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________________ | वीर-सेवा-मन्दिर के अभिनव प्रकाशन जैन लक्षणावली (दूसरा भाग) विषय-सूची क० विषय १. परमात्मा का स्वरूप २. जैन रास साहित्य का दुर्लभ हस्तलिखित ग्रन्थ विक्रम लीलावती चौपाई-डा. सुरेन्द्र कुमार मार्य, उज्जैन ३. देवानांप्रिय प्रियदर्शी अशोकराज कौन था ? चिर प्रतीक्षित जैन लक्षणावली (जैन पारिभाषिक -डा. सत्यपाल गुप्त, एम. ए., पी-एच डी., शब्दकोश) का द्वितीय भाग भी छप चुका है । इसमे लगलखनऊ भग ४०० जैन ग्रन्थों से वर्णानुक्रम के अनसार लक्षणों का ४. हस्तिमल्ल के विक्रान्तकौरव में प्रादि तीर्थकर संकलन किया गया है। लक्षणो के सकलन में प्रन्थकारों ऋषभदेव-श्री बापूलाल प्रांजना, उदयपुर के कालक्रम को मुख्यता दी गई है । एक शब्द के अन्तर्गत ५. महावीर का धर्म-दशन : आज के सन्दर्भ में जितने ग्रन्थों के लक्षण संग्रहीत हैं. उनमें से प्राय: एक -~-श्री वीरेन्द्र कुमार जैन, बम्बई १२ प्राचीनतम ग्रन्थ के अनुसार प्रत्येक शब्द के अन्त में ६. ज्ञान की पावन ज्योति बुझ गई है हिन्दी अनुवाद भी दे दिया गया है। जहां विवक्षित लक्षण -श्री कुन्दनलाल जैन, दिल्ली में कुछ भेद या होनाधिकता दिखी है वहां उन ग्रन्थों के ७. भगवान महावीर तथा श्रमण संस्कृति निर्देश के साथ २-४ प्रन्थों के प्राश्रय से भी अनुवाद ---श्री राजमल जैन, नई दिल्ली किया गया है। इस भाग में केवल 'क से प' तक लक्षणों ५. मालवा के शाजापुर जिले की अप्रकाशित का संकलन किया जा सका है। थोड़े ही समय में इसका जन प्रतिमाएँ-डा. सुरेन्द्र कुमार आर्य, उज्जैन २४ तीसरा भाग भी प्रगट हो रहा है। प्रस्तुत प्रन्थ शोधाथियों ६. तीन प्रप्रकाशित रचनायें-श्री कुन्दनलाल के लिए तो विशेष उपयोगो है ही, साथ ही हिन्दी अनुवाद जैन, दिल्ली के रहने से वह सर्वसाधारण के लिए भी उपयोगी है। १०. रयणसार : स्वाध्याय की परम्परा मे द्वितीय भाग बड़ प्राकार में ४१८++२२ पृष्ठो का -डा. देवेन्द्र कुमार शास्त्री, नीमच है। कागज पुष्ट व जिल्द कपड़े को मजबूत है । ११. भास के श्रमण क --डा. राजपुरोहित मल्य २५-०० ० है। यह प्रत्येक यूनीवसिटी, सावं१२. वेदो मे जैन सस्कृति के गूजते स्वर -श्री जी. मी जन । जनिक पुस्तकालय एव मन्दिरो मे स ग्रहणीय है। ऐसे १३. जैन सस्कृत नाट को की कथावस्तु : एक विवेचन ग्रन्थ बार-बार नहीं छप सकते। समाप्त हो जाने पर - श्री बापूलाल ग्रांजना. उदयपुर फिर मिलना अशक्य हो जाता है। १४. प्रायुर्वेद के ज्ञाता जैनाचार्य जैन लक्षणावली (तृतीय भाग) ---डा. हरिश्चन्द्र जैन, जामनगर (मुद्रणाधीन) १५. तीर्य कर महावीर - श्री प्रेमचन्द जैन, श्रवक धर्म सहिता : श्री दरियावसिंह सोधिया ५.०० एम. ए, दर्शनानाय, जयपुर Jain Bibliography १६. ग्वजराहो के पाश्र्वनाथ जैन मन्दिर का (Universal Encyclopaedia of Jain References) Pp. 2250 शिला वैव-श्री मारुतिनन्दन प्रसाद तिवारी, (Under print) प्राजमगढ सध्यानशतक हिन्दी टोका-श्री बालचन्द्र शास्त्री १.०० १७. जैन प्राचायों द्वारा सस्कृत मे स्वतन्त्र ग्रथो प्राप्तिस्थान का प्रणयन - मुनि श्री सुशीलकुमार वीर सेवा मन्दिर, २१ दरियागज, १८. जैन मस्कृति की समृद्ध परम्परा दिल्ली ---- श्री जयन्ती प्रसाद जैन, मजफ्फरनगर अनेकान्त का वार्षिक मूल्य ६) रुपया अनेकान्त में प्रकाशित विचारों के लिए सम्पादक एक किरण का मूल्य १ रुपया २५ पैसा मण्डल उत्त दायो नहीं है। --सम्पादक
SR No.538029
Book TitleAnekant 1976 Book 29 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1976
Total Pages181
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size10 MB
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