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________________ १५८, वर्ष २८, कि. १ अनेकान्त साधु) का उल्लेख है। यहां निगण्ठ नातपुत्त के सर्वज्ञत्व में अंगुत्तरनिकाय में भी लिखा है कि सीह बुद्ध का शिष्य पर भी छींटाकशी की गई है। इस घटना से लगता है हो गया। फिर भी बुद्ध ने सीह को कहा कि चिरकाल बुद्ध और महाबीर ने राजगृह और श्रावस्ती में एक साथ से तुम्हारा कूल निगण्ठों के लिए रहा है, इसलिए उन्हें ही वर्षावास बिताया। फिर भी वे एक दूसरे के समक्ष दान देना बन्द नहीं करना चाहिए। वहीं यह भी लिखा स्पष्ट रूप में नहीं पाये। है कि सीह ने बुद्ध को मांस खिलाया जिसकी घोर निन्दा ___ नालन्दा में भी बुद्ध और महावीर दोनों ने एक साथ निगण्ठों ने की। वर्षावास किषा। संयुत्तनिकाय में कहा गया है कि महा- मन्तगडदसायो (प. ६) में थेणिक के उन पुत्रों और वीर ने श्रमण गौतम बुद्ध से शास्त्रार्थ करने के लिए अपने रानियों के नाम दिये गए है जिन्होंने भ. महावीर से प्रव्रज्या प्रधान शिष्य असिबन्धकपुत्त गामणी को भेजा था और ली थी। पुत्रों में जालि, मयालि, उववालि, पुरुषसेन, उससे यह प्रश्न करने को कहा था कि तथागत जब कुलों वारिसेण, दीर्घदन्त, लष्टदन्त वेहल्ल, वेहास, अभय, दीर्घकी उन्नति और रक्षा की बात करते हैं तो ईतिपूर्ण व सेन, महासेन, गूढदन्त, शुद्घदन्त, हल्ल, दुम, द्रुमसेन, सूखे प्रदेश मे क्यो विहार करते है ? बुद्ध के इस प्रश्न के महाद्रुमसेन, सिंह, सिंहसेन, महासिंह सेन और पूर्णसेन" उत्तर से प्रभावित होकर ग्रामणी उनका अनुयायी हो ये नाम मिलते है। पालि त्रिपिटक में निगण्ठनातपुत्त के गया है। इसी समय बुद्ध ने ग्रामणी से प्रश्न किया कि शिष्यों में सीह, दीघनख, उपालि और प्रभय का नाम निगण्ठनातपुत्त अपने श्रावकों को कौनसा धर्मोपदेश करते पाता है। संभव है, ये धेणिक के ही पुत्र हों। है ? ग्रामणी ने उत्तर में कहा कि हिंसा, असत्य, स्तेय, मेण्डक नामक गृहपति भी जैन था जो बाद में बुद्ध कुशील प्रादि कुकृत्य करने वाला दुर्गति पाता है। इस का अनुयायी हो गया, ऐसा पिटक में कहा गया है।" लिए व्यक्ति को इन पापों से बचना चाहिए। इसी उत्तर- यह अंगदेश के भद्दियानगर का रहने वाला श्रेष्ठी था। प्रत्युत्तर से प्रभावित होकर ग्रामणी बुद्ध का शिष्य हो बिबसार राजा के पांच अमित-भोग-संपन्न श्रेष्ठी थेगया। इस घटना से भी यही लगता है कि बद्ध और जोतिय, जटिल, मंडक, पुष्पक और काकवलीय ।" मेडक महावीर दोनों ने कभी एक दूसरे से मिलने का प्रयत्न उनमें एक था। इसी के पुत्र धनंजय श्रेष्ठी की मग्रमहिषी नहीं किया बल्कि वे अपने शिष्यों को ही शास्त्रार्थ के सुमना देवी के गर्भ से ही विशाखा का जन्म हुआ था। लिए भेजते रहे। कालान्तर में इसका सम्बन्ध श्रावस्ती के मृगार श्रेष्ठी के "इसी प्रकार की एक घटना वैशाली में हुई। यहाँ पुत्र पुण्डवर्धन से हुमा। मृगार निगण्ठों का पूजक था भी दोनों महापुरुष उस समय वैशाली में ठहरे हुए थे। और विशाखा बुद्ध मे अधिक भक्ति रखती थी। मृगार सीह ने नि. नातपुत्त से युद्ध के दर्शन करने को जाने की ने निगण्ठों को बुलाया परन्तु विशाखा ने उनकी कड़ी अनुमति मांगी जिसे नि. ना. ने अस्वीकार कर दिया यह आलोचना की, नग्नत्व की दृष्टि से । फलस्वरूप मृगार कहकर कि क्रियावादी होते हुए प्रक्रियावादी के पास क्यों भी बौद्ध हो गया। यहाँ भी निगण्ठ नातपुत्त का नाम जाते हो? उत्तर में बद्ध ने अपने पापको क्रियावादी नहीं, निगण्ठों का नाम है। फिर भी यह सत्य है कि और प्रक्रियावादी दोनों बताया। सूत्रकृतांग" में भी बौद्ध अंगदेश और श्रावस्ती में जैन-बौद्ध समान रूप से रहते धर्म को प्रक्रियावाद में सम्मिलित किया गया है। बाद थे। १५. संयुत्तनिकाय, ३.१.१ । १९. तीर्थकर महावीर, भाग २, पृ. ५३ । १६. संयुत्त निकाय, ४०. १.६ । २०. महावग्ग २.२ । १७. अंगुत्तर निकाय, ८.१.२.२ । २१. धम्मपद अट्ठकथा ।-४.८ । १८. सूत्रकृतांग १२.६ ते चार्वाकबौद्धादयोऽक्रियावादिन २२. अंगुसर निकाय प. कथा, १.७.२ । एवमाचक्षते "पृ. २१८॥
SR No.538028
Book TitleAnekant 1975 Book 28 Ank Visheshank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1975
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size15 MB
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