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________________ ११४, वर्ष २६, कि. ३ अनेकान्त किन्नर एवं यक्षी मानसी तथा शातिनाथ के यक्ष गरुड है। प्रतिमाशास्त्रीय अध्ययन के माघार पर विवेच्य प्रतिऔर यक्षी महामानसी प्रतिमा के माथ अंकित है। मानो का काल १०वी-११वीं सदी है। उक्त समयावधि मल्लिनाथ एवं मुनिसुव्रतनाथ में यह भूभाग मध्य प्रदेश के यशस्वी राजवंश कलचुरियों इस विमूर्तिका में उन्नीसवें तीर्थकर मल्लिनाथ एव के अन्तर्गत था। प्रतः इसमें कोई संदेह नहीं है कि ये बीसवें तीर्थकर मुनिसुव्रतनाथ कायोत्सर्ग प्रासन मे ध्यानस्थ प्रतिमाएँ त्रिपुरी के कलचुरि-नरेशों के काल की है। है। दोनों के हृदय पर श्रीवत्स अकित है। केश धुंघराले यद्यपि कलचुरि-नरेश शैवमतानुयायी थे, परन्तु उनके और कर्णलोर लंबी है। दोनों के परिचारक अलग-अलग काल मे अन्य धर्मों का भी पर्याप्त प्रभाव था, जो उनकी है। मल्लिनाथ का दक्षिण एवं मुनिसुव्रतनाथ का वाम हस्त धार्मिक सहिष्णुता का परिचायक है। म्वण्डित है। अलग-अलग चारण, चौकियों पर लटकती प्रतिमाशास्त्रीय अध्ययन हुई झूल पर कलश एवं कच्छप चिह्न स्पष्ट दिखाई पड़ते जन प्रतिमानों में तीर्थकर प्रतिमाओं का निर्माण है। मल्लिनाथ की चौकी पर उनका यक्ष कुबेर और मति प्राचीनकाल से होता रहा है। तीर्थकर प्रतिमानों में यक्षी अपराजिता तथा मनिसुव्रतनाथ की चौकी पर उनके साम्य होने पर भी उन्हे उनके लांछन, वर्ण, शासनदेवता यक्ष वरुण और यक्षी बहुरूपिणी ललितामन में स्थित है। एवं केवलवक्ष के आधार पर अलग-अलग समझा जा पाश्र्वनाथ एवं नेमिनाथ सकता है। पार्श्वनाथ एव नेमिनाथ की यह द्विमूर्तिका भी प्रायः सभी प्रतिमाशास्त्रीय ग्रथों में तीर्थंकरों के संभवतः कारीतलाई से उपलब्ध हुई है। सम्प्रति यह लांछन के विषय में मतैक्य है. परन्तु शासन देव-देवियों प्रतिमा फिलाडेलफिया म्यूजियम प्राफ पार्ट मे सरक्षित प्रादि के विषय में मतैक्य नही है। कारीतलाई से प्राप्त है। कृष्ण-बादामी बलुग्रा पाषाण से निर्मित १०वी सदी ऋषभनाथ एवं प्रजितनाथ की द्विमूर्तिका में ऋषभनाथ के की इस द्विमूर्तिका मे पार्श्वनाथ एव नेमिनाथ एक वटवक्ष यक्ष-यक्षी गोमुख एवं चक्रेश्वरी उत्कीर्ण है। यद्यपि के नीचे कायोत्सर्ग सन मे है। पार्श्वनाथ के मस्तक । अधिकाश ग्रथों जैसे रूपमण्डन, अभिधानचिन्तामणि, पर फैले हा सात फणों का छत्र है। नेमिनाथ का लांछन अमरकोश, दिगम्बर जैन ग्राइकोनोग्राफी (वर्जेश) एव शंख है। तीर्थकरों के दोनों पाश्वो मे भक्त एव चंवर हरिवशपुराण के अनुसार ऋषभनाथ का शासनदेव गोमुख लिए हुए परिचारक है। मस्तक के ऊपर छत्रावलि के बतलाया गया है, किन्तु अपराहितपृच्छा एवं वास्तुसार दोनों पाश्वों पर हस्तियों का प्रकन है। के अनुसार वह वृषवक्त्र है। प्रत हम इस निष्कर्ष पर अंबिका एव पद्मावती पहंचते है कि उक्त प्रतिमा के निर्माण का प्राधार अपरारायपुर-संग्रहालय मे किसी एक जैन देवालय के जितपृच्छा एवं वास्तुसार न होकर प्रथम पाच ग्रंथ थे। चौखट का खण्ड संरक्षित है। उसकी दाहिनी ओर के कारीतलाई से प्राप्त मूर्ति अंबिका की गोद में बालक अर्घ भाग में कोई तीर्थकर पद्मासनस्थ है। उनके दोनों एवं पद्मावती के मस्तक पर सर्प-फण है। प्रतिमाशास्त्रीय ओर एक-एक तीर्यकर कायोत्सर्ग मुद्रा में ध्यानस्थ हैं। ग्रथों के अनुसार, अबिका के वर्णन में अन्तर है । रूपमण्डन धुर छोर पर मकर एवं पुरुष है। बायी मोर एक विद्या- (६।१६) के अनुसार, अबिका का वर्ण पीत और प्रायुध घर अकित है एव नीचे ताख मे अम्बिका एवं पद्मावती नाग-पाश-अंकुश और चतुर्थ हस्त मे पुत्र बताया गया है। एक साथ ललितासन मे है। दोनों देवियां क्रमशः नेमि. अपराजितपृच्छा (२२१.२२) में अंबिका को द्विभुजी नाथ और पार्श्वनाथ की यक्षिणियां हैं। अबिका की गोद और उसका वर्ण हरा बताया गया है। इनके दोनों हाथों में बालक और पद्मावती के मस्तक पर सर्प का फण है। में से एक में फल और दूसरा वरमुद्रा में बताया गया है। उपर्युक्त वर्णन से यह स्पष्ट होता है कि कारीतलाई नेमिनाथचरित' (जैन प्राइकोनोग्राफी, पृ० १४२) में से प्राप्त जैन द्विमूर्तिका प्रतिमाएँ कला की दृष्टि से सुन्दर अबिका के दाहिने हाथ में पुत्र और दूसरे मे अंकुश बताया
SR No.538029
Book TitleAnekant 1976 Book 29 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1976
Total Pages181
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size10 MB
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