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________________ वाचक कुशललाभ के प्रमाख्यानक काव्य डा० मनमोहन स्वरूप माथुर सूफी कवियों की भाति ही जैन कवियों ने भी मध्य- हैं। कवि ने अपनी च उपइयों के साथ इन दोहों को काल में अनेक प्रेमाख्यानक काव्यों का प्रणयन किया। प्रसंगानुसार संगठिन किया, जिसे कवि ने इन शब्दों में इसमे सूफियों का उद्देश्य जहाँ दो भिन्न संस्कृतियों के स्वीकार किया है। :'दूहा घणा पुराणा प्रछह, चौपइवंध समन्वय का था वही जैन कवियों का उद्देश्य था समाज में कितो मैं पछह ।" शील एव मतीत्व के उपदेश तथा स्वामिभक्ति का प्रचार। इमी शृङ्खला के कवि है उपाध्याय अभयधर्म के शिष्य जिनपालित जिनरक्षित सधिगाथा' का रचना सवत् १६२१ है। इममे चंपापुरी के सेठ माकदा के दो पुत्रों वाचक कुशललाभ । कुशललाम ने अपने जीवनपर्यन्त जैन एवं जने तर कथानकों को ग्रहण कर निम्नलिचित जिनपालित और जिन राक्षित की रोमांचक यात्रा एवं जिनरक्षित की कामासक्तता के साथ जिनरक्षित राघ की प्रमाख्यानों की काव्यात्मक रचना की : स्थापना की कथा ८५ छदों में कही गई है। १. माधवानल काम कन्दला च रपई। २. ढोला मारवणी च उपई। ३. जिनपालित जिनक्षित सधिगाथा । जैन ऋषि परम्परा के प्रमुख चरित्र अगदत्त पर ४. अगडदत्त-रास । ५. तेजमार-रास चउपई। ६. भीम कवि ने ३१६ छदो मे 'अगड़दत्तराम' नाम से एक सुन्दर सेन हमराज च उपई। ७. स्थलिभद्र छत्तीसी, और रचना का निर्माण किया। प्राप्त हलिखित प्रतियो के ८. कनवसृन्दरी चउपई। पावार पर इस कृति का रचनाकात वि० सं० १६२५ माधवानल कामकंदला के प्रति प्राचीन लोकप्रचलित कार्तिक सुदी १५ गुरुवार है। इसमें मधिन अगड़दत्त प्रेमाख्यान पर कवि ने माधवानल कामकदला चउवई की ललित प्रवृत्तियो द्वारा नारी के विवागपाती चरित्र नामक रचना का निर्माण किया। इसका रचनाकाल वि. का कथन कर वैराग्य भावना कोरापना की है। स० १६१६ फाल्गुन शुक्ला १३ रविवार कहा गया है। इसी शैली का अन्य ग्रंथ है - तेजसार गस चउपई । इसमे माधव और कामकंदला के प्रेम की कहानी कही इसमें कुशललाभ ने तेजसार के बाहुबल और प्रेम कोड़ानों का वर्णन करते हुए उसके श्रावक रूप को ढोला-मारू के परंपरित पाख्यान पर कवि ने 'ढोला- प्रतिष्ठा की है। साथ ही, कवि ने तेजसार के जन्म और मारवणी चउपई' नामक कृति की रचना वि० स० १६१७ पूर्वजन्म की घटनाओं के प्राकलन द्वारा दीपपूजन के की अक्षण तृतीया को की। इसके दोहे अत्यन्त प्राचीन माहात्म्य को भी प्रस्तुत किया है।' १. इस रचना का कुछ सूचियों में 'गुणसुदरी च उपई' २. म. प्राच्य विद्या मन्दिर, पूना, हस्तनिखित ग्रथ नाम मिलता है। डा० के० सी० कासलीवाल द्वारा ६०५ गाथा ३१८ । निर्मित सूची में 'कनक सुदरी चउपई' नाम से वणित ३. डा० मनमोहन स्वरूप माथुर : दुशललाभ पौर है। किन्तु यह कुशललाभ की संदिग्ध रचना है। उनका साहित्य (अप्रकाशित शोध प्रय);पु. ६६ ।
SR No.538030
Book TitleAnekant 1977 Book 30 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1977
Total Pages189
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size10 MB
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