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________________ जैन जागरण के प्रेरक-१ श्री पन्नालाल जैन असवाल, दिल्ली D श्री जैनेन्द्रकुमार श्री पन्नालाल जी अग्रवाल व्यक्ति नहीं, एक संस्था वर्मन, शीतलप्रसाद, श्री गणेशप्रसाद जी वर्णी, पंडित हैं। वह विशेषकर दिल्ली के जैन मांस्कृतिक इतिहास के नाथूराम जी प्रेमी, बाबू छोटेलाल जी प्रादि अनेकानेक जीते जागते कोष है। इस दिशा में उनका काम अत्यन्त जैन ऐतिहासिक पुरुषों के पत्रों की उनके पास अमूल्य मूल्यवान और श्लाघनीय है। सन् १८७७ की जैन रथ- निधि है जिनसे जैन समाज और जैन जागरण का इतियात्रा देहली का इतिहास, उन्हीं की खोज के परिणाम हास प्रत्यक्ष हो सकता है। दिल्ली के लाल किले में हुए स्वरूप उपलब्ध हो पाया है। देहली की जैन संस्थानों की सांस्कृतिक सम्मेलन की साहित्यिक प्रदर्शनी में जैन सूची पूरे विवरण के साय अंग्रेजी और हिन्दी दोनों भण्डारों के कुछ ममूल्य प्राचीन ग्रन्थों और चित्रों का भाषामों में अगर भाज प्राप्त है तो उन्हीं के सतत अध्यव- प्रदर्शन उन्ही के द्वारा सम्मव हुमा। दिल्ली की कई साय के कारण । इसके अतिरिक्त, उनकी एक अत्यन्त साहित्यिक, सामाजिक तथा शिक्षण संस्थाओं के माप उपयोगी कृति है 'प्रकाशित जैन साहित्य' । उसमें उन्होंने उत्साहशील कार्यकर्ता रहे हैं और अपने कर्तव्यों और जाने कहां-कहां से सूचनायें प्राप्त करके यह परिपूर्ण संक. दायित्वों का वहां पूरी परायणता से निर्वाह किया है। लन समाज को प्रदान किया है। शोधकर्तामों के लिए पाप में प्रारम प्रदर्शन का भाव एकदम नही है और 'गुणिषु यह बहुत ही काम का संग्रह है, और इसके लिए उनके प्रपोद' मापका स्वभाव बन गया है। प्रापके पसंख्य लेख, श्रम की जितनी स्तुति की जाय थोड़ी है। प्रनेकोनेक जैन नौट मादि प्रमुख जन पत्रों में प्रकाशित होते रहे है। एवं जैनेतर विद्वानों से श्री पन्नालाल जी ने निरसर अपना प्रापके सहयोग और सहायता का उल्लेख तो अनगिनत सम्पर्क रखकर नवीन रचनाओं और निर्माणों की भूमिका ग्रन्थों में मिलता है। फुटकर रूप से किये गए उनके सेवा प्रस्तुत की है। देश विदेश के विद्वानों एवं पर्यटकों को कार्यों की तो गिनती ही क्या ? उनकी सूची देने बनें तो उन्होंने यथावश्यक सामग्री सुलभ की है और यथोचित एक स्वतंत्र प्रन्थ का ही निर्माण हो सकता है। मार्गदर्शन में उनके सहायक हुए हैं। भापके सहयोग से पापका जन्म माघ शुक्ला द्वादशी संवत् १९६० को वीर सेवा मन्दिर, दिल्ली; माणिक वन्द दिगम्बर जैन प्रन्य- हमा। पिता ला० भगवानदास जी मापके जन्म के माला, बम्बई; भारतीय ज्ञानपीठ, बनारस, चवरे दिगम्बर समय नमीराबाद छावनी में थे, पर लालन पालन बचग्रन्थमाला, कारंजा; जीवराज ग्रंथमाला, शोलापुर; मद्रास पन से दिल्ली में ही होता रहा। पाप निर्लोभ, धर्म परायण विश्वविद्यालय, प्रयाग विश्वविद्यालय (हिन्दी परिषद) और परिवार मादि की मोर से सुखी एवं निश्चिन्त हैं। एवं दिगम्बर जैन पुस्तकालय, सूरत द्वारा अनेकानेक ग्रन्थ यशः कामना में प्रस्त न होने के कारण प्रापकी रचनात्मक प्रकाशित हुए हैं। उनके पास उन जैन-प्रजन, देशी-विदेशी प्रवृत्तियों में कभी बाधा नहीं पड़ सकी और अपने युवाविद्वानों, लेखकों तथा सुधारकों के सैकड़ों पर सुरक्षित हैं काल के समान प्राज भी पार साहित्य सेवा एवं साहित्य जिन्होंने पिछले पचास वर्षों में जैन समाज अथवा साहित्य सेवियों की सेवा में पूर्ववत तत्पर मोर दतवित्त बने की सेवा में अपना योग दिया है। बैरिस्टर चम्पतराय जी, हुए है। जे. एल. जनी, बाबू मूरजभान वकील, मपि शिवव्रतलाल
SR No.538030
Book TitleAnekant 1977 Book 30 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1977
Total Pages189
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size10 MB
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