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________________ जैन प्राचार्यों द्वारा संस्कृत में स्वतन्त्र ग्रंथों का प्रणयन 7 श्री मुनि सुशीलकुमार जैन प्राचार्यों में संस्कृत में स्वतंत्र प्रथों की रचना अपनी श्रेणी का विशिष्ट ग्रन्थ है। का श्रेय प्राचार्य उमास्वाती को है। ये सम्भवत. संस्कृत काव्य-निर्माण की दृष्टि से पहले जैन कवि (वि. १.२ शती) पहले विद्वान थे जिन्होने विविध पागम प्राचार्य समन्तभद्र (वि०२-३री शती) है जिन्होने 'स्वयंग्रंथों में बिखरे हए जैन तत्वज्ञान को योग, वैशेषिक आदि म्भस्तोत्र' जैसे स्तुति-काव्य का सृजन कर जैनों के मध्य दर्शन-ग्रंथों के समान सूत्रबद्ध किया और उसे तत्त्वार्था- संस्कृत काव्य-परम्परा का श्रीगणेश किया। "यह एक घिगम या महत्प्रवचन के रूप में मामने रखा। इन्होंने सर्वमान्य तथ्य है कि संस्कृत भाषा मे काव्य का प्रादुर्भाव प्रथम यह अनुभव किया कि विद्वत्समाज की भाषा संस्कृत स्तुति या भक्ति-साहित्य से हमा है गो जैन मंस्कृत काव्यों बनी रही है, इसलिए जैन-दर्शन संस्कृत में लिखे जाने पर की मूल आधार-शिला द्वादशांगवाणी है। 'जैनन्याय' का ही विद्वानों का ग्राह्य विषय बन सकेगा। चूकि ये ब्राह्मण वास्तविक प्रारम्भ भी आ० समन्तभद्र के ग्रन्थों (प्राप्तकुल में उत्पन्न हुए थे, इसलिये संस्कृत का अभ्यास होने मीमांसा आदि) से होता है। प्राचार्य ममन्तभद्र ने इष्टदेव के कारण इस भाषा में ग्रन्थ निर्माण करना उनके लिये की स्तुति के ब्याज से एक ओर हेतुवाद के आधार पर सहज था। वाचक उमास्वाती प्रागमिक विद्वान थे, सर्वज्ञ की सिद्धि की, दूमरी ओर विविध एकांतवादों की मत: उनकी सभी रचनाएँ भागम-परिपाटी को लिये हये समीक्षा करके अनेकान्तवाद की प्रतिष्ठा की उन्होंने हैं। उमास्वाती का तत्त्वार्थसूत्र जहाँ जैन तत्त्वज्ञान का जैन परम्परा मे सर्वप्रथम न्याय शब्द का प्रयोग करके एक मादिम संस्कृत ग्रन्थ है, वहाँ जैन धर्म व प्राचार का और न्याय शब्द दिया तो दूसरी ओर न्यायशास्त्र मे निरूपण करने वाला उनका 'प्रशमरतिप्रकरण' ग्रन्थ भी स्याद्वाद को गुम्फित किया। निम्नलिखित विषयों में निम्नलिखित जैन विद्वानों ने सर्वप्रथम संस्कृत रचना प्रस्तुत की :विषय सर्वप्रथम रचना समय रचयिता जैन दर्शन तत्त्वार्थसूत्र (वि० १-२ शती) प्राचार्य उमास्वाती २. जैन न्याय प्राप्तमीमांसा (वि० २-३ शती मा० समन्तभद्र स्वयम्भस्तोत्र मादि .. (क) भक्ति काव्य (ख) पौराणिक (ग) चरित काव्य (घ) सन्देश काव्य स्वयम्भूस्तोत्र पाचरित वरांगचरित नेमिदूत रविषण जटासिंह नन्दी विक्रम (६० ६७६) (८वीं शती) (ई. १३वीं शती का अन्तिम चरण) ८वीं शती ९वीं शती ८वीं शती (3) सन्धान काव्य (च) सूक्ति काव्य (छ) खण्ड काव्य द्विसन्धान पारमानुशासन पार्वाभ्युदय धनंजय गुणभद्र जिनसेन
SR No.538029
Book TitleAnekant 1976 Book 29 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1976
Total Pages181
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size10 MB
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