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________________ ३५, वर्ष २८, कि०१ अनेकान्त प्रशोक 'Heretics' सिद्धांत का अनुगामी था, Heretics इतिहास संग्रह के अनुसार) बौद्धों मे नही बल्कि जन धम (रायल एशियाटिक सोसाटी, बोम्बे ब्रान्च के जरनल, भाग में प्रयुक्त होता है। शिलालेख न० १३ में शब्द 'पाखण्ड' ४, जनवरी १८५५, पृ. ४०१ के अनुसार) अधिकतर जैन क लिए प्रो० एच० एच० विलसन जोरदार शब्दो में चर्मी को कहते है। कहाँ तक लिखें फ्लीट", विलसन", (रायल एशियाटिक सोसायटी के जरनल भाग १२ पृ. थोमस, मेकफैल", मोनाहन" आदि अनेक प्रचण्ड ऐति- २३६ मे) कहते है कि यह शब्द कदाचित बौद्ध धर्म का हामिक विद्वानो का अभिमत है कि अशोक बौद्ध धर्मी नहीं था। नही है। प्रो० हल्टश ने इसकाशन कारपोरम ईडिवे स्म शिलालेखों के प्राधार पर पुस्तक प्रथम मे धारणा प्रकट की, 'अशोक के स्तम्भ लेख कुछ विद्वान शिलालेखों के आधार पर अशोक को न० ३ मे जी मलिन विकृति के स्वरूप और मनोविकार वौद्ध धर्मी मान बैठते है परन्तु ये शिलालेख तथा स्तम्भ तथा प्रासिव की जो टिप्पणी दी है उसका और बौद्ध धर्म लेख अशोक ने जिस क्रम से लिखवाये है और जिस प्रकार में वणित 'पासिव' एवं 'कलेश' का कोई मेल नही बैठता।' इनका प्रारभ किया गया, इन्डियन ऐन्टीक्वरी, १९१४ के कुछ विद्वानो का कहना है कि जब अशोक जैन था तो तीनों भागों के अनुसार उनका लिम्ववाने वाला बौद्धधर्मी उसने अपने अभिलेखो मे देवाना-प्रिय का उल्लेख क्यो नहीं, बल्कि जैन धर्मी ही होना चाहिए । प्रसिद्ध इतिहास किया? यह शब्द तो बौद्ध साहित्य की देन है। ऐसे विद्वानों कार ज्ञान सुन्दर ने भी अपने 'प्राचीन जैन इतिहास संग्रह' ने जैन साहित्य का भली प्रकार अध्ययन नहीं किया। भाग २ (फलौदी) पृ० २४ में बताया कि अशोक के जैन साहित्य मे देवानां-प्रिय का प्रयोग साधारण जनता से शिलालेखों की लिपि तथा शब्दों से यह स्पष्ट है कि इन लेकर राजाओं-महाराजानो तक ने किया है। भ० महावीर शिलालेखों को लिखवाने वाला बौद्ध धर्मी नहीं, बल्कि कट्टर के पिता महाराजा सिद्धार्थ ने कल्पसूत्र पृ० १३५-१३६ के जैन धर्मी होना चाहिए । २२वें तीर्थड्रर श्री नेमिनाथ की __अनुसार अपनी रानी त्रिशला देवी को देवाना-प्रिय कहकर 43 निर्वाण-भूमि गिरिनार जी के शिलालेख न०३ में शब्द सम्बोधित किया । वीर निर्वाण सं० १२०६ मे रचित पद्म 'स्वामिवात्सल्यता' का (प्राचीन जैन इतिहास सहभाग पुराण में प्राचार्य रविषेण ने गौतम गणधर द्वारा राजा ५ पृ० ७१ के अनुसार) बौद्ध धर्म मे कदाचित प्रयोग श्रेणिक को (देवाना-प्रिय) आदर सूचक शब्द से सम्बोधित नहीं होता, बल्कि जैन धर्म मे प्रयोग होता है। किया, इस प्रकार अति प्राचीन काल से विक्रमी पाठवी इन्डियन एन्टिक्वरी भाग ३७ पृ. २४ में भी शताब्दी सक जैन साहित्य में इस शब्द का प्रयोग मिलता गिरिनार पर्वत के अशोक स्तम्भ लेख न. ३ का कर्ता है। इसको केवल बौद्ध धर्म की देन कहना भ्रम है। अशोक जन धर्मी है, यह अनुमान मिलता है। शिलालेख का अपने लेखों में इस शब्द का प्रयोग जैन साहित्य के न०६ में 'मंगल' शब्द का उपयोग (प्राचीन जैन अनुकूल है, प्रतिकूल नही है । 8. Even Buddhist literature -Samanta Pasa- dika (1044-4 ) said clearly that Ashoka fllowed the doctrine of the heretics. -Buddhist Studies pp. 49-492. 9. The hcretics (Tithyas) are mostly jains. - Journal Bombay Branch of Royal Asia- tic Society vol. IV, January 1855, p401 It is not a new idea that the religion of Astoka was not Buddhistic 10. Fleet - Journal, Royal Asiatic Society Pp. 491-492. 11. Wilson-Journal, Royal Asiatic Society 1908 p. 238. 12. Thomas-Journal, Royal Asiatic Society IX p. 181 13. Macphail - Ashoka, p. 48 14. Monohan-Early History of Bengal P 21 15. Others-Journal of Mythic Society XVII pp. 271-273 & Hindi Vishwa Kosh vol. VII 4
SR No.538028
Book TitleAnekant 1975 Book 28 Ank Visheshank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1975
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size15 MB
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