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________________ ८४, वर्ष २८, कि०१ अनेकान्त गरा। उचित धाम वन कोडति तिनमें झझरी है न्यारी। सिंघासन चल बैठे प्रभ जो हमही प्रादि प्रज्ञाकारी। सीचे झाव विवव अनार जहां तहां नास लटकत भारी॥ श्री जिन दीन दयाल भए तव लीने सँग धनुषधारी। २८ नेमिनाथ के हाथ पकरि कर खड़ी भई भावज सारी। सभा सथानक प्राइ विराजे राज दियौ प्रानन्दकारी। प्रोढ़े चोर तीर सरवर के जहाँ खड़ी है जदुनारी। १७ ।। लछिमी पति को राज वियो कधकीयो निसंक सुभयटारी । जबही हरि इक विप्र बुलाया महा प्रबीन कलाधारी। सतिभामा प्रभु को गहि जामा कर सों कर गहि गनधारी उग्रसेन तुरत पठायो चलो तहाँ तें ततकारी। तेल फुलेल सुचोवा चंदन प्रतर गुलाब सुफुल नारी। १८ लिखौ लेख ले गयो ततछिन दीनो जाहस सुखकारी। कईक हास विलास करत कई कटाक्ष करति प्यारी। तुम पुत्री वित सभद विज सत तिन सो करिय हितकारी उड़त गुलाल परस्पर ऊपर नेवर बाजे झनकारी। मुदित मन्द प्रमोद भए चित वाचत हरष नर-नारी। कईक प्रभु को मुख चुम्बन कर हसि हसि करती किलकारी कर सनमान पान बह देकर लिखो साचो पाइ सुधारी। कयक प्रभु मंग सुपरस कईक कर सों कर धारी। तुम लाइक हम जोग नहीं हैं पकरी बांह सु हम तुम्हारी। रंग रंग सुहोरो खेले हिय हुलास भयो भारी । मैं अति दीन कीन बहु पासा तुम लिखी वरज बह लचारी रुकमनि जामवंती सतभामा करती मरज सबै हारी। टोका और सभ लगुन पठाई सांवन षष्ठी उजियारी ।३२॥ अब वे पीर भए प्रभु कवते तुम तो हो करुनापारी। कियो विदा नाम दाहै कदि प्रायो नगर द्वारकारी। हम प्राधीन भई कर जोरे कर-कर भरज सब हारी। प्रथम प्रणाम कियो सुदीयो तिन लीयो लेख मुरलीधारी ब्याह कबूल करो यह अवसर नातर प्रब करिहै स्यारी ।२१ व कारहत्यारा २१ देख लेख ले गए जहां तहाँ सभद विज महाराजी री ।३३ जब प्रभु मंद-मंद मसुक्याने सो मुसुक्यान लगी प्यारी। हाथ जोरि करि विनो पारि करि जोरि करी बिनती सारी हकमनि जामवंती सतभामा तिन यह निहर्च करि धारी। गढ़ गिर नेरी पास झनागढ़ उग्रसैनि है वुधिधारी। ब्याह कबूल कियौ प्रभु जी ने तब हरषी है जदुनारी २२ तिनके टीका लगन पठाई और लिखी बड़ी मनहारी ।३४॥ करि प्रसनान पहिरि पाटम्बर अम्बर पहरे सुखकारी। टीका और शुभ लगन जु पाई भई सगाई हितकारी। जामवंती सों हँसि कर बोले धोवती निचोरो तुम म्हारी। सब जन को सख चन भयो तब लियो बुलाइ कुटुम सारी प्रबला वषि विचार मन में हों विषंडपति की नारी । २३ सभ स्याति सभ परी महरति सुभ दिन सैनों टीका री। है त्रिषंड पति नायक मेरो ना यह हुकम कियो भारी। तब बह दाम दमोदर खरच तुरत बुलायो भण्डारी। कहा कहों मैं तुम सों देवर राखी कान सु भै थारी। कनिक रतन बहु बासन भषन हय गय सहित सुअंभारी। कौन कहै हरि सों वचन ए प्रबनातर जान पर सारी। ग्राम नगर पुर पटन बहु विधि सिक्के सूनी सुखलारी। सुनत बात सतभामा बाई चलि पाई रुकमिनि प्यारी। दीया दान सनमान ज करिक विदा कियो जु विप्र चारी। कर गहि बोवती उठाइ लई तिन पैसे वचन सु उचारी। इत वित दोइ घर होत बधाए गावत गीत जु नर-नारी। रहित विवेक वधि करही निते यह कानत मैं धारी । २५ नर-नारी तब तिलक संजोयो करी तेल की तैयारी। इन्द्र चन्द्र नागेन्द्र खगादिक नर सुर सेव कर सारी। मतिमन चौक पराइ सवा सीन धरी तहाँ सो पनवारी। हे त्रिलोक नाइक पति जे प्रब ना पाए हरि बलकारी। श्री जिन तन दुति सीसह सोहै उडगन सी जु खड़ी नारी। करनि में तूं कर बड़ी है, तोको सम जयरं नारी। २६ । केयक हरदी तेल चढ़ावति कोई न्हावति भरि भारी। को हथियार तहा प्रब बसाला पाए तहाँ जन सुखकारी। कैयक सार सुगग्ष लगावति कैई लगावति सरझारी। षनष चढाइ करी शंख पनि सुनि में उपजी प्रति भारी। कैयक पान विरी कर धरती कई संभारति वागौरी ।। गरज घन, वन सिंह बहारो, सुनो शबद गिरवरधारी। २७ मारतंड मनि ससि प्रचण्ड ति घरे श्रवन कुणाल भारी। प्रभुत सुनि धनि वीरति ततछिन मार गए तहाँ बलबारी भुजदण्ड वाजुनि करि मडित सहित मुद्रिका नगजारी। कोप कियो प्रभु काके ऊपर सबही सेव कर थारी। जगमग-जगमग जगमगाति धुकि-बुकि माकंठ सो कंठारी ॥
SR No.538028
Book TitleAnekant 1975 Book 28 Ank Visheshank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1975
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size15 MB
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