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क्या रूपकमाला' नामक रचनाएं अलंकार-शास्त्र सम्बन्धी हैं?
0 श्री अगरचन्द नाहटा, बीकानेर
बहुत बार रचनामों के नाम एक बड़ा भ्रम पैदा कर रूपकमालादेते हैं। मूल रचना बिना देखे-पढ़े उसके नाम के प्राधार 'रूपकमाला' नाम की तीन कृतियों के उल्लेख मिलते पर अनुमान या कल्पना कर ली जाती है। 'रूपकमाला' हैं :-- नामक दो-तीन रचनायें प्राप्त है, जो प्रलंकार-शास्त्र १. उपाध्याय पुण्यनन्दन ने 'रूपकमाला' की रचना विषयक नहीं हैं, पर उनके नाम से वैसा भ्रम हो गया कि की है और उस पर समयसून्दरगणि ने वि. स. १६६३ उन्हे कई विद्वानो ने अलकार विषयक जैन रचनामो में में 'वृत्ति' की रचना की है। सम्मिलित कर दिया।
(वास्तव मे रचयिता का नाम पुण्यनन्दन नही, पुण्य
नन्दि है।) 'जैन-साहित्य का बहद इतिहास' का पाचवा भाग ।
२. पावचन्द्रमूरि ने वि० सं० १५८६ में 'रूपक्रमाला' 'लाक्षणिक साहित्य' संवन्धी है, जिसके लेखक प० अम्बा
नामक कृति की रचना की है। लाल शाह जैन-साहित्य के अच्छे विद्वान् हैं। इस पांचवें
३. किसी प्रज्ञातनामा मुनि ने 'रूपकमाला' की रचना भाग के पृष्ठ १२३ में पहले रूपक-मंजरी का उल्लेख की। किया गया है। उसमें यह भी लिखा है कि जिनरत्नकाष ये तीनों कृतियां प्रलंकार बिषयक हैं या अन्य विषयक, के पृष्ठ ३३२ मे उसका नाम 'रूप-मंजरीनाममाला' दिया यह शोधनीय है।" हुमा है । ग्रन्थ का नाम देखते हुए उसमे रूपक अलंकार अभी-अभी इसी का अनुसरण डा० रुद्रदेव त्रिपाठी ने विषयक निरूपण होगा, यह अनुमान होता है। इस दृष्टि काव्यप्रकाश' की यशोविजयकृत टीका के उपोद्घात मे से यह ग्रन्ध प्रलकार विषयक माना जा सकता है । पर किया है। इसमें रूपकमंजरी के संबन्ध में तो यही लिख वास्तव मे गोपाल के पुत्र रूपचन्द ने रूपमंजरीनाममाला दिया है कि नाम के प्राधार पर यह कल्पना की जाती है ही रची है और उसकी प्रति बीकानेर की मनप संस्कृत कि इसमें रूपक अलंकार के विषय में विवेचन होगा। पर लाइब्रेरी में और अन्य कई ग्रन्थालयों में मैंने देखी है। रूपकमाला के सबन्ध में पं० अम्बालाल शाह की इस सका उसका नाम रूपकमंजरी किसी ने गलती से लिख दिया को कि 'ये तीनों कृतियां मलकार विषयक हैं या अन्य मालूम पड़ता है। इसी कारण, इसके अलंकार विषयक होने विषयक, यह शोधनीय है', डा. रुद्रदेव त्रिपाठी का अनुमान कर लिया गया। पर है यह वास्तव में नाममाला ने स्थान नही दिया। इससे उन्होंने रूपकमाला ही अर्थात् कोष विषयक है, अलंकार विषयक नहीं है। को प्रलंकार विषयक रचनायें ही मान लिया। पर वास्तव
उपर्यक्त 'जैन-साहित्य के बहद इतिहास के पांचवें में यह भ्रमोत्पादक है । इसीलिए इसका स्पष्टीकरण और भाग के उसी पृष्ठ में रूपक-मंजरी के बाद रूपकमाला' ग्रंथ निर्णय यहां कर देना पावश्यक है। का उल्लेख है । उसे अलंकार विषयक रचना मान लिया पुण्यनन्दि की रूपकमाला नामक रचना मेरे समक्ष है। गया है, यद्यपि पं० अम्बालाल शाह को इसमें शंका प्रवश्य इसमें हिन्दी भाषा के ३२ पद्य हैं। इसमें 'शील' रही है। उन्होंने लिखा है
धर्म का गुणवर्णन करने का उल्लेख प्रथम पद्य में ही कर
(शेष पृष्ठ ७३ पर) १. जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भाग ५, पृष्ठ १२३ ।