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१९४, वर्ष २८, कि०१
अनेकान्त
दर्शन किए जिसके पुण्य फल से उसकी जंजीर स्वयं टट सहित जैन मनि तथा उनके दूसरे गणधर हो गये। गई । मिट्टी का प्याला-स्वर्ण का और कोदे के दाने खीर १९. वायुभूति गौतम-इन्द्रभुति के लघु भ्राता और बन गये। उसने विधि पूर्वक भगवान को प्राहार दिया अपने समय के महाविद्वान् ब्राह्मण थे। ५०० शिष्यों सहित, जिसको मुनकर वहां का राजा शतानीक और उसकी भ० महावीर के ज्ञान से ही प्रभावित हो जैन मुनि हो गये रानी मुगावती उस भाग्यशाली चन्दना के दर्शन करने सेठ और उनके तीसरे गणघर बने । वपभसेन के घर आये । सेठानी घबरा गई कि चन्दना २०. सचिदत्त-अपने समय के बड़े विद्वान ब्राह्मण ने मेरे अत्याचार कह दिये तो प्राणदण्ड मिलेगा। वह चबना पण्डित थे। यज्ञ मे प्रसिद्ध थे। भ. महावीर से प्रभाके चरणों मे पडी। राजा और रानी ने चन्दना को पह- वित होकर दिगम्बर मुनि हो गये और हिंसक तप व यज्ञ चान लिया। वह रानी की सगी बहिन थी। चन्दना को त्याग कर महावीर के चौथे गणवर हुए। राज मंडल में ले जाना चाहा; परन्तु संसार के भयानक २१. मण्डिक-धनदेव की स्त्री विजया देवी के पुत्र दुःखो को देखकर, लोक-कल्याण हेतु जब महावीर स्वामी और प्रसिद्ध ब्राह्मण विद्वान थे। भ० महावीर के उपदेश को केवल ज्ञान हो गया; तो वह उनके समदसरण मे आपिका से प्रभावित होकर जैन मुनि हो गये और पांचवें गणघर हो गयी और योग्यता के बल पर शीध्र ही सर्व प्रमुख बने । प्रायिका कहलाई।
२२. मौर्य-पुत्र-काश्यप गोत्रीय ब्राह्मण मौर्य के पुत्र १५. चेलना :- चेटक-पुत्री तथा मगध सम्राट श्रेणिक थे। भ० महावीर के समवशरण मे जैनमुनि होकर छठे की पटरानी श्रेणिक ने अपनी राजधानी राजगिरि में, प्रात्म- गणधर कहलाये। धर्म, अगस्त १९६६, १०१७० के अनुसार, चेलना के
२३. प्राकम्पिन--मिथिला-निवामी, गौतम गोत्रीय, कहने पर भगवान महावीर केही जीवन काल में उनका देवदत्तक पुत्र थे। जयन्ती इनकी माता का नाम था। विशाल मन्दिर बनवाया। महाराजा श्रेणिक को सदन जन
ब्राह्मण-धर्म त्याग दिगम्बर मुनि हो गए । भ० महावीर के
सातवें गणधर थे। और वीर-भक्त बनाना इसी महिला-रत्न का कार्य था। १६. यमिनी-महा ताना शालिभद्र की पुत्री, इतनी
२४. अचल वसु- कोसला निवासी ब्राह्मण थे । नन्दा
देवी इनकी माता का नाम था। ब्राह्मण-धर्म त्याग कर विद्वान् और ज्ञानवती थी कि हरिभद्र सूरि जैसे विद्वान्
वीर स्वामी से प्रभावित हो जैन मुनि हो गये और पाठवें को शास्त्रार्थ मे पराजित करके उन्हें जैन धर्म मे दीक्षा
गणधर हुए। दिखलाई।
२५. मंत्रिय-वत्स देश के निवासी। कौडिन्य नामक १७. इन्द्रभूति गौतम-वीर-समय का सर्वश्रेष्ठ ब्राह्मण
ब्राह्मण के पुत्र । माता वरुण देवी । नवें गणघर अत्यन्त विद्वान था। राजगिरि के निकट गोवट ग्राम का निवासी चतर और बद्धिमान । था । इसका गोत्री गौतम था जिसके कारण इसको गौतम २६. प्रभास-इनके पिता का नाम बल और माता भी कहते थे। वसुभति के ज्येष्ठ पुत्र थे। पृथ्वी इनकी कानाध प्रतिभद्रा था। राजगिरि निवासी, महा पण्डित । माता थी। ५०० प्रचण्ड विद्वानो के गुरु थे । भगवान् ब्राह्मण पुत्र, दसवें गणघर थे। महावीर से शास्त्रार्थ करने उनके समवशरण मे गये, परतु २७. सुधर्म-राजगिरि के सुप्रसिद्ध ब्राह्मण के महा उनके अनुपम ज्ञान, सर्वजता से प्रभावित होकर उनके विद्वान पूत्र । जैन मुनि होकर भ. महावीर के ११वें निकट जैन मनि हो गये और अपनी योग्यता से उनके गणधर थे। प्रमुख गणघर बन गये।
२८. यशोषर-महा मुनि, सिंह से भी भयानक ५०० १८. अग्निभूति गौतम- इन्द्रभूति के मझले भ्राता शिकारी कुत्ते एक दुष्ट ने इन पर छोड़ दिये; परन्तु यह और उस समय के प्रचण्ड ब्राह्मण विद्वान् तथा ५०० शिष्यों ध्यान में मग्न रहे और इनकी शान्त मुद्रा तथा तप के के गुरु थे। भ० महावीर से प्रभावित होकर ५०० शिष्यों प्रभाव से वह सब कर कुत्ते प्यार से दुम हिलाते हुए इनके