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________________ ८०, बर्ष ३०, कि. ३-४ अनेकान्त ६. गुप्तचर घोषित किया गया है।" पाश्र्वनाथचरित में भी राजा की प्राचार्य जिनसेन ने प्रादिपुराण मे गुप्तचरों को राजा आय के साधनों में प्रजा से कर लेने का उल्लेख किया का चक्ष कहा है । चक्षु तो केवल मुख की शोभा बढ़ाते गया है।"प्रजा के अतिरिक्त विजित राजानों पर भी हैं और वस्तुओं को देखने का कार्य करते है, पर गुप्तचर कर लगाया जाता था।" रहस्यपूर्ण तथ्यों का पता लगाकर राज्यशासन को सुदृढ़ १२. न्याय प्रौर दण्डव्यवस्था बनाते हैं। इसी प्रकार, सोमदेव ने गुप्तचरों को देश- अपराधियों को दण्ड देना और सज्जनों की रक्षा विदेश का ज्ञान कराने में राजा का चक्ष कहा है। करना राजा का धर्म बताया गया है।" पाश्र्वनाथ चरित गुप्तचर विभाग हमेशा ही शामन की सुदृढ़ता और के अध्ययन से ज्ञात होता है कि अपराधियों को बण्ड न्याग की सत्यता के लिए कार्यरत रहा है। गुप्तचर प्रजा अत्यन्त कठोर और तिरस्कारपूर्वक दिया जाता था, की वास्तविक स्थिति के सम्बन्ध मे गूप्तवेश मे रहकर जिससे भविष्य में ऐसे अपराध की प्रजा पुनरावत्तिन कर जानकारी प्राप्त करते थे और इसकी मुनना गजा को क । जब तक अपराध की अच्छी तरह छानबीन नहीं देते थे। पार्श्वनाथ चरित में भी गुप्तचरी का निर्देश किया। कर ली जाती थी, तब तक अपराधी को दण्ड नही दिया गया है। कमठ के दुराचार की सुचना राजा अरविन्द को जाता था। कमठ के दुराचार का समाचार गुप्तचर एक गुप्तचर ने ही दी थी। द्वारा निवेदित करने पर मन्त्री की सलाह से राजा ने १०. राजा और प्रजा का सम्बन्ध अपराधविशेषज्ञों द्वारा पहले सत्यता की जांच कराई, तदन्तर कमठ को दण्ड दिया गया। पर स्त्री के साथ पाश्वनाथ चरित के अध्ययन से पता चलता है कि दुराचार के अपराध में कमठ को गधे पर बैठाकर नगरउस समय राजा और प्रजा के सम्बाप बडे मघर थे। निहकासन का दगड दिया गया। यद्यपि अपराधियों के प्रति बड़ी ही कठोर दण्डव्यवस्था १३. सैन्य-विभाग थी, तथापि सामान्य प्रजा के प्रनि राजा का मधुरभाव था। राजस्व के रूप मे जो धन पाता था, वह प्रजा की देश की रक्षा तथा राष्ट्रविरोधी ताकतों एव दुश्मन भलाई के कार्यों में ही खर्च किया जाता था। उस ममय दशो के दमन के लिए एक संन्य-विभाग होता था। इसका राजा ने साधनविहीन मार्गों में पानीयशालिका (Water प्रमुख अधिकारी सेनापति कहलाता था। जरूरत पड़ने hut) की व्यवस्था कर दी थी। प्रजा का दुख से उद्धार पर कभी-कभी राजा स्वय भी सेना संचालन करता था। पार्श्वनाथ वारत मे चतुर गिणी सेना-रथसेना, करना ही राजा का कार्य थ।।" प्रश्वसेना, हस्तिसेना और पैदलसेना का उल्लेख हमा है।33 ११. राजस्व इस प्रकार पार्श्वनाथ चरित में राजनीति, उसके राज्य के प्राधिक प्राय के साधना मे माज की तरह विविध अगो एव शासनव्यवस्था का वर्णन मिलता है, उस समय भी प्रजा से कर वसूल किये जाते थे। ऋग्वेद जिससे लगभग एक हजार वर्ष पूर्व की स्थिति का दर्शन मे राजा प्रजा से कर लेने का एकमात्र अधिकारी होता है। 000 २२. चक्षुश्चारो विचारश्च तस्यासोत्कार्यदर्शने । २८. ध्रुव ध्रुवेण हविषाभि सोसं मुशामसि । चक्षुषी पुनरस्यास्य मण्डने दृश्यदर्शने ।। अथो त इन्द्रः केवलीविशो बलिहतस्करत् ।। --प्रादिपुराण ४.१७० -ऋग्वेद, १० १७३.६ २३. स्वपरमण्डलका कार्यावलोकने चाराः खलु चक्षुषि २९. पाश्र्वनाथचरित, १.६६ क्षितीपतीनाम् ।' -नीतिवाक्यामृत, १४.१ ३०. वही, १.६७, १.११३ २४. पाश्वनाथचरित, २.४ ३१. नीतिवाक्यामृत, ५.१.२ २५. वही, १.६६ ३२. पाश्वनाथचरित, २.६० २६. पार्श्वनाथचरित, १.७४ २७. वही १.७७ ३३. बही, ७.११, १६१ - -
SR No.538030
Book TitleAnekant 1977 Book 30 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1977
Total Pages189
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size10 MB
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