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________________ प्रोम् महम् যাণকর महावीर निर्वाण विशेषांक परमागमस्य बीजं निषिद्धजात्यग्ध सिन्धुरविधानम् । सकलनयविलसितानां विरोधमथनं नमाम्यनेकान्तम् ॥ वीर-सेवा-मन्दिर, २१ दरियागंज, दिल्ली-६ वीर-निर्वाण संवत् २५०१, वि० सं० २०३२ श्री महावीर-स्तवनम् तिहुवण-भवणप्पसरिय-पच्चक्खववोह-किरण-परिवेढो। उइनो वि अणत्थवणो परहंत-विवायरो जयउ॥ -महाबन्ध अर्थ--प्रर्हत् (महन्त) भगवान रूपी उस सूर्य की जय हो, जो तीन लोक रूपी भवन में प्रसृत ज्ञानकिरणों से व्याप्त हैं तथा जो उदित हुए भी अस्त नहीं होते। सो जयइ जस्स केवलणाणुज्जलदप्पणम्मि लोयालोयं । पुढ पदिबिवं दोसइ वियसिय सयवत्तगभगउरो वीरो॥ -कसायपाहुड (जयधवल) अर्थ-जिसके केवलज्ञानरूपी उज्ज्वल दर्पण में लोक और प्रलोक विशद रूप से प्रतिबिम्ब के समान दिखाई देते हैं और जो विकसित कमल के गर्भ के समान समुज्ज्वल तथा सोनेके समान पीतवर्ण हैं, उन भगवान् महावीर की जय हो। जयइ जगजीव जोणी, विहाण प्रो जगगुरु जगाणन्यो। जगनाहो जगबन्धु, जयह जगपियामहा भगवं ॥ जयह सुयाणयभवो, तित्थयराणं अपच्छिमो जयह। जयइ गुरुलोयाणं, जयइ महप्पा महावीरो ॥ पर्य-जगत् के सम्पूर्ण चराचर जीवों के ज्ञाता तथा जगत के गुरु, नाथ, बन्धु पोर मानन्द-रूप पितामह भगवान् महावीर की जय हो, जय हो। द्वादशांग सूत्रों के जन्म-दाता, मन्तिम तीर्थकर, समग्र लोक के गुरु तथा महान् प्रात्मा, भगवान् महावीर की जय हो, जय हो।
SR No.538028
Book TitleAnekant 1975 Book 28 Ank Visheshank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1975
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size15 MB
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