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________________ गोम्मटेश्वर बाहुबली D५० परमानन्द शास्त्री, दिल्ली . बाहुबली ऋषभदेव के पुत्र थे। उनकी माता का नाम नहीं रुका, वह मेरे घर के द्वार पर प्राकर क्यों रुक सुनन्दा था। यह चौबीस कामदेवों में से प्रथम कामदेव गया ? क्या मेरे साम्राज्य में अभी शत्रु मौजूद हैं जो मेरे थे। इनकी शरीर की ऊंचाई सवा पांच से धनुष थी। वश में ही नहीं हुमा। ऐसा कोई व्यक्ति है जो मेरे शरीर बलिष्ठ और भुनाए लम्बी थी। इससे इनका उत्कर्ष को नही सह रहा है। चक्ररत्न विना किसी कारण दूसरा नाम भुजवली और दौर्बली भी था। इनके ज्येष्ठ के नहीं रुक सकता। तब पुरोहित ने कहा, नगर के द्वार भ्राता भरत का शरीर भी वलिष्ठ और सुन्दर था, उनके पर चकरल रुकने से जान पड़ता है कि कुछ का विजय शरीर की ऊंचाई ५०० धनुष थी। विद्या, कला, कान्नि करना शेष है। यद्यपि प्रापने बाहर के सभी शत्रुपों को और दीप्ति मे बाहुवली भरत के ही समान थे। जीत लिया है किन्तु प्रापके भाइयो ने प्राकर प्रापको कामदेव होने के कारण स्त्रियां उन्हे मन्मय, मदन, प्रगज, नमस्कार नहीं किया है। वे प्रारके विरुद्ध है। उन्होने मनोज और मनोभव नामो से पुकारती थी। उनका वक्ष- निश्चय किया है कि हम मगवान् ऋषमदेव के सिवाय स्थल विशाल और स्कंध उन्नन थे। मस्तक विशाल और अन्य किसी को नमस्कार नहीं करेगे। आपके सभी भाई तेज से सम्पन्न था। शिर के केश काले पोर घुघ- बलवान है किन्तु उन सब मे बाहुवली सबसे अधिक राले थे। इसमे सन्देह नहीं कि भरत वीर पोर राज- बलिष्ठ है। आपको इसका प्रतीकार करना चाहिए। नीतिज्ञ थे, किन्तु बाहुबली विवेकी, पराक्रमी पौर राज- पुरोहित के वचनो से भरत प्रत्यन्त क्षुभित हुए, और नीतिज्ञ होते हुए भी अत्यन्त चतुर थे और स्वभावत उम्र लाल लाल पाखें निकालकर बोले ---किसी शत्रु के प्रणाम प्रकृति के धारक थे। न करने पर मुझे वैमा खेद नही होता जसा घर के भीतर भगवान ऋषभदेव नतं की नीलाजना का असमय मे रहने वाले मिथ्याभिमानी भाइयो के नमस्कार न करने शरीर पात देख कर देह भोगो से विरक्त हो गये, तब से हो रहा है। ये भाई प्रलात् चक्र की तरह मुझसे जल वे भरत और बाहुबली प्रादि को राज्य देकर निरा- रहे है। अन्य भाई मेरे विरुद्ध प्राचरण करने वाले भले कुल हो गये और प्रव्रज्या ग्रहण कर ली। सभी भाई ही रहे, किन्तु तरुण बुद्धिमान परिपाटी को जानने वाला टी टे। अपना-अपना राज्य सचालन करते हए जीवन यापन चनुर और सज्जन बाहुबलो मेरे से कैसे विरुद्ध हो गया ? करने लगे । बाहुबलो का राज्य शासन बड़ा ही सुन्दर पोर मालूम होता है वह भुजायों के बल से उद्धत हो गया। जन प्रिय था। वे न्याय नीति से प्रजा का पालन करते वे यह सोच रहे है कि एक ही कुल मे उत्पन्न होने से हम थे। उनकी राजधानी पोदनपुर थी। सौ भाई प्रवध्य है-हमे कोई नही मार सकता। पूज्य . भरत ने छह खड पृथ्वी को विजित किया और चक्र-ताद्वारा TET अमि का ते जाभोग करना नाते वर्ती सम्राट बने जा वे दिग्विजय से लोट कर व भव हैं. पर ऐसा हो नहीं सकता । पब या तो उन्हे के साथ प्रयोध्या पाये। तब चकरल नगर के द्वार पर यह घोषणा करनी पडेगी कि इस पृथ्वी का स्वामी भरत ही स्थित हो गया, वह नगर के भीतर प्रविष्ट नही हुमा। है और हम सब उसके प्रचीन है। अन्यथा मृत्यु का भरत ने तत्काल पुरोहित और मत्रियो को बुलवाया और मालिगन करना होगा। मुझे सबसे अधिक खेद बाहुबली पूछा कि जो चक्ररत्न समस्त दिशामों को जीतने मे कहीं पर है मैं उसे भ्रातृ प्रेमी समझा था, किन्तु अब मैं उसे
SR No.538029
Book TitleAnekant 1976 Book 29 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1976
Total Pages181
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size10 MB
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