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________________ जैन धर्म में शक्ति पूजा बनुभव करने के लिये मूर्धा में प्रयत्न करें। इसके पश्चात् होकर मूर्धा में प्राकर निवास करती हैं उस समय विद्या अपनी प्रात्मा को, उस परमात्मा को जो रागद्वेष से मुक्त रहित मनुष्यों की जिह्वा रूपी नाली पर कवित्व का अमृत हैं. जो सर्वदर्शी है, जिसे देवता भी नमस्कार करते है ऐसे बहने लगता है।' धर्म देश को करने वाले महत् देव के साथ एक भाव से जैन धर्म में सरस्वती का महत्वपूर्ण स्थान है । इसका देखे । जो इस कार्य को सफलता पूर्वक कर लेते है वे प्रमाण कुषाण कालीन जैन शिल्प की सरस्वती प्रतिमा पिण्ड स्वभाव को सिद्ध हुए समझे जा सकते है। यह है। प्रभिधान चिन्तामणि नामक ग्रन्थ मे सरस्वती के विवरण हिन्दुनो की षट्चक्रवेध पद्धति पर आधारित है । भनेक रूपों की चर्चा करते हुए कहा गया है कि वाग, हेमचन्द्र ने अपने योगशास्त्र नामक ग्रन्थ मे ध्यान योग ब्राह्मी, भारती, गौ, गीगणी, भाषा, सरस्वती श्रुत देवी, की व्याख्या करते हुए लिखा है कि "ध्यान से योगी वीत- वचन, व्यवहार, भाषित भौर वच्स् इन सभी को एक राग हो जाता है ।" उन्होंने अनेक मन्त्रों में तो हिदुओं दूसरे से प्रभिन्न समझना चाहिये।' इसी प्रकार हरिवंश के बीजाक्षरो को ज्यों का त्यों स्वीकार कर लिया है। पुराण मे भी सरस्वती का उल्लेख मिलता है। इस प्रथ शाक्त सम्प्रदाय मे सरस्वती के रूप में दुर्गा की उपा- में सरस्वती को लक्ष्मी के समान मांगलिक देवी माना सना की जाती है । दुर्गा सप्तशती मे कहा गया है कि गया है । "तिलोय पण्णत्ती' मे सरस्वती को श्रृतदेवी स्वहस्त कमल में घंटा, त्रिशूल, शख, मूसल, चक्र, धनुष, कहकर पुकारा गया है। और बाण को धारण करने वाली, गौरी देह से उत्पन्न, जैन धर्म के श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों सम्प्रदायों त्रिनेत्रा, मेधास्थित चन्द्रमा के समान कान्ति वाली संसार में 'सरस्वती देवी को श्रद्धा की दृष्टि से देखा गया है । की प्राधार भूता, शुम्भादि दैत्य मदिनी, महासरस्वता यद्यपि श्वेताम्बर सम्प्रदाय के मूर्ति शिल्प में ही इसका को हम नमस्कार करते है । सरस्वती को 'सरस' को उल्लेख मिलता है। दिगम्बर सम्प्रदाय मे तो हमे तीर्थअधिष्ठात्री देवी माना गया है । वह गति प्रदान करने कूरो, सर्वतो भद्रिका प्रतिमानों, सहस्रकूट जिनालयों, वाली, मस्तिष्क के अन्धकार को दूर करके ज्ञान से प्रका- नन्दीश्वर जिनालयो, ममवसरण जिनालयो, मादि को शित करने वाली देवी है । समस्त देवों और मनुष्यो को परम्परा के अलावा विद्या देवियो, प्रष्ट मातकायो, बुद्धि प्रदान करने वाली सरस्वती को ही माना गया है। क्षेत्रपाल, सरस्वती पोर नव गृह की भी मान्यता है । जैन धर्मावलम्बियो ने सरस्वती की उपासना को प्रत्यक्ष जैन धर्म मे १६ विद्या देवियो के समूह की भी कल्पना रूप से अपने धर्म का अंग मान लिया है। बाल चन्द्र को गई है, जिनके नाम है . रोहिणी, प्रज्ञप्ति, वज्रशृखला सूरी के वसन्त विलास महाकाव्य मे कहा गया है कि वज्रांकुशा, जाम्बूनदा, पुरूषदत्ता, काली, महाकाली, चित्त रूपी चचलता त्यागकर तथा प्राणादि पंच वायु के (या वैरोट्या,) गोरी गान्धारी, ज्वाला, मालिनी, व्यापार को स्तम्भित करके मूर्या प्रदेश मे जो स्थिर मानवी, वैरोटी' अच्युता" मानसी, पोर महामानमी । शोभावाली सरस्वती का तेजो मण्डल देखते हैं उस ज्योति- कही कहीं इन विद्या देवियों के कुछ भिन्न नाम भी मण्डल की हम उपासना करते है। सुषुम्ना नाडी रूपी मिलते है, जैसे रोहिणी, प्रज्ञप्ति, बज्रशृखला, कूलिशाबादली सरस्वती के तेजोमय जब बिजली के दण्ड से भेदित कुशा, चक्रेश्वरी, नरदत्ता, काली, महाकाली, गौरी, १. हेमचन्द्र, पूर्वो० प्रष्टम प्रकाश । ६. अभियान चिन्तामणि, (देवकाण्ड द्वितीय)-वकेश्वरी २. वही । ७. वही, महापग; प्राचार दिनकर (उदय ३३) मे भी ३. बसन्त विलास, १, ७०-७३ । यही नाम मिलता है। ४. वाग ब्राह्मी भारती गौगीर्वाणी भाषा सरस्वती, श्रुत ८. निर्वाण कलिका-ज्वाला देवी वचनं तु व्याहारो भाषितं वचः ।। ६. निर्वाण कलिका-रोट्या ५. हरिवंश पुराण, ५६, २७ । १०. निर्वाण कलिका-प्रच्छ प्ता
SR No.538029
Book TitleAnekant 1976 Book 29 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1976
Total Pages181
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size10 MB
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