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मोम् प्रहम
परमागमस्य बीज निषिद्धजात्यन्धसिन्धरविधानम् । सकलनयविलसितानां विरोधमथनं नमाम्यनेकान्तम् ।।
वर्ष ३० किरण २
वीर-सेवा-मन्दिर, २१ दरियागंज, नई दिल्ली-२
वीर-निर्वाण सवन् २५०३, वि० स० २०३३
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अप्रेल-जन १९७७
पंच परमेष्ठियों का स्वरूप
ग्रहन्त स्वरूप घण-घाइकम्म-रहिया केवलणाणाइ-परमगुण-सहिया।
चोत्तिस-अविसन-जुत्ता अरिहंता एरिसा होति ॥ नियमसार, ७१ ॥ घन-घातिकर्म से रहित, केवलज्ञानादि परम गुणो से सहित और चौतीस अतिशयों से युक्त अर्हन्त होते हैं।
सिद्ध का स्वरूप णट्र-कम्मबंधा प्रद-महागुण-समणिया परमा।
लोयग-ठिदा णिच्चा सिद्धा ते एरिसा होति ॥ नियमसार, ७२॥ जिन्होंने पाठ कर्मों के बन्ध को नष्ट कर दिया है, जो पाठ महागुणों से संयुक्त, परम, लोक के अग्रभाग में स्थित और नित्य है, वे सिद्ध है।।
प्राचार्य का स्वरूप पंचाचार-समग्गा पंचिदिय-दंति-दप्प-णिद्दलणा।
धीरा गुण-गंभारा पायरिया एरिसा होति ।। नियमसार, ७३ ।। जो ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप, वीर्य इन पत्र प्राचारो से परिपूर्ण, पाँच इन्द्रियरूपी हाथी के मद को दलने वाले, धीर और गण-गम्भीर हैं, वे प्राचार्य है।
उपाध्याय का स्वरूप रयणत्तय-संजत्ता जिण-कहिय-पयत्थ-देसया सूरा।
णिक्कंखभाव-सहिया उवज्झाया एरिसा होति ॥ नियमसार, ७४।। जो सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान र सम्यकचारित्र इन तीन रत्नो रो युक्त, जिनेन्द्र के द्वारा कहे गए पदार्थो का उपदेश करने में कुशल और ग्राकाक्षा रहित है, वे उपाध्याय हैं।
साधु का स्वरूप वावार-विप्पमुक्का चउव्विहाराणासगरत्ता।
णिग्गंथा णिम्मोहा साह एदेरिसा होति । नियमसार, ७१।। जो सभी प्रकार के व्यापार से रहित हैं, राम्यकदर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यकचारित्र और तपरून चार प्रकार की पाराधना में लीन रहते हैं. बाहरी-भीतरी परिग्रह से रहित तथा निर्मोह है, वे ही साध हैं।