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नारी-मुक्ति के क्रांतिकारी प्रवर्तक भगवान महावीर
स्त्री को नही वरन उस पुरुष को दण्ड देना चाहिये जो गर्दन में लपेट दिया । श्रेष्टि की पत्नी यह देखकर क्रोधित नारी को कलंकित करने का मूल कारण है क्योंकि स्त्री हो उठी और उसने चंदना के हाथ पैरों में बेडी डलवाकर स्वभावत: सरल और निश्छल होती है और पुरुष ही उसे उसे एक कोठरी में बंद करवा दिया। भगवान महावीर ने बहकाता है। इस मवध में कहा जाता है, कि एक बार उसका उद्धार किया और उसे अपनी शिष्या बना लिया। एक गृहस्थ ने एक सुन्दर साध्वी को भिक्षाटन को जाते इस घटना से वे इतने दुखी हये कि परतंत्र शोषित नारी हुये देखा। उम पुरुष के साथ उसका मित्र भी था को पूर्ण स्वाधीन बनाने की दिशा मे कृतसंकल्प हो गये। जिसकी पत्नी का निधन हो चुका था। उस गृहस्थ ने उन्होने इसी चदना को लेकर नारी-मक्ति अभियान का अपने मित्र से कहा कि यह साध्वी तुम्हारी पत्नी बनने शुभारम्भ कर दिया। चदना नारी सघ की प्रथम संचालिका योग्य है । तुम इसे किसी तरह तैयार कर लो । मित्र के मन बनकर स्त्रियों को साध्वी बनाने की दिशा में अग्रसर हुई। में विकार पा गया। एक बार जब वह साध्वी भिक्षा हेतु उनका यह अभियान अत्यन्त सफल रहा। उसी मित्र के द्वार पर पहची तो उसने अपने पुत्रों से
भगवान महावीर स्त्रियो को सदैब अादर की दृष्टि से साध्वी के चरण स्पर्श करने के लिये कहा और यथोचित
देखते थे। "बृहत्कल्प भाष्य पीठिका" में यह उल्लेख भिक्षान्न देकर उसका सत्कार किया। इसी तरह वह ।
मिलता है कि एक बार राजा को अपनी रानी के चरित्र जब भी उस द्वार भिक्षा के लिये पहुचती, मित्र के पुत्र
पर सन्देह हुमा और उसने प्रतिशोध लेने के लिये रानी के वैसा ही करते और मित्र साध्वी को प्रावश्यकता से
अन्तःपुर में प्राग लगवा दी जिससे रानी उसमें जीवित अधिक वस्तुयें भिक्षा मे देकर उसका आदर-सत्कार कर
ही जलकर मर गई। भगवान महावीर ने जब सुना तो अपने घर मे ही निवास करने का प्रलोभन देता। मधुर
दुखित होकर उस राजा से कहा तुम भी उस अग्नि में व्यवहार पोर यथेष्ट आदर-सत्कार पाकर अत मे साध्वी
क्यों नही जल कर मर गये ? तुम्हे धिक्कार है। जैन सूत्रों उसके प्रलोभन मे आ गयो । फलत वह गर्भवती हुई।
में स्त्रियों को चक्रवर्ती के चौदह रत्नो में गिना है। इसका समाचार जब भगवान महावीर तक पहुचा तो उन्होंने कहा-इसमे उस साध्वी का क्या दोष? दड
"बृहत्कल्प भाष्य" के अनुसार जल, अग्नि, चोर तथा उस पुरुष को ही मिलना चाहिए जिसने उसके सरल हृदय
दुष्काल का संकट उपस्थित होने पर सर्वप्रथम स्त्रियों की को बहकाया है।
रक्षा करनी चाहिये । इस तरह यह स्पष्ट होता है कि
जैन दर्शन में स्त्रियो को बहुत सम्माननीय स्थान प्राप्त भगवान महावीर का नारी जाति के प्रति करुण भाव का एक अन्य उदाहरण साध्वी चंदना के साथ मिलता है।
था। कहा जाता है कि जब वह नन्हों बालिका ही थी तब डाक
इस तरह नारी के प्रति भगवान महावीर की करुणा, उसक माता-पिता को मारकर उसे उठा ले गये थे और समता, स्नेह और उदारता इतनी कल्याणमयी सिद्ध हुई बाद में उसे एक श्रेष्ठि को बेच दिया था। श्रेष्ठि ने बडे स्नेह कि नारी ने पुरुषों के सभी क्षेत्रों में समान अधिकार प्राप्त से उसे पाला । जब वह युवा हुई तो उसकी रूप-राशि को किय। वह पुरुष
किये। वह पुरुष की सम्पत्ति की भी उत्तराधिकारिणी देखकर श्रेष्ठि की पत्नी के मन मे यह शंका उत्पन्न नई बनी। नारी जाति की यह एक ऐसी महान उपलब्धि थी कि कहीं श्रेष्ठि उसे अपनी पत्नी बनाने के लिये तो नही कि पारिबारिक एव सामा
कि पारिबारिक एव सामाजिक धरातल पर उसने अपनी पाल रहे है ? सन्देह सर्प ने उसके विवेक को डस लिया स्वतंत्र प्रतिष्ठा स्थापित की। समस्त नारी जाति के पौर वह चंदना को घोर यातनायें देने लगी। एक बार लिये एक महान् उदारचेता उद्ध
लिये एक महान उदारचेता उद्धारक के रूप में भगवान चंदना झुक कर गृह-कार्य कर रह थी जिससे उसकी केश महावीर युग-युग तक श्रद्धेय एवं वदनीय हैं। राशि बिखरकर घरती का स्पर्श करने लगी। श्रेष्ठि ने
मनीषा भवन, चोपड़ा कालोनी, यह देखा तो स्नेह वश उसकी केशराशि को समेट कर
अम्बिकापुर (सरगुजा) मध्यप्रदेश