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________________ ८४, वर्ष २६,कि.२ भनेकान्त सुदी १३ को मन्दिर की प्रतिष्ठा भी हुई। वि० सं० जैन धर्म प्रभावित होकर वि० सं० ६६६, १०५३, २००६ में प्राचार्य श्री विजयवल्लभसूरि जी ने मूल मन्दिर १२६६, १३३५, १३३६ एवं १३४६ मे राज्य करने वाले के जीर्णोद्धार के साथ-साथ प्रजनशाला की प्रतिष्ठा भी राज्य शासको ने राज्य मे जैनधर्म के प्रचार करने एवं करवाई। इस प्रकार अनेकों प्राचार्यों, साधु साध्वियों, प्राचार्यों की रक्षा हेतु शासन पत्र जारी किये, शासन पत्रों धनाढ्य जैन बन्धुओं ने तीर्थ के जीर्णोद्धार करवाकर इसे में लिखा गया कि जहा तक पर्वत, पृथ्वी, सूर्य, चन्द्र, गंगा, और अधिक लोकप्रिय बनाने का प्रयास किया। सरस्वती है वहा तक यह शासन पत्र कायम रहेगा। प्राज भी श्री राता महावीर जी क्षेत्र मे उक्त शासन पत्रों का श्री राता महावीर वह स्थान है जहां पर पशुओं की बराबर पालन हो रहा है । हिंसा पर वि० सं० १८८ मे राजा राव जगमान ने हथु डी स्थित श्री राता महावीर का जैन मन्दिर प्राचार्य देवसूरि जी के उपदेश से प्रेरित होकर राजपत्र शिल्पकलाकृतियों का भंडार है। जिसके अन्दर मूल भग. जारी कर रोक लगा दी और जैन धर्म के सत्य और अहिसा वान महावीर स्वामी को प्रतिमा के अतिरिक्त अनेको उपदेशों से प्रभावित होकर जनधर्म अगीकार किया था। छोटी बड़ी जन प्रतिमाए विद्यमान है। अरावली पहाड़ की इसी प्रकार जैनधर्म के प्राचार्य सर्वश्री बलिभद्राचार्य, गोद मे जगल मे प्राबादी रहित क्षेत्र में बसा राता महावासदेवाचार्य, सूर्याचार्य, शान्तिभद्राचार्य, यशोभद्राचार्य वीर जी का जैन मन्दिर प्राज भी तीर्थ स्थान के साथएव केशरसरि संतति के उपदेशों से प्रभावित होकर अनेकों मागोमा भपतियों ने जैन धर्म को अंगीकार किया। जिसमें सर्वश्री हजारों लोग यात्रा पर पाते है। राजस्थान के पाली जिले विदग्ध राजा, दुल्लभ राजा, सामंत सिंह, महेन्द्र राजा, मे स्थित गोड़वाड़ जैन पंचतीर्थी राणकपुर, नाडोल, नारघरणीवाह राजा हरीवम राजा, ममट राजा, घवल राजा, लाई, वरकाना, मंछाला महावीर के साथ-साथ श्री राता मल राजा प्रादि के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है। महावीर की यात्रा भी करते है। यह राजस्थान का गौरववि० सं० १२०८ मे प्राचार्य महाराज जयसिंहसूरि जी ने मय स्थल है। जहां प्रतिवर्ष महावीर जयन्ती, चैत्र सुदी राठौड़ क्षत्रीय वशी अनन्तसिंह राजा को रोग मुक्त किया तेरस के दिन विशाल पैमाने पर मेले का भी प्रायोऔर धर्म उपदेशों से जैनधर्म की महत्ता बताई। राजा जन किया जाता है जिसमें देश के विभिन्न भागों के अनन्तसिंह ने प्राचार्य जी के उपदेशों से प्रभावित होकर हजारो लोग एकत्रित होकर भगवान की सेवा पूजा एवं पत्नी सहित जैन धर्म को अगीकार किया और इनसे रथ यात्रा में भाग लेकर प्रानन्दित होते है। उत्पन्न होने वाली संतान प्राज भी प्रोसवाल राठौड़ गोत्र जूनी चौकी का वास, से देश के कई भागो मे विद्यमान है। बाडमेर (गजस्थान) [70 ७६ का शेषाशा से चिन्तन करता है वह अवश्य ही स्वात्मोपलब्धि का ने इस मूर्ति का निर्माग कराकर फिरोजाबाद को एक तीर्थ पात्र हुए बिना न रहेगा। क्षेत्र बना दिया है । उनको धामिक परिणति सराहनीय है। जयति जयिनमे योगिनं योगिवर्यः, इस मूर्ति निर्माण से उन्होंने विपुल यश प्राप्त किया है। जो प्रधिगतमहिमानं मानितं माननीयः । उस मूर्ति का दर्शन करेगा, उसका अन्तरात्मा निर्मल और स्मरति हृवि नितान्त य. स शान्तान्तरात्मा, प्रशान्त होगा। सेठजी ने मन्दिर और बाहुबली की मूर्ति का भजति विजयलक्ष्मीमाशुजैनीमजय्याम् ॥ ३६-२१२ निर्माणकर अपनी कीति को अमर बना लिया है। वास्तव फिरोजाबाद निवासी स्व० सेठ छदामोलालजी ने बाहु- मे उत्तरप्रदेश और मध्य प्रदेश मे इतनी विशाल मूर्तियो बली की ४५ फुट ऊनी विशाल मूर्ति बनवाई है, और उमकी का निर्माण अभी तक नही हुप्रा था। सेट जी ने इस कार्य प्रतिष्ठा होने वाली ही थी कि अकस्मात् सेठजी के दिवगत को पूरा कर दिया है। हो जाने से इस महान कार्य में कुछ विलम्ब हो गया है। वह एफ ६५, लक्ष्मीनगर जे एक्सटेंशन, श्रवणबेलगोला की गोम्मटेश्वर मूर्ति के अनुरूप है । सेठ जी (जवाहर पार्क), दिल्ली-३२
SR No.538029
Book TitleAnekant 1976 Book 29 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1976
Total Pages181
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size10 MB
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