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________________ सम्पादकीय महाश्रमण तीर्थंकर महावीर विश्व-इतिहास में ईसा-पूर्व छठी शताब्दी का काल अत्यन्त महत्वपूर्ण रहा है। अनेक देशों में माध्यात्मिक व्यग्रता तथा बौद्धिक विक्षोभ के चिह्न दष्टिगोचर हो रहे थे। भारत की स्थिति भी इस काल में अत्यन्त दयनीय थी। चारों ओर हिंसा, अनाचार, शोषण एवं कर्मकाण्ड का ताण्डव-नृत्य हो रहा था। वाणी-रहित दीन पशुमों की बलि देकर यज्ञादि धार्मिक कृत्य सम्पन्न किए जाते थे । शूद्र एवं नारी की स्थिति तो पशु से भी हीन तथा दयनीय हो चुकी थी। प्रहम्मन्य पण्डित विविध प्रकार के खण्डन-मण्डन से व्याप्त वितण्डावाद में व्यस्त थे तथा इतर सिद्धान्तों को हीन घोषित करके अपने ही दष्टिकोण को श्रेष्ठ एवं सर्वमान्य प्रतिपादित कर रहे थे। सबसे बड़ी विडम्बना यह थी कि अधर्म, धर्म का तथा पाप, पुण्य का परिधान पहिन कर खड़ा हो गया था। ऐसी विषम परिस्थितियों में इस मनाचार का सफल विरोध किसी साधारण 'वीर' के लिए सम्भव न था। इसके लिए तो एक ऐसे 'महावीर' की मावश्यकता थी जो मात्म-बल द्वारा जन-जन के कल्याण हेतु अत्याचार का निराकरण कर सके तथा भटके हुए दुःख-प्रस्त प्राणियों को सन्मार्ग प्रदर्शित कर उनको दुःखों से मुक्ति दिला सके । युग की इसी आवश्यकता के समनुरूप वैशाली के एक सन्निवेश कुण्डग्राम में चैत्र शुक्ला त्रयोदशी के पुनीत दिवस को भगवान् महावीर का जन्म हुआ। समस्त सुख-साधनों से सम्पन्न क्षत्रिय राजकुमार होकर भी वे भोगविलास में प्रासक्त नहीं हए और ३० वर्ष की अवस्था में सभी राज्य-वैभव त्याग कर उन्होंने वीतराग प्रवज्या ग्रहण की। लगभग १२ वर्षों तक तीव्र तप-साधना करके तथा घोर उपसर्गों को सहन करके केवलज्ञान प्राप्त किया। सर्वज्ञ होकर उन्होंने अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह, स्याद्वाद आदि सिद्धान्तो का प्रचार करके, सभी प्राणियों का कल्याण किया । सर्वतोमुखी क्रान्ति के सूत्रधार महावीर ने लोक-भाषा को अपने उपदेशों का माध्यम बना कर पण्डितों के भाषाभिमान का निराकरण किया। ७२ वर्ष की प्रायु तक प्राणिमात्र को दिव्य ध्वनि का रस-पान करा कर भगवान महावीर ने कार्तिक अमावस्या को पावापुरी में निर्वाण लाभ किया। ऐसे क्रान्तिकारी युग-पुरुष महाश्रमण तीर्थंकर महावीर की २५००वी निर्वाण-तिथि की पावन वेला में महावीरपरिनिर्वाण-वर्ष का आयोजन महती धर्म-प्रभावना तथा प्रात्मोन्नति का पुनीत अवसर है। इस उपलक्ष में जितने भी धार्मिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन हो, वे अल्प ही हैं । भगवान् महावीर के प्रति सच्ची श्रद्धा तभी व्यक्त हो सकेगी, जब हम प्रादर्श एवं व्यवहार में समता लाकर उनके प्रादों को अपने जीवन में चरितार्थ कर सकें। इस पुनीत पर्व पर 'भनेकान्त' का यह महावीर-निर्वाण-विशेषांक माननीय विद्वानों तथा जिज्ञासु पाठकों के कर-कमलों में सादर समर्पित है। भगवान् महावीर के जीवन दर्शन एवं सिद्धान्त, श्रमण संस्कृति भौर परम्परा, जैन दर्शन और साहित्य तथा जैन पुरातत्व, इतिहास, कला, स्थापत्य, ज्योतिष प्रादि विविध विषयों पर विभिन्न अधिकारी विद्वानों के शोषपूर्ण लेखों से सुसज्जित करके इस विशेषांक को सर्वाङ्ग-सम्पन्न बनाने का हमारा प्रयास कितना सफल हमा है इसका निर्णय तो सुविज्ञ पाठक ही कर सकेंगे। हम तो केवल त्रुटियों के लिए क्षमार्थी हैं। प्रस्तुत विशेषांक के लिए हमें जिन विद्वान् लेखकों का सहयोग प्राप्त हुमा है, उसके लिए हम उनके अत्यन्त पभारी हैं। माशा है कि भविष्य में भी हमें इसी प्रकार उनका सहयोग एवं भाशीर्वाद प्राप्त होता रहेगा।
SR No.538028
Book TitleAnekant 1975 Book 28 Ank Visheshank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1975
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size15 MB
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