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"बाचकशलसामकेप्रमाक्ष्यमककाव्य
इसका पूर्ववर्ती जैन कथा रूप हंसराज बच्छराज कथा' है। तत्पश्चात् नायक अपने बड़े पुत्र को राज्यभार संभलाकर में देख. जा सकता है। वही 'तेजसार रास चउपई' एव संन्यासी बनते चित्रित किया गया है, जबकि जैनेतर 'भीमसेन हंसराज च उपई' रचनामों का भी उद्गम प्रेमाख्यानक रचनामों मे सुखमय पारिवारिक जीवन के ऐसी ही जैन धर्म से सम्बन्धित रचनामों तथा कथानक साथ कथा का अन्त है । इस प्रकार, जहां जनेन्तर रचनामों रूढ़ियों से है।
की कथावस्तु सुखान्त है, वही जैन चरित सम्बन्धी उक्त प्रेमाख्यानकों के नायक-नायिका राजकुल के प्र
ही प्रेमाख्यानों की प्रसादान्त ।। राजकुमार-राजकुमारियाँ अथवा राजकुल से सम्बन्धित प्रायः सभी प्रेमाख्यानकों में प्रलौकिक शक्तियों में मत्री, पुरोहित, सामन्त; सेठ के पुत्र-पुत्रियां है। इनमें प्रास्था, जादू-टोने, मल-तंत्र में विश्वास, भविकावाणियों प्रेम का प्रारभ प्रत्यक्ष दर्शन और रूप-गुण-श्रवण द्वारा में श्रद्धा, म्वप्नफल और शकुनों में विश्वास रखने की हुमा है। नायक-नायिकानों में प्रमोद्दीपन एव उनके बातों का प्रचुर मात्रा में उल्लेख मिलता है। अविश्वास सयोग मे सहायक तोता, मत्री पुत्र, भाट, खवास (नाई), के कारण ही ढोलामारवणी च उपई का नायक ढोला सखियां आदि पात्र हुए है। ढोला मारवणी एव माघवा- अपने वियोग का कारण पूर्व जन्म के फलो को मानता नल कामकंदला एव भीमसेन हंसराज चउपई मे नायक हैने नायिका की प्राप्ति के लिये वैराग्य धारण कर राज- "पलें भव पाय में कीया, तो तुझ बिन इतरा दिन महल प्रादि का त्याग किया है। मार्ग में उन्हें अनेक संमुख बात कर वाषाण, जीवन जन्म प्राज सुप्रमाण ॥" कठिनाइयों का सामना करना पड़ा है। नायिका के मिलन
और भविष्यवाणी द्वारा शकर पुरोहित को गगा घाट पर के पश्चात् उपयुक्त सभी काव्यों में घर लौटते हुए
पुत्र माधव की प्राप्ति होती है । 'भीमसेन हंसराज भयकर कठिनाइयों (ोखा) का पुनः सामना करना
चउपई' की नायिका मदनमंजरी को भी हंस की भविष्यपड़ता है; यथा, राक्षमियों द्वारा नायक को रोकना',
वाणी पर २१ दिन बाद गर्भ प्राप्त होता है। जादूनायक-नायिका के विश्राम स्थल की छत का गिरना',
टोनों की बात तो सभी रचनामों मे कदम-कदम पर नायिका की मृत्यु', प्रतिनायक द्वारा नायक का प्रातथ्य'
वणित है। यह भाग्यवादिता एव अन्धविश्वासों के प्रति इत्यादि । किन्तु इन बाघानों को विद्याधरियों, विद्याधरो',
प्रास्था साधारण पात्रों से लेकर राजा आदि में भी विद्य. वैताल', जोगी-जोगिनी' प्रादि ने दूर करके नायक
मान है। नायिकामों को मिलाया है। घर लौटने पर नगरवासियो,
कुशललाभ के सभी प्रेमाख्यानों में एक ही प्रकार की माता-पिता द्वारा स्वागत किया जाता है तथा प्रजा .
लोक वार्तामों का समावेश हुप्रा है । इस समानता से मानन्द उत्सव मनाती है।
इनकी प्रान्तरिक एकता को बल मिला है । तत्कालीन कुशललाम के जैनकथानक संबन्धी प्रेमाख्यानो में लोक-समाज की रीति नीति, सभ्यता और लोक संस्कृति इस उत्सव में कोई गुरु नायक को धर्म में दीक्षित करता का सहज चित्रण इन प्रेमाख्यानों की विशेषता है । १. तेजसार रास चउपई, जिनपालित जिनरक्षित संघि ७. ढोलामारवणी च उपई । गाथा।
.. प्रानन्दकाव्य महोदधि, मौक्तिक ७, माघवानल काम२. भगड़दत्त रास ।
कंदला चउपई, चौ० ५६.६१ । ३. माधवानल कामकंदला चउपई, ढोलामारवणी चउपई, भीमसेन हंसराज चउपह।
एह देह छ डी करी इण घरि मुझ अवतार । ४. ढोलामारवणी चडपई, तेजसार रास चउपई।
मदनमंजरी नह उदरि, प्रवतरि मू निद्वारि ॥ ५. तेजसार रास चउपई, गड़दत्त रास ।
एल० डी० इंस्टीट्यट, अहमदावाद, प्र० १२१७ ६. माधवानल कामकंदला चउपई।
छं० २५३ ।