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________________ सम्पादकीय शित होता है। मरते समय अपनी शेष निजी सम्पत्ति के उपकार को विस्मृत कर देना समाज की कृतघ्नता को का भी मुख्तार साहब एक ट्रस्ट -वीर-सेवा-मदिर-ट्रस्ट परिचायक कहा जाय तो क्या अनुचित है ? इम उपेक्षा बना गये थे । उससे भी गत ८-१० वर्षों में कई पुस्तके का एक परिणाम तो यह होता है कि हमारी वर्तमान प्रकाशित हुई है। तथा भावी पीढ़ियां अपने निकट प्रतीत के इतिहास से भी अनभिज्ञ रह जाती है। दूसरे, वे उन यशस्वी पूर्वमहान् पाश्चर्य और खेद का विषय तो यह है कि पुरुषों के कार्यकलापों से उपयुक्त प्रेरणा एवं मार्गदर्शन उस सुदीर्घकालीन साहित्यक तपस्थी और अनवरत ममाज प्राप्त करने से भी वचित रह जाती है। सेवी को हम इतनी जल्दी भूल गए । उनके द्वारा सस्थापित तथा उनके नाम से सम्बद्ध एक सुसमृद्ध मस्था, स्व० आचार्य ५० जुगलकिशोर मुख्तार 'युगवीर' एक सुसम्पन्न ट्रस्ट और एक सता उद्बद्ध गोव-पत्रिका की जन्म शताब्दी के उपलक्ष्य में समाज पर उनका जो भी विद्यमान है, जो उनकी जीवन व्यापी माधना के ऋण है उगका स्मरण करते हुए उनके प्रति हम उज्ज्वल प्रतीक एक सच्चे स्मारक है जिनके कारण समाज विनम्र श्रद्धाजलि अर्पित करते है। उनकी चिरऋणी रहेगा । इस वर्ष हम उनकी जन्म शताब्दी मना रहे है। किन्तु ऐसा लगता है कि इतने अल्प समय कछ ममा पूर्व 'भनेवान्त' परिवार ने यह निर्णय मे ही समाज ने उन्हें विमृन पर दिया है । बनके उ गा था कि इस अवसर पर अनेकान्त का एक प्राय: समकालीनो या सहयोगियों में से प. पनालान उपयुक्त विशेपास थद्धेय मुग्नार साहब की स्मृति में बाकलीवाल, वा० सूरजभान वीत, कुमार देवेन्द्र प्रसाद, जिनाला जाय। वतिपय अनिवार्य कारणों से हम बैरिस्टर जगमन्दरलाल जैनी, बरिस्टर चम्पतराय, ५० गमयोचित कार्य में कुछ विनम्ब हो गया जिसका हमे नाथूराम प्रेमी, बशीतलप्रसाद प्रभूति प्रायः सभी जैन बंद है। प्रसन्नता की बात है कि उनके प्रति प्राशिक जागरण के प्रपनेतामो को हम भुला चुके है। इन महानु- तज्ञताज्ञापन-स्वरूप हम यह "श्रो 'युगवीर' जन्म शताब्दी भावो ने समाज की महती सेवाएं की थी। कई एक के ता अक" प्रस्तुत कर रहे है। निजकी सम्पत्ति से स्थापित ट्रस्ट भी है। इन उपकर्तामा -ज्योतिप्रसाद जैन अनेकान्त का साहू शान्तिप्रसाद जैन स्मृति-अंक जून, १९७८ में प्रकाश्य, 'अनेकान्त' का आगामी अंक 'साहू शान्तिप्रसाद जैन स्मृति-अंक' होगा। दो खण्डी में विभक्त, इस अक के प्रथम खण्ड में 'साह जी' के गौरवशाली व्यक्तित्व के विविध पक्षों एवं उनके परमार्थमय जीवन और अन्य कल्याण-कार्यो विषयक लेखादि तथा द्वितीय खण्ड में जन साहित्य, संस्कृति एव इतिहास पर मालिक गवेपणापूर्ण सामग्री सम्मिलित होगी। 'अनेकान्त' के वर्ष ३१ की किरण १ और २ इसी अंक में समाहित होंगी। सभी सम्मान्य विद्वानों, मनीषियों, लेखकों एवं सुविज्ञ पाठकों से सानुरोध निवेदन है कि इस अंक के लिए कृपया शीघ्रातिशीघ्र अपने लेख, सस्मरण, पत्र, चित्र प्रादि भेजकर अनुगहीत करें। --गोकुल प्रसाद जैन, सम्पादक
SR No.538030
Book TitleAnekant 1977 Book 30 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1977
Total Pages189
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size10 MB
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