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________________ कारीतलाई को द्विमूर्तिका जैन प्रतिमाएं श्री शिवकुमार नामदेव कारीतलाई, मध्यप्रदेश के जबलपुर जिले की मुड़- अजितनाथ एवं संभवनाथ वारा तहसील से २६ मील उत्तर-पूर्व मे कैमूर की द्वितीय जैन तीर्थकर अजितनाथ एव तृतीय तीर्थकर पूर्वीय पर्वतमालाओं मे स्थित है। प्राचीन काल में यह संभवनाथ की इस ४'.७" ऊँची द्विमूर्तिका में दोनों तीर्थंकर स्थान कर्णपुर के नाम से विख्यात था। यहां से उपलब्ध कायोत्सर्गासन में स्थित हैं। दोनों के हाथ एव मस्तक बहुसंख्यक हिन्दू, जैन एवं बौद्ध प्रतिमाएँ इस बात की। खण्डित है। उनके मस्तक के पीछे प्रभामण्डल, एक-एक साक्षी हैं कि यहां हिन्दू तथा बौद्ध धर्मों के साथ-साथ जैन- छत्र, एक-एक दंदुभिक, हाथियों के युग्म एवं पुष्पमालायें धर्म का भी व्यापक प्रचार रहा है। लिए विद्याधर अंकित हैं। उनके अलग-अलग परिचारक कारीतलाई से प्राप्त जैन द्विमतिका प्रतिमाएँ कला के रूप में सौधर्म और ईशान चन्द्र चंवर धारण किये खड़े की दृष्टि से उत्कृष्ट है। इनमें से प्रत्येक में दो-दो तीर्थकर हैं। तीर्थकरों के चरणों के निकट भक्तजन उनकी पर्चा कायोत्सर्ग ध्यानमद्रा में है। उनकी दष्टि नासिका के करते हुए प्रदर्शित किये गये हैं। तीर्थंकरों को अलग-अलग अग्र भाग पर केन्द्रित है। इन द्विमूर्तिका प्रतिमाओं में पादपीठ पर खड़े हुए दिख लाया गया है। प्रजितनाथ के पादपाठ पर खड़ हुए। तीर्थकर के साथ अष्टप्रातिहार्यों के अतिरिक्त तीर्थंकर का पादपीठ पर हस्ति एवं संभवनाथ के पादपीठ पर वानर लांछन एवं उनके शासन देवताओं की भी मतियां हैं। अंकित हैं। दोनो के साथ उनके यक्ष-यक्षी क्रमशः महाजहां तक प्रतिमा द्रव्य का प्रश्न है, अधिकांश प्रतिमायें यक्ष एवं रोहिणी तथा त्रिमुख एवं प्रशप्ति हैं। चौकी पर श्वेत बलुआ पाषाण की हैं । सिंहों के जोड़े एवं धर्मचक्र है। प्रतिमा दसवीं शती की है। ऋषभनाथ एवं अजितनाथ । पुष्पदंत एवं शीतलनाथ भगवान् ऋषभनाथ एवं अजितनाथ की यह प्रतिमा ३.७" ऊँची, श्वेत बलुमा पाषाण की इस द्विमूर्तिका श्वेत बलुमा पाषाण की है मौर कायोत्सर्गासन में ध्यानस्थ में नवें एवं दसवें तीर्थकर पुष्पदन्त एवं शीतलनाथ कायोहै। प्रथम एवं द्वितीय दोनों तीर्थकरो के मुख तथा हस्त सर्गासन में ध्यानस्थ हैं। पुष्पदंत का दक्षिण एवं शातल खंडित हो गए है। दोनों के हृदय पर श्रीवत्स चिह्न है नाथ का वामहस्त खण्डित है। चौकियों पर उनके लांछन तथा प्रभामण्डल भी अलग-अलग है। त्रिछत्र, दुन्दुभिक, क्रमशः मकर एवं श्रीवत्स बने है। पुष्पदंत का यक्ष हस्ति एव पुष्पवृष्टि करते हुए विद्याधरों का प्रकन अभिजित एवं यक्षी महाकाली तथा शीतलनाथ का यक्ष कलात्मक है। दोनों के परिचारक इन्द्र एवं पूजक प्रलग- ब्रह्म एवं यक्षी मानवी अंकित हैं। मलन है। चौकियों पर सिंहयुग्म अंकित है। प्रथम धर्मनाय एवं शांतिनाथ तीर्थकर भगवान् ऋषभनाथ की चौकी पर उनका लांछन महंत घासीराम स्मारक संग्रहालय, रायपुर (क्रमांक वृषभ एवं यक्ष-यक्षी गोमुख तथा चक्रेश्वरी हैं। तीर्थकर २५३१) में संरक्षित ३.७" ऊँची दसवीं सदी में निर्मित अजितनाथ की चौकी पर हस्ति एवं यक्ष-यक्षी महायक्ष इस द्विमूर्तिका में १५वें तीर्थकर धर्मनाथ एवं सोलहवे तथा रोहिणी का अंकन है। प्रतिमाशास्त्रीय अध्ययन के तीर्थकर शांतिनाथ कायोत्सर्गासन में हैं। धर्मनाथ की दृष्टिकोण से उक्त प्रतिमा का काल दसवीं शती ई० ज्ञात चौकी पर उनका लांछन वष एवं शांतिनाथ की चौकी होता है। प्रतिमा ३.७" ऊंची है। पर उनका लांछन मुग उत्कीर्ण है। धर्मनाप के यक्ष
SR No.538029
Book TitleAnekant 1976 Book 29 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1976
Total Pages181
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size10 MB
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