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________________ कविवर जगतराम : व्यक्तित्व और कृतित्व 5 श्री गोकुलप्रसाद जैन, नई दिल्ली जगतराम (वि० सं० १७२०) का अपर नाम जगराम कविवर काशीदास ने अपनी 'सम्यक्त्व-कौमुदी' में उनको भी था । पद्मनन्दिपंचविंशति भाषा के कर्ता जगतराम भी रामचन्द्र का पुत्र माना है।' 'पद्मनन्दिपंचविंशतिका' संभवतः ये जगतराम ही थे जिन्होंने विभिन्न नामों से अपनी को प्रशस्ति में उको स्पष्टतया नन्दलाल का पुत्र माना रचनायें प्रस्तुत की हैं। इनके पितामह का नाम भाई दास गया है ।' श्री प्रारचन्द जी नाहटा ने उनको रामचन्द्र था। ये सिंघल-गोत्रीय अग्रवाल थे । पहिले ये पानीपत में का पुत्र माना है।' रहते थे और बाद में प्रागरा पाकर रहने लगे । प्रागरा इनके पितामह तो गोहाना के निवासी थे, किन्तु उस समय प्रसिद्ध साहित्यिक केन्द्र था तथा कुछ समय उनके दोनो पुत्र पानीपत मे पाकर बम गए थे। जगत पूर्व ही वहां बनारसीदास जैसे उच्च कवि हो चुके थे। राम बाद में प्रागरा पाकर रहने लगे थे। यह बात तो इनके पितामह भाई दास श्रावकों में उत्तम और जगतराम की रचनाओं से और उनके प्राश्रित कवियो के धार्मिक कार्य कराने में प्रसिद्ध थे। उनकी पत्नी भी कथनों से भी प्रमाणित होती है कि जगतराम मपरिवार धार्मिक प्रवृत्ति वाली थीं। उनके दो पुत्र हुए : रामचन्द्र आगरा में बस गए थे तथा ताजगन में रायते बाग मे रहते और नन्दलाल । दोनों ही अपने माता-पिता के समान थे। वे औरंगजेब के दरबार मे किमी ऊँचे पद पर ग्रासीन स्वस्थ, सुन्दर और गुणी थे।' जगतराम नन्दलाल के थे और राजा की पदवी से विभूपिन थे । इसी कारण पुत्र थे या रामचन्द्र के, इस विषय में अभी मतभेद है। लोग उन्हें जगतराप भी कहने लगे थे । कविवर काशी. १. 'भाईदास मही मे जानिये, ता तिय कमला सम मानिए। ३. सुजानसिंघ नन्दलाल सुनन्द, जगतराय सुत है टेवाचद । ता सुत प्रति सुन्दर बरबीर उपजे दोऊगुण सायरधीर॥ जो लौ सागर ससि दिनकर,तोलौ अविचल एपरिवार ।।' दाता भुगता दीनदयाल, श्री जिनधर्म सदा प्रतिपाल। -पुण्यहर्ष, पद्मनन्दिपंचविंशतिका, प्रशस्ति, प्रशस्ति रामचंद नंदलाल प्रवीन,मबगुण ग्यायक समकित लीन॥ संग्रह, पृ० २३४। -कवि काशीदास, सम्यक्त्व-कौमुदी; डा. ज्योति- ४ अगरचन्द नाहटा, 'मागरे के साहित्य प्रेमी जगतराय प्रसाद, हिन्दी जैन साहित्य के कुछ कवि; अनेकांत, ज्ञात और उनका छन्दरत्नावली ग्रन्थ", भारतीय वर्ष १०, किरण १०। साहित्य, वर्ष २, अंक २, अप्रैल १९५७, प्रागरा विश्वतथा विद्यालय, हिन्दी विद्यापीठ, आगरा, पृ० १८१ । भाईदास श्रावक परसिद्ध, उत्तम करणी कर जस लिद्ध। ५. सहर गुहाणावासी जोइ, पाणीपथ आइ है सोइ । नंदन दोइ भये तमु धीर, रामचद नन्दलाल सुवीर ॥ रामचद सुत जगत अनूप, जगतराय गुण ग्यायकभूप ।। सालिभद्र कलियुग मे एह, भाग्यवंत सब गुण को गेह । सम्यक्त्व-कौमुदी, प्रशस्ति, अनेकान्त, वर्ष १०, ---पुण्यहर्ष, पद्मनन्दिपचविंशतिका, प्रशस्ति संग्रह, किरण १० । जयपुर, अगस्त १९५०, पृ० २३३ । । ६. सहर प्रागरी है सुख थान, परतपि दौसे स्वर्ग विमान । २. 'रामचद सुत जगत अनूप, जगतराय गुण ग्यायक भूप।' चारो वरन् रहे सुख पाइ,तहां बहुशास्त्र रच्या सुखदाइ॥ काशीदास, संम्यक्त्व कौमुदी, प्रशस्ति, अनेकान्त, वर्ष -पद्मनन्दिपविशतिका, प्रशस्तिसग्रह, पृ०२३४ । १०, किरण १.। ७. अनेकान्त, वर्ष १०, किरण १०, पृ. ३७५ ।
SR No.538029
Book TitleAnekant 1976 Book 29 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1976
Total Pages181
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size10 MB
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