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________________ नोहर जैन देवालय की प्रादिनाथ प्रतिमा उत्तर रेलवे के सादुलपुर-हनुमानगढ़ खण्ड पर श्रवरोल स्थान से ७५ किलोमीटर दक्षिण-पूर्व मे स्थित नोहर राजस्थान के गंगानगर जिले का तहसील मुख्यालय है तथा भारत के प्राचीनतम नगरों में से है । वर्तमान नगर घग्घर नदी (प्राचीन दृषद्वती ? ) के शुष्क तल पर बसा हुआ है। एक ऊंचे टीले पर बनी जलदाय विभाग, नोहर की पानी की टंकी के पास खड़े होकर देखने से पता चलता है कि यह नदी किसी समय मोहर तथा इसके दक्षिणस्थ जोगी भासन चक के बीच में से होकर बहती थी । नोहर के चारों ओर पुराने पेड़ है जो सम्भवतः नदी मे बाढ़ प्राने से तटवर्ती वस्तियों के ध्वंसावशेष है या फिर नदी के प्रवाह के इवर-उधर होने के परिणाम स्वरूप तटवर्ती नगर के नदी के साथ-साथ स्थानान्तरित होने के प्रतीक हैं। नोहर से सिन्धु सभ्यता के प्रवशेष मृद्भाण्ड, मृण्मय पश्वाकृतियां, मिट्टी और शंख के वलय-खण्ड, मृगक्षेप गले बर्ट फलकादिमित्र है जिन पर पूर्ववर्ती सोपी सस्कृति' का प्रभाव भी परिलक्षित होता है। ईसा पूर्व द्वितीय सहस्राब्दी के पूर्वा मे सम्भवतः सिन्धु सभ्यता के विनाश के उपरान्त पर्याप्त समय तक नोहर गैर-आवाद रहा । पुन ईसा से कुछ पूर्व यहां बस्ती प्रारम्भ हुई, जैसा कि १. पाषाण युग के पश्चात् सोपी सकृति भारत की प्राचीनतम पार्वतिहासिक सरकृति है जिसके अवशेष कालीबंगा मे सिन्ध सभ्यता के स्तरों के नीचे मिले हैं। विस्तृत विवरण के लिए देखें Indian Archaeology, 196061 - A Review, p. 31; 196162 p.p. 39-14, 62-63, p p. 20-31 wife 1 २. Devendra Handa, A New Type of Arjunayana Coins' Journal of the Numismatic Society of India, Vol. XXXVII. Pt i. pp. 1-5. श्री देवेन्द्र हाण्डा, सरदार शहर यहां से प्राप्त ऐतिहानिक मृद्भाण्ड-खण्डों, इण्डो-ग्रीक राजा पालोडोटस की रजत मथुरा-शासक सूर्यमित्र एवं श्रार्जुनायन जनपद की ताम्र-मुद्रानों से पता चलता है ।" यहाँ से प्राप्त कुषाण, हूण, चौहान, दिल्ली सुल्तानों, मुगलों आदि की मुद्राओं से ऐसा प्रतीत होता है कि यह बस्ती कुषाण काल मे भी बनी रही और तत्पश्चात् समय के उतार-चढ़ाव के साथ अब तक विद्यमान है । हरमन गोल्ड ने नोहर का समीकरण फारसी ग्रंथ छानामा मे उल्लिखित कानुविहार नामक स्थान से किया है। जिनपालोपाध्याय कृत खरतरगच्छ बृहद्गुर्वावलि में इसका नाम 'नवहर ग्राम' मिलता है'। 'नवहर शब्द ही कालान्तर में 'नोहर' हो गया । खरतरगच्छ - बृहद्गुर्वा बलि में 'नवहर' के उल्लेख से इसका जैन- सम्बन्ध स्पष्ट है इस सम्बन्ध की पुष्टि मोहर के जंन देवालय मे रखी पाषाण एवं धातुमी प्रतिमाम्रो से होती है। इन प्रतिमाओं मे सर्वाधिक प्राचीन एव महत्वपूर्ण है काले पत्थर की आदि तीर्थंकर ऋषभनाथ की एक सुन्दर प्रतिमा जिसका वर्णन निम्न पतियों में किया जा रहा है। २७४१६ च प्रकार की इंच इस प्रतिभा मे जिन सिंहासन पर पद्मासन में बैठे दिखाए गए हैं, जिनके सिर पर बालों के छोटे २ घूंधरों का उष्णीष है ३. ये सभी मुद्रायें नौहर के पुरातत्व प्रेमी श्री मोजी राम भारद्वाज के सौजन्य से ज्ञात हुई है । Y. Hermann Goetz, The Art and Archite cture of Bikner State, Oxford, 1950, p. 31 ५. जिनपालोपाध्यायकृत खरतरगच्छ बृहद्गुर्वावलि सं० मुनि जिनविजय, सिधी जैन ग्रन्थमाला, प्रयांक ४२, बम्बई वि० सं० २०१३ ० १६ । ६. प्रथम जैन तीर्थकर को पादिनाथ, ऋषभनाथ तथा वृषभनाथ के नाम से जाना जाता है । •
SR No.538030
Book TitleAnekant 1977 Book 30 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1977
Total Pages189
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size10 MB
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