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________________ १६४, वर्ष २८, कि० १ अनेकान्त कुछ भी हो, इतना निष्कर्ष तो निकाला ही जा सकता है ५. सुरामेरयमज्जप्पमादट्ठायी होति । कि महात्मा बुद्ध पार्श्वनाथ परम्परा से भलीभांति परि- यहाँ भी पांच पापों का उल्लेख क्रमशः नहीं हुआ चित रहे होंगे । जहाँ तक महावतों के परिगणन की बात और परिग्रह के स्थान पर सुरामेरयमज्जप्पमाटान का है, उसे हम जैन प्रागमों में देख सकते है। ठाणांग' में यह उल्लेख किया गया। इन उद्धरणों से तीन निष्कर्ष निकाले परम्परा इस प्रकार है जा सकते है। १. सर्वपाणातिपातवेरमण, १. पार्श्वनाथ की परम्परा चातुर्यामसंवर की थी। २. सर्वमृषावादवेरमण, २. निगण्ठ नातपुत्त ने चातुर्यामसंबर की जगह पांच ३. सर्वादत्तादानवेरमण मौर महाव्रतों का उपदेश दिया। ४. सर्वबहिद्धादानवेरमण। यहां मथुन और परिग्रह ३. महात्मा बुद्ध दोनों परम्परामों से परिचित थे । दोनों का अन्तर्भाव है। ___ इन उद्धरणों मे ये दो मुख्य दोष प्रतीत होते हैंप्रसिवन्धकपुत्त गामिणि निगण्ठनातपुत्त का शिष्य था। १. जैन परम्परा का उल्लेख यथाक्रम न होना। भ० बुद्ध ने उससे पूछा--निगण्ठनातपुत्त अपने श्रावकों २. परिग्रह जो पापाश्रव के कारणों में अन्तिम था, को कैसी शिक्षा देते है ? उत्तर मे गामिणि ने कहा-नि. का उल्लेख न होना। नातपत्त निम्नलिखित पापों से दूर रहने का प्राग्रह करते है want भगवान महावीर : १. पाणं प्रतिपातेति, लगभग ६९६ ई०पू० बिहार की पुण्यस्थली वैशा२. अदिन्नं प्रतिपातेति, लीय क्षत्रिय कुण्डग्राम में ज्ञातृकुलीय काश्यप गोत्रीय महा३. कामेसु मिच्छा चरति और राज सिद्धार्थ और वासिष्ठ गोत्रीय त्रिशला के घर चैत्र४. मुसा भणति । शुक्ला त्रयोदशी के दिन महावीर का जन्म हुमा था । यहाँ भी चार प्रकार के पापों का ही उल्लेख है, पांच कल्पसूत्र में इनके और दूसरे नाम श्रमण और वर्धमान का नही । दूसरी बात उल्लेखनीय यह है कि नि० नातपुत्त दिये है। पालि साहित्य महावीर का निगण्ठ नातपुत्त के ने परिग्रह से कुशील को पृथक कर उसे जो स्वतन्त्र रूप नाम से उल्लेख करता है। सूत्रकृताङ्ग' और भगवती सूत्र दिया था, उसका तो पालि त्रिपिटक में उल्लेख है परन्तु इमको वैशालिक कहते है। परिग्रह का नहीं। इसका तात्पर्य है -महात्मा बुद्ध उक्त संसार का उपभोग किये बिना ही तीस वर्ष की सुधार से परिचित थे। भले ही उसका प्रचार न होने के प्रवस्था में महावीर स्वामी ने महाभिनिष्क्रमण किया। कारण पाँचों का यथाक्रम उल्लेख नहीं किया जा सकता लगभग बारह वर्ष की कठोर तपस्या के बाद उनको केवल ज्ञान प्राप्त हुआ। इसके बाद धर्मोपदेश करते हुए ७२ वर्ष अंगुत्तर निकाय मे निगण्ठ नातपुत्त के अनुसार पापाश्रव के पांच कारण दिये गये है की अवस्था में कार्तिकी अमावस्या को रात्रि के अन्तिम प्रहर में उन्होंने निर्वाण प्राप्त किया। १. पाणातिपाति होति, २. आदिनादायि होति, महात्मा बुद्ध ३. अब्रह्मचारि होति, शाक्य पुत्र महात्मा बुद्ध का जन्म ५६३ ई.पू. ४. मुसावादि होति और प्रथधा परम्परा के अनुसार ६२४ ई. पू. ६ में कपिलवस्तु के ३. संयुत्त निकाय भाग ४, पृ. ३१७ । ५. भ. सू. १. २. १. पृ. २४६ ४. विशाला जननी यस्य विशालकुलदेवता। ६. मैं परम्परासम्मत जन्मतिथि को ही मानने के पक्ष विशालं प्रवचनं चास्य तेन वैशालिको जिनः॥ २२ २.३ पृ. मं. ७१
SR No.538028
Book TitleAnekant 1975 Book 28 Ank Visheshank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1975
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size15 MB
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