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राजस्थान में मध्ययुगीन जन प्रतिमाए
प्रतिमाएं हैं। यह शिलाफलक पंच बालयति का कहलाता गोड़वाड़ जैन पंचतीर्थी, जहां जैनों के लिए धार्मिक था। पाषाण बलुआई है, लेख या लांछन नहीं है। श्रद्धास्थली बनी हुई है, वहां पर्यटकों, इतिहास वेत्ताओं
मध्य में हल्के कत्थई रंग की पपासनस्थ पार्श्वनाथ और पुरातत्वज्ञों के लिए भी इसका बड़ा महत्त्व है। की प्रतिमा है, ऊपर सर्पफण है। अवगाहना । फीट है। राणकपुर, नाडोल, नारलाई, वरकाना एवं घाणेराव के सिंहासन में दो सिंह जिव्हा निकाले बैठे हैं। यक्षी पद्मावती पास स्थित मुंछाला-महावीर गोड़वाड़ जैन पंचतीर्थी का एक बच्चे को छाती से चिपटाये हुए है, जो उस देवी के मुख्य स्थान है जिसकी सूक्ष्म शिल्पकला अत्यन्त सुन्दर है। अपार वात्सल्य का सूचक है। भगवान के शिरो-पार्श्व में राणकपुर का प्रमुख जैन मन्दिर आदिनाथ का हैं जो दोनों ओर गज उत्कीर्ण है। उनके कछ ऊपर इन्द्र हाथों चौमुखी हैं । राणकपुर का जैन मन्दिर शिल्पकला एवं में स्वर्ण-कलश लिये क्षीरसागर के पावन जल से भगवान स्तम्भों के लिए जगत् विख्यात है। इसी जैन पंचतीर्थी की का अभिषेक करते प्रतीत होते हैं । फण के ऊपर त्रिछत्र है कड़ी के रूप में पाली जिले का श्री राता महावीर तीर्थअलंकरण सामान्य है।
स्थान भी अपनी प्राचीनता एवं ऐतिहासिक महत्ता एवं ___अन्तिम प्रतिमा खड्गासन अवस्था में है। अवगाहना शिल्पकृतियों के लिए प्रख्यात है। मन्दिर का निर्माण वि. २॥ फीट है। अधोभाग में दोनों ओर इन्द्र और इन्द्राणी सं० ६२१ में आचार्य महाराज थी सिद्धिसूरि जी के उपदेश चंवर लिये हुए हैं। मध्य में यक्ष-यक्षी विनत मुद्रा में बैठे से श्रेष्ठि गोत्र के वीरदेव ने कराया था। मन्दिर शिल्पहैं । मूर्ति के सिरे के दोनों ओर विमानचारी देव हैं। एक कलाकृतियों का भंडार है। इसमें मूलनायक भगवान् विमान में देव एवं देवी है । दूसरे में एक देव है। छत्र के महावीर की प्रतिमा के अतिरिक्त अनेक छोटी-बड़ी जैन एक ओर हाथी का अंकन है। भामण्डल और छत्रत्रयी है। प्रतिमाएं विद्यमान हैं।
राजस्थान का पाली जिला न केवल ऐतिहासिक एवं राणकपुर या राणापुर का नाम महाराणा कुंभा के व्यापारिक दृष्टि से विख्यात है, अपितु धार्मिक दृष्टि से नाम राणा पर रखा गया था। यह स्थान सादड़ी से १४भी अद्भुत महत्त्व भी रखता है । इस जिले में सभी धर्मों १५ मील की दूरी पर अरावली की पहाडी मे स्थित है। एवं सम्प्रदायों के दर्शनीय, पूजनीय एवं धार्मिक स्थान हैं। यहा के मंदिरों मे नेमिनाथ, आदिनाथ एवं पार्श्वनाथ के यह जिला जैनों का प्रमुख केन्द्र रहा है। यहा बड़े-बड़े मदिर प्रमुख है । यहाँ के आदिनाथ मंदिर में ऋषभनाथ आचार्यों, विद्वानों, साधु-सन्तों एवं यति-मुनियों ने सत्य की विशाल पद्मासन मूर्ति अत्यंत मनोज्ञ है। कुल मिलाकर और अहिसा की मशाल जलाई है। पाली जिले की वेदिकाओं में ४२५ मूर्तिया प्रतिष्ठित है।
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(पृष्ठ ५० का शेषांश) बात स्वीकार की गई है कि अवध के इस इलाके को घटना का वर्णन किसी हिन्दू इतिहासकार ने नहीं किया। जीतने में सुल्तान अल्तमश को एक लाख बीस हजार मुसलमान इतिहासकारों और कुछ विदेशियो ने ही इस पर मुसलमान योद्धाओं की बलि देनी पड़ी थी।
प्रकाश डाला है। उपयुक्त ऐतिहासिक प्रमाण यह सिद्ध करते है कि आज भी भारतीय इतिहास के अनेक पृष्ठ अन्धकार राजा सुहलदेव अद्भुत वीर, साहसी, सुशील, धर्म-परायण, की कारा में पड़े शोधकर्ताओं की प्रतीक्षा कर रहे है। रणकुशल, राजनीतिज्ञ और चतुर शासक थे। साथ ही संयद सालार मसऊद गाजीमियां के नाम से साथ वह उच्चकोटि के कवि और साहित्यक थे। उनका मशहूर हो गया है। इसका जयन्ती-वर्ष जेष्ठ के कृष्ण पक्ष व्यक्तित्व बहुमुखी था।
में प्रथम रविवार को कुछ मुसलमान-हिन्दुओं के द्वारा यह एक बड़ी विचित्र बात है कि राजा सुहलदेव और वाराणसी और बहराइच में मनाया जाता है। संयद सालार मसऊद के युद्ध की इस भारी ऐतिहासिक