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वैशालीतन्त्र
और बज्जियों में भेद करना कठिन है, क्योंकि बज्जिन यु०) के उल्लेखों से भी वजि (वैपाली, लिच्छवि) केवल एक अलग जाति के थे, बल्कि लिच्छवि मादि गण- गणतन्त्र की महत्ता तथा ख्याति का अनुमान लगाया जा तन्त्रों को मिला कर उनका सामान्य अभिधान वज्जि सकता है। पाणिनीय 'प्रष्टाध्यायी में एक सूत्र है-मा. (सं० वृजि) था और इसी प्रकार वैशाली न केवल वज्जि वज्जयो: कन ४।२।३१. इसी प्रकार, कौटिल्य ने 'मर्थसंघ की ही राजधानी थी बल्कि वज्जियो, लिच्छवियों तथा शास्त्र' मे दो प्रकार के संघों का अन्तर बताते हुए लिखा अन्य सदस्य गणतन्त्रों की सामान्य राजधानी भी थी। है-"काम्बोज, सुराष्ट्र मादि क्षत्रिय श्रेणियाँ कृषि, व्या. एक अलग जाति के रूप में वज्जियों का उन्लेख पाणिनि पार तथा शास्त्रो द्वारा जीवन-यापन करती है मौर लिच्छने किया है और कौटिल्य ने भी उन्हें लिच्छवियों से पृथक् विक, वृजिक, मल्लक, मद्रक, कुकुर, कुरु, पञ्चाल प्रादि बताया है। यूनान चाड ने भी वज्जि (फ-लि-चिह) श्रेणियां राजा के समान जीवन बिताती है।' देश और वंशाली (फी-शे-ली) के बीच भेद किया है। परन्तु पालि त्रिपिटक के ग्राधार पर ऐसा विभेद करना
रामायण तथा विष्णु पुराण के अनुसार, वंशालीसम्भव नही है। महापरिनिर्वाण सूत्र में भगवान् कहते
नगरी की स्थापना इक्ष्वाकु-पुत्र विशाल द्वारा की गई है। है, "जब तक बज्जि लोग सात अपरिहाणीय धर्मों का
विशाल नगरी होने के कारण यह 'विशाला' नाम से भी पालन करते रहेगे. उनका पतन नही होगा।" परन्त संयत्त प्रसिद्ध हुई। वृद्ध काल में इसका विस्तार नौ मील तक निकाय के कलिंगर सुत्त मे कहते है, "जब तक लिच्छवि
__था। इसके अतिरिक्त, 'वैशाली, धन-धान्य-समृद्ध तथा
था। लोग लकड़ी के बने तख्तो पर सोयेगे और उद्योगी बने जन-संकुल नगरी थी। इसमे बहुत से उच्च भवन, शिखर रहेगे; तब तक अजातशत्र उनका कुछ नही बिगाड़ सकता।' युक्त प्रासाद, उपवन तथा कमल-सगेवर थे । (विनयइससे प्रगट होता है कि भगवान बुद्ध वज्जि और लिच्छवि पिटक एवं लालत विस्तर) बौद्ध एवं जन-दोनो धमों के शब्दों का प्रयोग पर्यायवची प्रथं में ही करते थे। इसी प्रारम्भिक इतिहास से वैशाली का घनिष्ट सम्बन्ध रहा प्रकार विनय-पिटक के प्रथम पाराजिक में पहले तो वज्जि है। "ई० पू० पांच सौ वर्ष पूर्व भारत के उत्तर पूर्व भाग प्रदेश में दुभिक्ष पड़ने की बात कही गई है (पाराजिक मे दो महान् धमों के 'महापुरुषो' की पवित्र स्मृतियां पालि, पष्ठ १६, श्री नालन्दा-संस्करण) और ग्रागे चल वैशाली में निहित है।"". बनी हुई जनसंख्या के दबाव से कर वही (पृष्ठ २२ मे) एक पुत्रहीन व्यक्ति को यह चिता तीन बार इसका विस्तार या । तीन दीवारें इसे घर तो करते. दिखाया गया है कि कही लिच्छवि उनके धन को थी। "तिन्बती विवरण भी इसकी समृद्धि की पुष्टि करने न ले लें। इसमे जीपग्जिरों और लिच्छवियो की अभि- है। तिब्वती विवरण (सुल्य ३८0) के अनुसार, वैशाली जता प्रतीत होती है।"
में तीन जिले थे। पहले जिन में स्वर्ण-शिखरो से युक्त विद्वान् लेखक द्वारा प्रदर्शित इस अभिन्नता से मैं ... पर थे, दूसरे जिले में चांदी के शिखरो से युक्त. सहमत हूँ । इस प्रसंग में 'बज्जि' से बद्ध का तात्पर्य १४०००, घर थे तथा तीसरे जिले में तारे के शिखरो से लिच्छवियो से ही था और इमी प्राधार पर वज्जि सबधी युक्त २१००० घर थे। इन जिले में उत्तम, मध्यम तथा निम्न बुद्ध-वचनो की व्याख्या होनी चाहिए।
वर्ग के लोग अपनी-अपनी स्थिति के अनुसार रहते थे। अन्य ग्रंथों में उल्लेख :
(रारुहिल लाइफ आफ बुद्ध-पृष्ठ ६२)". । प्राप्त विपाणिनि (५०० ई० पू०) और कौटिल्य (३०० ई. . रणो के अनुसार वैशाली की जनसंख्या १६००० ७. काम्बोज सुराष्ट्र क्षत्रिय श्रेण्यादयो वार्ता- ___ ऐण्ड इन्स्टीट्यूशंस, (१९६३) पृष्ट ५०६.
शस्त्रोपजीविनः लिच्छिविक वृजिक-मल्लक- ६. बी. सी ला-हिस्टोरिकल ज्योग्रफी आफ ऐंशियेंट. कूकर-पाञ्चालादयो राजशब्दोपजीविनः ।
इण्डिया, फाइनेंस' में प्रकाशित (१९५४) पृष्ठ २६६. ८. बी. ए. सालतोर-ऐशियेंट इण्डियन पोलिटिकल थौट ११. बही--पृष्ठ-२६६.६७. .