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________________ महावीर काल . कुछ ऐतिहासिक व्यक्ति १६५ निकट शान्ति से बैठ गये। केवल ज्ञान प्राप्त कर मोक्ष व्रत नही पाल सकोगे। राजकुमार ने कहा कि धर्म पालन पाया। आयु पर नहीं, बल्कि श्रद्धा और विश्वास पर है। वैसे प्रायु का भरोमा क्या? मृत्यु के लिए बच्चा और बूढा २६. अर्जुन माली-महा भयानक दुष्ट, जो ६ मनुष्य एक समान है। यदि जीवित भी रहा तो सदा निरोगी और एक स्त्री प्रतिदिन मार डालता था और जिसके भय रहने का क्या विश्वास ? रोगी स धर्म-पालन नहीं हो से कोई उस जगल मे ग्रा-जा नही सकता था। इसको सकता । बढापे मे तो धर्म-साधना की शक्ति ही नही पकड़ने के लिए महाराजा श्रोणिक ने १०,००० रुपयो का रहती । मनुष्य-जीवन बार-बार नहीं मिलता। सयम पुरस्कार घोषित कर रखा था। राजगिरि के सेठ मुदर्शन मनुष्य ही पाल मकता है। छोटी-सी आयु में हो वह दि. पर जो महावीर-ममोगरण में बन्दना को जा रहा था, यह मुनि हो गया। झपट पडा। बीरबन्दना-भाव के पुण्य फल से वन-देवता ने उसे कोल दिया। अर्जन बड़ा शक्तिशाली था। उसने __ ३२ स्पात्यकीय-नामक अन्तिम (११वां) रुद्र ने बहुत यत्न किये, किन्तु बन्धन-मुक्त न हो सका। वह वीर-तप की परीक्षा के लिए उज्जैन के प्रति मुक्ति नामक शमशान में रात्रि के समय अपनी मायामयी विद्या के बल मुदान के चरणो मे गिर पड़ा। मुदर्शन ने कहा कि यदि पर भयानक वर्पा जोरदार वक्षो तक को उखाड़ देने तुम अपना कल्याण चाहते हो तो मेरे साथ वीर-धन्दना को वाली प्राधी, अादि में महावीर स्वामी पर अत्यन्त धोर चलो। अर्जुन ने कहा कि वहा तो महाराजा श्रेणिक जैसे उपसर्ग किया । तप से न डिगने पर उसने हजारो विषधनवान और धर्मात्मा आदि को स्थान मिलता है । मुभ, भरे सर्प, बिच्छु आदि उनके नग्न शरीर से चिपटा दिये । जमे निर्धन और पापी को कौन जाने देगा? सुदर्शन ने कहा कि वहाँ राजा हो या रक, धर्मात्मा हो या पापी, पर्वत के समान ध्यान मे सुदृढ देखकर चकित हो उसने उन के चरणों मे गिर कर क्षमा मागी। सब उपसर्ग दूर करके छोटा हो या बडा, सब पुरुषो को एक जैसा स्थान मिलना सुगन्धित हवा चलाई, परन्तु भ० महावीर तो राग-द्वेष है । यह मुन कर अर्जुन माथ हो लिया और वीर-उपदेश से रहित थे । उपसगं से दुखी और उनके दूर होने पर सुखी इतना प्रभावित हुआ कि समस्त समारी वस्तुप्रो का मोह । न होते हुए निरन्तर ध्यानारूढ हे ।। त्यागकर दिगम्बर मनि हो गया। ऐसे महा दुष्ट और पापी को मुनि अवस्था में देख श्रेणिक चकित रह गया और ३३. गुह्यक-भ. महावीर का गासन देवता (यक्ष) जिसको पकड़ने और मृत्यु-दण्ड देने के लिए भारी पुरस्कार ५ था। उसका वाह्य हाथी था । वीर का परम भक्त था । की घोषणा कर रखी थी, भक्ति भाव से उसे नमस्कार .४. सिद्धार्नो-वीर शासन-देवी (यक्षिणी) और किया। वीर भक्ता थी। ३०. शब्दालपुत्र-यह कुम्हार पोलासपुर में रहता और भी अनेक प्रसिद्ध राजे प्रादि वीर-भक्त उनके था। वह वीर के समोशरण मे गया तो इतना प्रभा- ममय मे हए । स्थान के प्रभाव से उन सबका वर्णन नही वित हुआ कि उसने तुरन्त श्रावक के व्रत लिए। उस कर पाये। समय माली, कुम्हार, कहार आदि भी श्रावक-व्रत पालते __ केवल भारत मे ही नहीं, विदेशो तक में वीर की मान्यता थी। डा. राधाकृष्णन, भूतपूर्व भारतीय राष्ट्रपतिके, शब्दों ३१. विक्रमसिंह-पौलासपुर का राजा था, जैन धर्म मे वीर-जन्म-शताब्दी ६०० ई पू. प्राध्यात्मिक शान्ति तथा का अनुयायी था। वीर के उपदेश से प्रभावित होकर उसके अन्त करण की शुद्धि के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण है। चीन में राजकुमार एवन्त ने अपने पिता से दि० मुनि होने की लाप्रोत्से और कनफशम, यूनान में परमेनिडस और एम्पे. प्राज्ञा मॉमी तो उसने कहा कि अभी तुम बच्चे हो, मुनि- दोक्लस, ईरान में जरथुन और भारत में भ० महावीर थ।
SR No.538028
Book TitleAnekant 1975 Book 28 Ank Visheshank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1975
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size15 MB
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