SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 70
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भारतीय वाङमय को प्राकृत कथा-काव्यों की देन डा० कुसुम जैन, गुना प्राकृत कथा-साहित्य में विविध कोटि की कथामो- देता है जो चरित-काव्य के नायक या नायिका के चरित जन्तुकथा, लोककथा, प्रेमकथा, नीतिकथा प्रादि का प्रणयन के उदघाटन और विकास में सहयोगी होते है। इनमें हुमा है। यह साहित्य संस्कृत तथा पालि की अपेक्षा कथाप्रवाह की अक्षुण्णता पर कवि का ध्यान नहीं रहता, विपुल एव विविध है। प्राकृत कथा साहित्य का प्रारम्भिक इसीलिये इनमें कथा के प्रधान गुण कुतूहल तत्त्व का रूप हमें प्रागम और उसके टीका साहित्य में मिलता है। प्रभाव रहता है। इन चरित-प्रथो के नायक शलाकापुरुष नायाधम्मकहायो इस दृष्टि में विशेष उल्लेख्य है। टीका है। साहित्य में कथानों का विकसित और परिमाजित रूप इतिवृत्तात्मक धर्मकथानो मे उन कथाग्रन्थो का परि. प्राप्त होता है। गणन किया गया है जिनमे रसात्मक चित्रणों का प्रायः प्राकृत-कथाकारो ने कथानों का वर्गीकरण कथा के प्रभाव है अथवा रसात्मक स्थल अत्यल्प है। इनमे घटउद्देश्य के आधार पर किया है। सामान्यतः कथा के तीन नामों के इतिवत दिये गये है, अतः इन्हे इतिवृत्तात्मक भेद किये गये है-अकथा, विकथा और सत्कथा । सत्कथा धर्मकथाए कहा गया है। कालकाचार्य कथा, नर्मदासुन्दरीधर्म मे प्रेरित करने वाली तथा मुनिप्रणीत होने से उपादेय कथा. जिनदत्ताख्यान, श्रीपालकथा, महीपालकथा इसी है। काम और अर्थ का वर्णन होने से ससार का कारण कोटि के कथाकाव्य है। बनने वाली विकथा गहणीय है। इन कथानों के कामकथा, धर्म, अर्थ तथा काम से संकीर्ण कथा को संकीर्ण या प्रर्थकथा, धर्मकथा तथा मिश्रकथा इस प्रकार के भी भेद मिथकथा कहा गया है। प्राकृत मे इस कोटि की प्रनेक किये गये है । विकथा-स्त्रीकथा, भर्तृकथा, जनपदकथा, कथायें है। पादलिप्त की तरगवती ऐसी ही सरस तथा राजकथा, चौरकथा प्रादि कई प्रकार की होती है । सकीर्ण- उत्कृष्ट रचना थी, जिसकी परवर्ती कवियों ने पर्याप्त कथा मूलत. धामिक उद्देश्य को लेकर चलने वाली कि तु प्रशंसा की है। यह कृति अनुपलब्ध है। इसके गुजराती मर्थ पौर काम के तत्त्वों से मिश्रित होती है। यही कथा व जर्मन अनुवाद हो चुके है। वसुदेवहिण्डी गुणाढ्य की सरस और मनोहारी है। कथा के कल्पित और चरित बहत्कथा की भांति एक विशालकाय रचना है. जो नाम से दो भेद और किये गये हैं। कथा के सकलकथा, १०. लम्भको में विभक्त है तथा अनेक वृत्तान्तों से परिखण्डकथा, उल्लापकथा, संकीर्णकथा, तथा परिहासकथा-ये पर्ण है। इसकी रचना बहत्कथा को प्राधार बनाकर हुई पांच भेद भी किये गये है। सकल कथा चरितात्मक होती होगी। समराइच्चकहा एक धर्मकथा है, इसमे नायकहै। हेमचन्द्र ने कथा के १० भेद किये है, सकलकथा, प्रतिनायक की मनोभावनाओं के मुन्दर चित्रण है। कथा खण्डकथा, उल्लापकथा, पाख्यान, निदर्शन, मणिकुल्या, नौ जन्मों तक चलती है। मत्तहसित, उपकथा, बृहत्कथा पौर प्रवह्निक । पात्रों के समराइच्चकहा के प्रणेता हरिभद्रसरि के शिष्य माधार पर दिव्य और दिव्य मानुषी ये दो भेद किये गये उद्योतनसूरि ने कुबलयमाला नामक उत्कृष्ट चम्पूकोटि के कथाकाव्य की सर्जना की है। इस ग्रन्थ का, भाषा, छन्द, चरित-काव्य कथा से पृथक् कोटि के ग्रन्थ है। चरित- विषय-विविधता प्रादि दृष्टियों से बहुत महत्त्व है। कथाकाव्यों में कवि उन स्थलों और घटनाओं पर विशेष ध्यान कोश प्रकरण के रचयिता जिनेश्वरमूरि ने निर्वाणलीला.
SR No.538028
Book TitleAnekant 1975 Book 28 Ank Visheshank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1975
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy