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________________ तीर्थडुर के शासन-देव और देविगा १४५ नाथ के आगे पदमा और सरस्वती नामक जो देविया चल देवियो के रूप, वाहन और प्रायूध प्रादि को व्यवस्थित रही थी ये कलाचलो के सरोवर में रहने वाली बुद्धि पौर रूप प्रदान किया गया । दिगम्बर परम्परा में प्रायः विद्यालक्ष्मी देवियों थी । ये ऐशानेन्द्र की ग्राज्ञाकारिणी है। देवियो के पूजा-विधान के रूप में उनका रूप-वर्णन किया रुचकर द्वीप के कटो पर दिवकुमारिकायें निवास करती गया है । श्वेताम्बर परम्परा में उनके मूर्ति-शिल्प का है। उनमे लक्ष्मीमती और पद्मा नामक देवियो के नाम वर्णन मिलता है । दिगम्बर परम्परा में नीर्थकर मूर्तियों तो है किन्त सरस्वती नामक पिसी देवी का नाम नहीं के अतिरिक्त, गर्वतोभद्रिका प्रतिमाये, सहस्रकट जिनालय, है । ये दिक्कूमारियाँ तीर्थदुर माता की सेवा करती है। नन्दीश्वर जिनालय, ममवसरण जिनालय आदि की परदेवियों के इस विस्तृत विवरण मे भी हमे सरस्वती देवी म्परा प्रचलित है, विद्यादेवियो, अष्टमातृकाओं, क्षेत्रपाल, का नाम नहीं मिलता, केवल एक बार भगवान ननिनाथ सरस्वनी, नपग्रह प्रादि की मान्यता है और उनमे से कई के बिहार के प्रसग मे उसका नाम प्राया है । उससे यह भी की मूर्तियां भी मिलती है । किन्तु पाश्चयं है कि प्रतिष्ठाज्ञात नही होता कि वह देवो की किस जाति से सबन्धित ग्रथो, मिद्धान्त प्रयो और पुराण ग्रंथो में इनके सम्बन्ध मे थी। सम्भावना यही लगती है कि विद्या की अधिष्ठात्री अधिकृत विवरण नहीं मिलता। इसलिए कुछ लोगो की और श्रत की अधिदेवता सरस्वती द्वादशांग श्रुतज्ञान का ऐसी धारणा बन गई है कि दिगम्बर परम्परा में इनमें से काल्पनिक मतरूप है। ऐसा लगता है कि इस कल्पना को बरती दा fern zaREAT IT शिल्प मे पहले आकार दिया गया, साहित्य में बाद में है, यद्यपि अभी हम इस धारणा से महमत नहीं है और स्थान मिला, क्योकि साहित्य में स्थान मिलने से पूर्व हा हम जैन शिल्प के इस वैविध्य के आधारो की शोध कर सरस्वती की प्रतिमाये बननी प्रारम्भ हो गई थी। द्वादशांग श्रुत के अधिदेवता के रूप में इस देवी को साहित्य में विद्यादेवियों के नाम : १६ विद्यादेवियों के नाम स्थान पाने में पर्याप्त समय लगा। तिलोयपण्णत्ती इस प्रकार है ...१. रोहिणी, २. प्रज्ञप्ति, ३. बजशृंखला, (४११८८१) मे पाण्डकपन की जिन प्रतिमानो के साथ ४. बज्राकृशा, ५ जाम्बूनदा', ६. पुरुषदत्ता, ७. काली, रत्नादिको की श्रतदेवी, मर्वा और मनत्कुमार यक्षो की : महाकाली, गौरी १. गाभारी तियाँ रहने का उलख लेता है। इसमे जिस श्रुतदवी मालिनी', १२ मानवी, १३. वैरोटी', १४. अच्युता', १५. का उल्लेख किया गया है, वह वास्तव में क्या सरस्वती- मानसी. और १६. महाभानसी। देवी कही जा सकती है? तीर्थकरी की २४ यक्षियो और १६ विद्यादेवियो के सरस्वती देवी का वृाण, गुप्त, प्रतिहार, कलचुरि नामो का मिलान करने से ऐसा लगता है कि इन १६ आदि विभिन्न कालो मे प्रति माये बनी । कई स्थानो पर देवियो का कोई स्वतन्त्र अस्तित्व नही है। इनमें से २-३ व मिलती है । किन्तु साहित्य में ६-१०वी शताब्दी मे को छोडकर प्राय. मभी नाम यक्षियो में है। समीकरण उसको व्यवस्थित रूप मिला । दिगम्बर और श्वेताम्बर करने पर हम इस निष्कर्ष पर पहचते है कि सरस्वती के दोनो ही परम्परामो मे इन्ही या पश्चाद्वर्ती शताब्दियो में विभिन्न रूपो का लेकर १६ विद्यादेवियो की कल्पना की शिल्प शास्त्रों और प्रतिष्ठा शास्त्रो की रचनायें हुई। गई, किन्तु उनका स्वतन्त्र व्यक्तित्व प्रदान नही किया गया, उनमे तथा प्रासंगिक रूप में अन्य माहित्यिक ग्रन्थो मे सर- बल्कि यक्षियों के बहुभाग को विद्यादेवी का भी नाम स्वती और उसके विभिन्न रूपो की अनुकृति पर विद्या- प्रदान किया गया । इन देवियों के यक्षी या विद्यादेवी के १. अभिधानचिन्तामणि (देव काण्द्र द्वितीय) चक्रेश्वगे। ३ निर्वाणकलिका - ज्वाला। पदमानन्द १८३८४ प्रतिचक्रा । ४. , बैरोट्या । २. अभिधानचिन्तामणि, देवकाण्ड -महापरा । प्राचार- ५. , प्रच्छ प्ता। दिनकर (उदय ३३) में भी महापरा नाम दिया है।
SR No.538028
Book TitleAnekant 1975 Book 28 Ank Visheshank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1975
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size15 MB
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