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________________ 2 " विशेषण भी प्राप्त होते है यह छः खण्ड का अधिपति" और राजर्षियों का नायक सार्वभौम राजा होता है।" चौरासी लाख हाथी, " चौरासी लाख रथ", बत्तीस हजार मुकुटबद्ध राजा, ३२ हजार देश", ६६ हजार रानिया", ७२ हजार नगर", ६६ करोड गांव ४, ९६ हजार द्रोण मुख ४८ हजार पतन", १६ हजार पेट" पन्तद्वीप", १४ हजार सवाह", एक लाख करोड़ हल", तीन करोड़ व्रज" सात सौ कुक्षिवास" ( जहां रत्नो का व्यापार होता है ) अट्ठाईस हजार सघन वन", प्रठारह हजार म्लेच्छ राजा नो निधियां चौदह रत्न और दस प्रकार के भोगो का वह स्वामी होता है । प्रादिपुराण के संतीसवें पर्व मेउको नौ निधियों, चौदह रत्नों तथा धन्य वैभव और दस प्रकार के भोगो का विस्तृत वर्णन है । उलका शरीर वज्रवृषभनाराचसहनन का होता है तथा शरीर पर चौमठ लक्षण होते है । " 7 " २. मुकुटवद्ध राजा"। ३. कुद्ध (मौलिवढ ) " । मुकुटबद्ध ४. महामण्डनिक चार हजार राजाओं का प्रधि पति" । ५. मण्डलाधिप । ६ अमिराज" । .६८ प्रादिपुराण में राजनीति ७. भूपाल । ८. नृप । और मित्र की अपेक्षा राजा चार प्रकार के होते शत्रु है : १. शत्रु, २. मित्र, ३. शत्रु का मित्र और ४. मित्र का मित्र । अच्छे मित्र से सब कुछ सिद्ध होता है ।" शत्रु का कितना ही विश्वास क्यों न किया जाए वह घण्ट में ४६. ३७.२० ४७. ४१.१५५ ४५-४६. ३७.२३-२४ ५०. ३७.३२ ५१-५२. ३७.३३-३६ ५६. ६०.६६ ६१. ६७.६६ ६३-६४. ३७.७१-७३ ६७. २६.७५ ६६. ४१.१६ ५३-५८. ३७.६०-६६ ६०. ३७.३० ६२. ३७.७७ ६६. ३७.२७, ३७.२भ ६८. ४४.१०७ ७०. १६.१५७ यही रहता है।" C राजा के कर्तव्य न्यायपूर्ण व्यवहार न्यायपूर्ण व्यवहार करने वाले राजा को ससार मे यश का लाभ होता है, महान वैभव के साथ-साथ पृथ्वी की प्राप्ति होती है, परलोक में प्रभ्युदय की प्राप्ति होती है तथा वह तीनों लोकों को जीतता है। न्याय को धन कहा गया है । न्यायपूर्वक पालन की हुई प्रजा (मनोरथों को पूर्ण करने वाली) कामधेनु के समान मानी गई है।" स्याय दो प्रकार का है- दुष्टो का निग्रह और शिष्ट पुरुषो का पालन ।" एक स्थान पर कहा गया है कि धर्म का उल्लंघन न कर धन कमाना, रक्षा करना, बढाना और योग्य पात्र में दान देना इन चार प्रकार की प्रवृत्तियो को सज्जनों ने न्याय कहा है। जैन धर्मानुसार प्रवृत्ति करना संसार में सबसे उत्तम न्याय है।"" अन्यायपूर्वक श्राचरण करने से राजाओं की वृत्ति का लोप हो जाता है ।" ८२ कुलपालन कुलाम्नाय की रक्षा करना और कुल के योग्य आचरण की रक्षा करना कुलपालन कहलाता है ।" राजानों को अपने कुल की मर्यादा का पालन करने का प्रयत्न करना चाहिए। जिसे अपने कुल मर्यादा का ज्ञान नहीं है यह अपने दुराचारों से कुल को दूषित कर सकता है ( ३८.२७४) । द्वेष रखनेवाला कोई पाखण्डी राजा के सिर पर विषपुष्प रख दे तो उसका नाश हो सकता है। कोई वशीकरण करने के लिए उसके सिर पर वशीकरणपुष्प रख दे तो यह मूढ़ के समान आचरण करता हुआ दूसरे के वश हो जायेगा । अतः राजा को अन्य मतवालो के शेषाक्षत, माशीर्वाद और शातिवचन प्रादि का परि त्याग कर देना चाहिए अन्यथा उसके कुल की हानि हो सकती है। " ७१. ३१.६५, ३७.८० ७३. १४.७० ७५. ३४.३६ ७७. ४३.३२२ ७६.३८.२६६ १०१ ८१. ४२.१३-१४ ८३. ४२.५ ७२. १६.२६२ ७४. २०.१०६ ७६. ४३.४१४ ७८. ३८.२६३ ८०. ३८.२५६ ८२. ३६.२५८ ८४. ४२.२१-२३
SR No.538029
Book TitleAnekant 1976 Book 29 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1976
Total Pages181
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size10 MB
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