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________________ साहित्य तपस्वी की घमर साधना स्वतन्त्र मनुष्य जन्म के समय तो प्राय: एक समान बालक होता है । यद्यपि पूर्व जन्म के सस्कार और अपने समय के वातावरण द्वारा उसका विकास भिन्नता लिए होता है, पर छोटी उम्र तक इतना अधिक प्रन्तर नही दिखाई देता 1 ज्यों-ज्यों वह बड़ा होता चला जाता है, गुणों का विकास अधिक स्पष्ट हो जाता है। फिर भी कई बालक बाल्यावस्था में तो साधारण से लगते है, पर भागे लकर तेज निकल भाते है। उनकी प्रतिभा, परिचम, संयोग पोर परिस्थितियां अपना रंग दिखाती है। कभीकभी तो किसी ग्राकस्मिक संयोग से जीवन-धारा पूर्णतः बदल जाती हैं; एक विलासी व्यक्ति परित्यागी बन जाता है एक मूर्ख व्यक्ति पंडित बन जाता है। शारीरिक विकास भी इतना अधिक प्रन्तर वाला होता है कि एक ही व्यक्ति के समय-समय पर लिए हुए चित्रों से उसे पहचानना कठिन हो जाता है । बाल्यावस्था मे जो दुबला-पतला होता है, वह बड़ा होने पर काफी स्थून याने मोटा-ताजा हो जाता है। नेहरू जी प्रादि अनेक व्यक्तियों के बाल्याबस्था युवावस्था और बुद्धावस्था के अनेक चित्रों को देखते है तो यह कल्पना में भी नहीं खाता कि ये सभी एक ही व्यक्ति के चित्र हैं । कुछ इसी तरह का प्रान्तरिक चित्र स्वर्गीय श्री जुगल किशोर जी मुख्तार का भी मुझे दिखाई देता हैं । साधारणतया मुस्तारगिरी याने मुख्तारपने का काम या पेशा करने वाले व्यक्ति भिन्न प्रकार के होते है। मुख्तार साहब इस दृष्टि से एक निराले ही व्यक्ति ये जिन्होंने अपने जीवन के करीब ४० वर्ष साहित्य सेवा में लगा दिये। मुख्तार साहब की सक्षिप्त जीवनी डा० नेमिचन्द शास्त्री के द्वारा मिली हुई जैन विद्वत्परिषद से प्रकाशित हुई है उससे भी जो बातें ज्ञात नहीं थीं, वे प्रकाश में आई है। उनके निकट सम्पर्क में रहने वाले व्यक्ति और भी बहुत से प्रज्ञात श्री मगर चन्द नाहटा तथ्य बता सकते हैं। मुस्तार साहब की बहुमुखी प्रतिभा सतत अध्ययनशीलता मौर विशिष्ट लेखन अवश्य ही हमारे लिए एक स्पृहणीय व्यक्तित्व का भव्य चित्र उपस्थिति करता है मुस्तार साहब का परिचय हो मुझे बहुत पीछे मिला। पर जब मैं जैन पाठशाला में पढ़ता था तभी उनकी 'मेरी भावना' नामक कविता देखने को मिली और यह बहुत ही पच्छी लगी ऐसो सुन्दर भावना वाले व्यक्ति वीर' संज्ञक कौन हैं, इसका उस समय कुछ भी पता नही था । जब साहित्य शोध रुचि पनपी तथा अनेक नये नये ग्रंथों का अध्ययन चालू हुमा तभी मुख्तार साहब की 'ग्रन्थपरीक्षादि' पुस्तकें पढ़ने में भाई । कहाँ 'मेरी भावना ' के लेखक मुख्तार साहब और कहाँ 'ग्रन्थपरीक्षा' के लेखक मुस्तार साहब कुछ भी ताल-मेल नहीं बैठ सका। 'ग्रंथ-परीक्षा' मे गहरी छानवीन करके सत्य को बड़े नग्न रूप मे उपस्थित किया गया है जो श्रद्धाशील व्यक्तियों के लिए ममन्तिक प्रहार पोरकटू सत्य-सा कहा जा सकता है, क्योंकि जिन ग्रन्थों को जिन श्राचार्यों की रचना मानते रहे, उनको उन्होंने बहुत पर वर्ती रचनाएँ सिद्ध किया, और जिन विधि-विधान वाले ग्रन्थों को श्रद्धा एवं चादर की दृष्टि से देखा जाता था उनमें से रोमाचक बातों को प्रकाश में लाना जिससे उन ग्रंथो के प्रति धारणा ही बदल जाय इस प्रकार का क्रान्तिकारी कदम बहुत विरले व्यक्ति ही उठा पाते हैं। कई व्यक्ति सही बात को जानते भी है पर समाज के विद्रोह एवं निन्दा के भय से साहसपूर्वक उन्हें प्रकट नहीं कर पाते, जबकि मुख्तार साहब ने ' ग्रन्थपरीक्षा' में बड़ा निर्भीक और साहसिक कदम उठाया श्रीर परीक्षा का एक पादर्श उपस्थित किया । वास्तव में परीक्षक पक्षपात से काम नहीं ले सकता । उसे तो तथ्य पर ही पूर्ण निर्भर रहना पड़ता है ।
SR No.538030
Book TitleAnekant 1977 Book 30 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1977
Total Pages189
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size10 MB
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