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________________ अथ श्री नेमिनाथ ब्याह श्री छुनक लाल कृत अथ छंद लिख्यते :दोहरा मुख पर अंचल डारि हंसी जहां कृष्न तनी गोपति सारी। प्रथम नमो अरहंत को दूजे सरसुति माइ। तव नारायन विलख बदन है मन में करो गिलफ्तारी। तीज गुरु परनाम कर छन्द रचौ हरपाइ । तास भ्रात बलभद्र कहीये इम सुनी भ्रात गिरवरपारी। छन्द इंद्र चंद्र नागिन्द्र खगादिक नर सुर सेवा कर सारी॥ जम्बू दीप सुहावनी जोजन लख विस्तार । करना सागर जगत उजागर है नर सागर नर भारी। भरत क्षेत्र दछिण दिसा सोरठ देस मझार। करुना पाइ धरंगे दीक्ष्या सो उपाउ को भारी। नगर द्वारका तह बस लसं सु सुरग समान । इमि बलभद्र भ्राता कहिए अब सुनिहै विरदं धारी। नव बारह जोजन तनी विस्तर ताकी जान । रित बसंत ततकाल ततछिन पाई है तहाँ सुखकारी। छप्पन कोट जादौ जहाँ बस महा बलवंत । वन उपवन फलफूल फलादिक फूल फले सु फुलवारी। ताही वंस विष भए बल नारायन मान। तिनपर षटपद गुंज करत है तिनको धुनि निकमत प्यारी। छन्द त्रिभंगी गलिनि गलिनि घरघर मंदिर मधि नटति नटतिसो नटवारी वसूदेव के नारायन हुमा नाम कृष्न जन सुखकारी। कान दन बजावत गावत गावत गंध्रप गनधारी। तास भ्रात बलभद्र कहिए बल कर मूसर के धारी। बाग बगीचन के वृच्छन पर कोकिल शब्द कर न्यारी। अदभत चक्ररतन हरि पायौ ताकी छबि प्रांतस न्यारी तव मनमोहन मतो सुकरिके धरै हिये कपट भारी। प्रभु नाम सार मनमें विचार कविलाल सुजिन पर बलिहारी॥ रुकमिनी जामवंती सतभामा गवरी और सुतनधारी। एक समै सब बैठे सभा बनी मानवकारी। लछिमी पदमा सों इमि बोले तुम हो सबही सुखकारी। मापस में मिलि मंत्र विचार बल की बात वली सारी।। रूप सील गुन लावणजुत हो और तुम मो अज्ञाकारी। हक पंडव बलमा बतावे कंइम बता गिरधारी। नेम प्रभुपे ब्याह रचाऊं जो तुम चतुर कला पारी। तब बलभद्र जवै उठि बोले तुम हो बालक अविचारी। हम मध के वचन जु सुन करि नम्रीभूत भई सारी। नेमि प्रभु सों तिहूं लोक में कोऊ नहीं है बलधारी।। पाइन बिछुमा पाइजेब धुंघुरू मेखल पं पगधारी। सुनत बात तब छोह भयो है तब हम बोले बनवारी। हिये हार मोतिन की माला गरे पचलरी रतनारी। तास भ्रात बल हमें बतावह कैसे हैं वे बलधारी। करनफल कानन में चमक, नमकं सीसफल भारी। कृडन तात नै तवी बुलाये माये श्री जिन जनतारी। चाली चमकति केई झमकति झमकारी। सभा सिंघासन बैठे प्रभु जी टेढ़ी कर अंगुरी धारी। दामिनी सी बमकं चम चम चम छम छम छम छमकारी अंगरि मधि वारि करि संकरि संकर सो है प्रति भारी। मापुस में बोले होले होले पोले पोले पगपारी। पांडव और सकल है जोषा हत है चतुर कसा पारी। कंदी कदन की विमल बदन की रसना रवन की रसधारी। नक न अंगुरी सषी होई, खेचि रहे जोषा भारी। मदी मदन को सबक सदन को जदुनंदन की है नारी। वंचि पेचि सबही पच हारे, देखत हैं तहां नरधारी । सिर धो सारी, सै पिचकारी, रंग की झारी कर धारी। श्रो जिनवर कर ऊंचो कोनी तहाँ झुलाए गिरधारी। बने तलाब बाग के अंदर तातडफूल फुलवारी।
SR No.538028
Book TitleAnekant 1975 Book 28 Ank Visheshank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1975
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size15 MB
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