजन दीवानचन्द व मातुश्री का मूर्तिदेवी था। उनकी प्राथमिक खाद, पावर मल्कोहल, प्लाईबोर्ड, सायकिल कोयले की शिक्षा नजीबाबाद में ही हुई । तदुपरान्त काशी विश्व खाने, लाइट-रेलवे प्रादि के साथ साथ हिन्दी, अग्रेजी, विद्यालय एव अन्तत. पागरा विश्वविद्यालय में । यहाँ से मराठी. गजराती के दैनिक पत्र एवं पत्रिकाएं। उन्होंने प्रथम श्रेणी मे बो. एस.सी. की परीक्षा उत्तीर्ण को। इसी शताब्दी के तीसरे दशक में उन्होंने उद्योग एव यह एक पहल थी साहनी के व्यक्तित्व की; पोर व्यवसाय के क्षेत्र में प्रवेश किया एव सतत मध्यवसाय, दुमरी पहल जिमने उन्हें हमारे सन्निकट कर दिया, यह परिश्रम पोर लगन के बल पर थोड़े ही दिनों में महतो थी भारतीय साहित्य एव सस्कृति के प्रति सहज प्रान्तरिक सफलता भी अजित की। इस क्षेत्र में वे परम्परागत प्रथा अनुराग की । इसी पनुराग ने उन्हें भारतीय ज्ञानपीठ की अनुसरण के पक्षपाती नही थे। वे थे विभिन्न पाश्चात्य स्थापना के लिये उरित किया था । अवश्य ही इस देश व्यवसाय संचालन पद्धति मे, जो दिन प्रतिदिन नए- कार्य में उन्हें पानी सह मिमी रमाजी का पूर्ण सहयोग नए प्रयोग कर रहे थे, उसके मूल्याकन एवं प्रयोग के पक्ष- प्राप्त था। (खेद है कि रमात्री भी पान इस धरती पर नही पाती । प्रत उन्होने पाधुनिक प्रयोग पद्धति के विषय में रहीं। उनका देहान्त भी २२ जनाई, १९७५ को हो विभिन्न ग्रन्थों का अध्ययन ही नहीं किया, बल्कि पूर्ण गया) प्राज १९४४ को १८ फरवरी का वह दिन याद जानकारी के लिए पश्चिम यूरोप के अतिरिक्त सोवियत पा रहा है जिस दिन वाराणसी में पाल इण्डिया पोरियूनियन, उच वेष्ट इण्डीज एव प्रास्ट्रेलिया प्रादि देशों यन्टल कान्फ न्स के अधिवेशन में साहूजी ने ज्ञानपीठ के उद्योगक्षेत्रों का निरीक्षण भी किया। विज्ञान के छात्र प्रतिष्ठा को उबोषणाको शी। इस कार्य के लिए उन्हें होते हुए भी उन्होंने अर्थशास्त्र के माधुनिकतम सिद्धान्तों जिन्होने प्रेरणा दी थे मुनि जिनविजयजी, पं० सुखका अध्ययन किया। तथ्य संग्रह में भी उनकी विशेष लालजी, डा.हीरालालजी बा. उपाध्ये । उन लोगों का अभिरुचि थी। साथ ही कौन-सी स्थिति में कौन-सा लक्ष्य का प्राय पिता की उपेशिन शाबा जन विद्या को
SR No.538031
Book TitleAnekant 1978 Book 31 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1978
Total Pages223
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size12 MB
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