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________________ २४८, वर्ष २८, कि०१ अनेकान्त (आचार्य) कुमारकीति पंडित देव को किया था। इस दान पत्र को मुनिचन्द्र सिद्धान्त देव के शिष्य दायि१०२८-२६ ई. के होसुर (धारवाड) लेख में लिखा है यय्य ने लिपिबद्ध किया था। धर्मपुरी (जिला भिर, कि पोसवर के प्राच्छ-गवन्ड ने सुपारी के बाग एवं कुछ महाराष्ट्र) लेख में लिखा है "नाना प्रकार के करों से घर वसदि (मन्दिर) को दान में दिए थे। यहां यापनीय प्राप्त प्रामदनी भगवान की पूजा तथा साधुओं के भरणसंघ (पुन्नागवृक्षमूल-पूग नही पढा जाता) के गुरु जय- पोषण के लिए अनुदान रूप मे पोहलकेरे के पञ्चपट्टण, कीति का स्पष्ट उल्लेख है। हलि का विवरण दो भागों कञ्चुगारस और तेलुगनगरस द्वारा दी जावे । यह अनुदान में उपलब्ध है, प्रथम, चालुक्यवंशी पाहवमल्ल सोमेश्वर यापनीय संघ और वदीयूरगण के महावीर पंडित के सिपुर्द (१०४४ ई०) का, दूसरा, जगदेव मल्ल के लिए तथा की गई थी जो वसदि के प्राचार्य भी थे। ११वी सदी के इनसे मबंधित साधुओं के लिए अनुदान की व्यवस्था है। रामलिङ्ग मदिर के कलभावी लेख में पश्चिमी गगवंश हूलि के प्रथम विवरण में यापनीय संघ पुन्नागवक्ष के शिवमार का उल्लेख है, शिवमार ने कुमुद वाड नामक मूल के बालचन्द्र भट्टारक देव का उल्लेख है तथा दूसरे ग्राम जैन मदिर को दान दिया था, जिन्हें स्वय ने निमित में रामचन्द्र देव का विशेष उल्लेख है। १०४५ ई० के कराया था, और इसे मइलायान्वय कारेयगण (जो यापमुगद लेख में भी यापनीय संघ और कुमुदिगण का संदर्भ नीय संघ के संबन्धित है ऐसा वइलहोगल विवरण में मिलता है । यह एक पत्र है जिसमें बड़े अच्छे स्पष्टीकरण लिखा है) के गुरु देवकीर्ति के सुपुर्द किया था, इनके पूर्वा और साधुओं के नामोल्लेख भी है जैसे श्रीकीर्ति गोरवडि, चार्यों में शुभकीति, जिनचन्द्र, नागचन्द्र और गुणकीति प्रभाशशांक, नयवृत्तिनाथ, एकवीर, महावीर, नरेन्द्रकीति, आदि प्राचार्यों का भी उल्लेख है। नागवि विक-वृतीन्द्र, निरवद्यकीति भट्टारक, माधवेन्दु, बाल- ११०८ ई० मे बल्लालदेव और गण्डरादित्य (कोल्हा चन्द्र, रामचन्द्र, मुनिचन्द्र, रविकीति, कुमारकीर्ति, दाम- पूर के शिलाहार वंशीय) के समय में मूल संघ पुन्नागनंदि, विद्य गोवर्धन, दामनंदि, वडढाचार्य आदि । यद्यपि वृक्षमलगण की प्रायिका रात्रिमती-कन्ति की शिष्या बम्मउपयुक्त नामो मे कुछ कृत्रिम और जाली है, फिर भी गवड ने मंदिर बनवाया था जिसके लिए अनुदान का इनमे से बहुत से साधु बड़े विख्यात और ज्ञान तथा उल्लेख होन्नूर लेख में विद्यमान है । बइलहोंगल (जिला चारित्र के क्षेत्र मे अद्वितीय रूप से अत्यधिक प्रसिद्ध थे। बेलगांव) का लेख चालुक्यवंशीय त्रिभुवन मल्ल देव के मोरब (जिला धारवाड़) विवरण में यापनीय संघ के समय का है, इसमे रह महासामन्त अङ्क शान्तियक्क और जयकीति देव के शिष्य नागचन्द्र के समाधिमरण का कुण्डि प्रदेश का उल्लेख है । यह किसी जैन मदिर को उल्लेख है, नागचन्द्र के शिष्य कनकशक्ति थे जो मंत्र दिया गया अनुदान पत्र है, इसमे यापनीय संघ मइलाचडामणि के नाम से प्रसिद्ध थे। त्रिभुवनमल्ल के पान्वय कारेयगण के मल भट्टारक और जिनदेवसूरि का शासन में १०६६ ई. के डोनि (जिला धारवार) विवरण विशेष रूप से स्पष्ट उल्लेख है"। विक्रमादित्य षष्ठ के में यापनीय संघ वृक्षमूलगण के मुनिचन्द्र विद्य भट्टारक शासन कालीन हुलि (जिला बेलगाव) लेख मे यापनीय संघ के शिष्य चारकोति पडित को उपवन दान का उल्लेख है, कण्डुर गण के बहुबलि. शुभचन्द्र, मोनिदेव और माघनदि 22. Journal of the Bombay Historical Society iii pp. 102-200. 23. S.I.I.XII No. 65, Madras 1940. 24. E.I.XVIII, Also P. B. Desai, Ibidem pp. 174F. 25. S,I.I.XII, No. 78, Madras 1940. 26. A R-S.I.E. 1928-29, No, 239, p. 56. 27. S.I.I.II, iii No. 140. 28. ARS.I.E. 1961-62 B 460-61. 29. I.A.XVIII P.309, Also P.B. Desai Ibidem p. 115. 30. I.A.NII p. 102. 31. A.R.S.I.E. 1951-52, No. 33, p. 12,
SR No.538028
Book TitleAnekant 1975 Book 28 Ank Visheshank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1975
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size15 MB
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