SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 90
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्राचीन जैन तीर्थ श्री राता महावीर जी श्री भूरचन्द जैन, बाड़मेर राजस्थान का पाली जिला न केवन ऐतिहाहिसक यातायात से भी जुड़ा हुआ है जिसका प्राचीन इतिहास एवं व्यापारिक दृष्टिकोण से विख्यात है अपितु धार्मिक हथुडी, हस्तीकुडी, राष्ट्रकूट के नाम से उल्लेख मिलता दृष्टि से भी इस जिले की अद्भुत महत्ता बनी हुई है। है। यहां पर छठी शताब्दी का बना मन्दिर श्री राता जिले में सभी धर्म, सम्प्रदायों के विख्यात दर्शनीय, एवं महावीर स्वामी के नाम से पुकारा जाता है। इस स्थान पूजनीय धार्मिक स्थल विद्यमान है। पाली जिला जैन को कन्नौज के अतिरिक्त राठौड़ की उत्पत्ति और प्रोसवाल धर्मावलम्बियों का मुख्य केन्द्र रहा है। जहा पर जैन धर्म राठौड़ गोत्र का सूत्रपात केन्द्र होना भी बताया जाता है। के बड़े-बड़े प्राचार्यों, विद्वानो साधु सन्तो, यति-मनियो ने राठौड़ राजानो की हथु डी राजधानी रही है जो जैनाचार्यों सत्य और अहिंसा की अनूठी मशाल जलाई। इन्ही महान् की धार्मिक गतिविधियो का प्रमुख केन्द्र स्थान भी रहा है। त्यागमय विभूतियो के सद् उपदेशो से पाली जिला अपनी हथु डी मे बने श्री महावीर स्वामी के मन्दिर का कोख मे ऐसे जैन दर्शनीय स्थानों का निर्माण करवा सका निर्माण वि० स० ६२१ मे प्राचार्य महाराज श्री सिद्धिहै जो न केवल भारत विरूपात ही है अपितु विदेशी पर्यटक सरि जी के उपदेश से श्रष्ठि गोत्र के वीर देव ने करवाया। भी इन्हें देखने के लिए बराबर लालायित रहते है। जहां जहां पर वि० सं० १८% तक सर्वश्री प्राचार्य महाराज पाली जिले की गौड़याड जैन पंचतीर्थी जैनों के लिए धामिक सिद्धि सूरि जी, कक्कमूरि जी, देवगुप्तसूरि पौर सर्वदेवसूरि श्रद्धा से पूजनीय बनी हुई है वहा दूसरी पोर पर्यटकों, जी ने जैन मन्दिर के निर्माण के अतिरिक्त दुष्काल में इतिहासकारों, पुरातत्त्व विशेषज्ञों के लिए भी इनका बड़ा जनमानस एवं पशुगों की सेवा के साथ साथ जैनधर्म के महत्व बना हुया है। राणकपूर, नाडोल, नारलाई, वर. व्यापक प्रचार का कार्य भी किया। इस भव्य मन्दिर के काना एवं घाणेराव के पास स्थित मछाला महावीर गोड मूल द्वार के बाईं ओर ताक पर वि० स० ६६६ एवं वाड़ जैन पंचतीर्थी के मुख्य स्थान है जिनकी बेजोड एव १०५, के लेख भी थे जो ग्राजकल अजमेर म्यूजियम में सूक्ष्म शिल्पकला अत्यन्त ही सुन्दर है। राणकपूर के जैन होने बताये जाते है । वि. स १०११ ज्येष्ठ बदी पचमी मन्दिर शिल्पकला और स्तम्भों की बनावट के लिए जगत वि. स. १०४८ वैशाख वदी ४ और वि० स० मार्गशीर्ष विख्यात है। इसी जैन पचतीर्थी में धार्मिक कडी जोडने शुक्ल १२ के प्राचीन शिलालेख मन्दिर में विद्यमान है। इन में जिले में स्थित श्री राता महावीर तीर्थ स्थान भी अपनी लेखो के अतिरिक्त अन्य कई छोटे बड़े प्राचीन लेख प्रतिष्ठा प्राचीनता, ऐतिहासिक महत्ता, धार्मिक मान्यता, शिल्प- आदि से सम्बन्धित भी मन्दिर में दृष्टिगोचर होते है। कलाकृतियों के साथ निर्जन जगल मे प्राकृतिक नयना- श्री महावीर स्वामी के इस विशाल तीर्थ स्थान का भिराम दृश्यों के लिए विख्यात है। निर्माण वि० सं० ६२१ मे हुग्रा था और प्रथम जीर्णोद्वार श्री राता महावीर जैन तीर्थ स्थान पाली जिले में वि० सं०६६६ मे प्राचार्य श्री कारिजी ने करवाया। परावली पहाड़ियों की तलहटी में निर्जन वन में बीजापुर इसके पश्चात् वि मं. ६६६ में प्राचार्यश्री यशोभद्रारि जी ने ग्राम से २ मील दूर स्थित है । राणकपुर से १३ मील दूर मदिर का जीर्णोद्धार राजा विदग्ध के समय करवाया था उस यह स्थान दक्षिण और पूर्व दिशा के मध्य स्थित है। समय राजा विदग्ब ने अपने शरीर के बराबर सुवर्ण तोल ऐरिनपुरा रोड रेलवे स्टेशन से ८ मील दूर यह तीर्थ सड़क कर इस जीर्णोद्धार में लगाया। वि० सं० १०५३ माघ
SR No.538029
Book TitleAnekant 1976 Book 29 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1976
Total Pages181
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy