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________________ महान कर्मयोगी की जीवन-साधना D० परमानन्द शास्त्री, बिल्ली साह शान्ति प्रसाद जी का जन्म नजीबाबाद के प्रति की पोर उनमा पाकर्षण था। ष्ठिन साहू पाने मे सन् १९१२ में हुपा था। इनके शान्ति प्रसाद का विवाह डालमिया की यपुत्री रमा पितामह का नाम साहू सलेकचन्द और पिता का नाम जी के गाय सम्पन्न हपा । रमारानी विदुषी, कर्तव्यारादीवानचन्द था और माता का नाम मूति देवी य । यण, व्यवहार मे चतूर पौर परोपकारनिरत महिला घों। साह सलेकचन्द अपने समय के श्रीसम्पन्न और प्रतिष्ठित वेसाह जी के कामों में प्राना सहयोग प्रदान करती थी। व्यक्तित्व वाले पुरुष थे। उनके यश और कीति को अच्छो भारतीय ज्ञानपीठ को स्थापवा काल सन् १९४४ से ही वे ख्याति थी । एक बार जो उनके सम्पर्क में प्रा गया, वह उसकी अध्यक्ष थी। उन्होंने अपने अन्तिम समय तक उन से प्रभावित हए बिना नहीं रहा । पिता दीवान चन्द । अपना मातृस्नेह दिया और अपनी प्रेरणा से उसे इस सौम्य प्रकृति और शालीन स्वभाव के थे। समाज में योग्य बनाया जिसमे कि वह स्थायी साम जिक-सास्कृतिक उनकी प्रतिष्ठा और सम्मान था और माता श्रीमती महत्व के कार्यदायित्वों को उठा सके। इन दायित्वों के मूति देवी प्रत्यन्त सरल स्वभावी और धार्मिक प्रकृति की अन्तर्गत जहां एक पोर भारतीय विचार-दर्शन की उपे. महिला थीं। वे ऐमी सहृदया और लक्ष्मी स्वरूर थीकि क्षित निधियों का अनुसंधान, प्रकाशन पोर पाषुनिक भार. उन्होंने दूसरों की चिन्ता को भी अपनी बना लिया था। तीय भाषानों में मौलिक साहित्य सृजन के कार्य हैं। वहीं वे एक सुयोग्य माता थी । उन्होंने शान्ति प्रसाद को योग्य दमरी मोर भारतीय भाषामों की सर्वोत्कृष्ट कृति पर एक बनने के सभी साधन सुलभ कर दिए ताकि भविष्य मे वे लाख रुपये की पुरस्कार योजना, तथा प्राचीन स्थापत्य एवं सफ्नी चिन्तामों को स्वयं वहन कर सकें। कलानी की सयोजना भी है। शान्ति प्रसाद जैन की प्रारम्भिक शिक्षा नजीबाबाद साह जी मे मोद्योगिक कार्यों को सम्पन्न करने की में हुई। तत्पश्चात् उन्होंने बनारस विश्वविद्यालय और बहन बड़ी रुचि और क्षमता थी। बुद्धि कुशाग्र थो, प्रत. प्रागरा विश्वविद्यालय में अध्ययन किया । इन महा- एवं उन्होने उद्योगों और व्यवसायों के सम्बन्ध मे अपनी विद्यालयो में उनका समूचा विद्यार्थी जीवन प्रथम श्रेणी गवेषणा और प्रध्ययन शुरू कर दिया। देश के उद्योगका रहा । साहू शांति प्रमाद ने मात्र ज्ञानार्जन की दृष्टि व्यवमायों मे अभिवृद्धि पोर संचालन प्रणाली मे नये में से ही प्रध्ययन नहीं किया, प्रत्युत अन्य दृष्टियों से भी। नये प्राविधिक रु का समावेश हो सके, इसके लिए उनमे वे वे सभी गुण और सद्वत्तियां थी, जो माता-पिता उन्होंने उन पद्धतियो का गंभीर अध्ययन किया तथा और अपने पूर्व पुरुषों के रूप में उन्हें प्राप्त हुई थी। विविध क्षेत्रो में मवेषणायें पराई। साहू जी ने अपने उहउन्होंने प्रागरा विश्वविद्यालय से बी. एस.सी. की परीक्षा इयों की पू को दृष्टि-ला में रखते हुए प्राव. 'प्रथम श्रेणी में पास की। उनका विद्यार्थी जीवन प्राने श्यकता के अनुरूप महत्वपूर्ण स्थानो मे स्वय परिभ्रपण सहपाठियों से कुछ भिन्न था, हृदय कामन और प्रकृति किया । सबम पहले सन् १९३६ मडच ईस्ट इण्डीज गए। उदार थी। क्षयोपशम विशिष्ट था, अतएव जो भी सन १९८५ मे प्रास्ट्रेलिया तथा सन् १९५४ मे सोवियत मध्ययन किया, उसमे उनकी योग्यता की झलक स्पष्ट रूस गए। य तीनी यात्राए उन्होन भारतीय प्रौद्यागि दिखाई देती थी। मध्ययनकाल में उद्योग और व्यवसाय प्रतिनिधि के रूप में की थी, जो परिणाम को दृष्टि से
SR No.538031
Book TitleAnekant 1978 Book 31 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1978
Total Pages223
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size12 MB
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