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________________ तीर्थरों के शासन-वेव और रेवियां यक्षों के जो नाम विभिन्न दिगम्बर-श्वेताम्बर ग्रन्थों जिता (२०) बहुरूपिणी (२१) चामुण्डा (कुसुममालिनी) में दिये गए है, उनमें विशेष अन्तर नहीं है, किन्तु इन (२२) प्राम्रा (कूष्माण्डी) (२३) पद्मावती (२४) शास्त्रों मे दिये गए नामों से तिलोयपण्णत्ती में दिये गए सिद्धायिका (सिद्धायिनी) । प्रतिष्ठासारोद्धार भोर प्रतिनामों में भारी अन्तर है। क्रम संख्या की दृष्टि से उसके ष्ठातिलक में शेष नाम समान हैं। प्रारम्भिक पांच नाम ही अन्य ग्रन्थों से मिलते है। शेष प्राचारदिनकर - (१) चक्रेश्वरी (निर्वाणकलिक) नामों में क्रम भग है। तिलोयपण्णत्ती में जो नाम छटवें और वास्तुसारप्रकरण मे अप्रतिचक्रा (२) अजितबला स्थान पर है, वह अन्य ग्रन्थो में सातवें स्थान पर है। (नि० क. और वा० सा० प्र० में अजिता) (३) दुरियह अन्तर अन्त तक है। तिलोयपण्णत्ती में चौबीसवें यक्ष तारि (४) काली (नि० क. और वा० सा०प्र० मे का नाम गुह्यक दिया है, किन्तु इस नाम का कोई यक्ष कालिका) (५) महाकाली (६) अच्युता (अभिधानअन्य ग्रन्थों में नहीं मिलता। इस प्रसंगति का कारण यह चिन्तामणि मे श्यामा) (७) शान्ता (८) भृकुटि (६) है कि तिलोयपण्णत्ती में छटवे नम्बर के यक्ष का नाम सुतारा (अ० चि० में सुतारका) (१०) अशोका (११) छूट गया, जिससे क्रम भंग हो गया और अन्त में चौबीस मानवी (१२) चण्डा (नि० क. और वा० सा०प्र० में संख्या पूरी करने के लिए गुह्यक नामक एक यक्ष की प्रचण्डा) (१३) विदिता (१४) अकुशा (१५) कंदर्पा कल्पना करनी पड़ी। यह भूल मूल ग्रन्थ की है अथवा (१६) निर्वाणा (अन्य ग्रन्थों में निर्वाणी) (१७) बला प्रतिलिपिकारों और सम्पादकों की, इस सम्बन्ध में कुछ (१८) धारिणी (१९) नागाधिपा (म० चि० में घरणभी नहीं कहा जा सकता। प्रिया, नि० क. और वा० सा० प्र० में वैरोट्या) (२०) यक्षों की अपेक्षा पक्षियों के नामों के सम्बन्ध मे जैन अच्छुप्तिका (नदत्ता) (२१) गान्धारिका (अन्य ग्रन्थों में शास्त्रों में नाम-भेद अधिक है। यहां विभिन्न ग्रन्थों के गान्धारी या गान्धारा) (२२) अम्बा (अ० चि० में नाम साम्य और वैषम्य पर प्रकाश डाला जा रहा है : अम्बिका, नि० क. और वा० सा० प्र० मे कूष्माण्डी) तिलोयपण्णत्ती-(१) चक्रेश्वरी (२) रोहिणी (३) (२३) पद्यावती। अभिघानचिन्तामणि, निर्वाणकलिका प्रज्ञप्ति (४) बज्रशृंखला (५) बज्रांकुशा (६) अप्रति और वास्तुसारप्रकरण में शेष नाम प्राचारदिनकर के चक्रेश्वरी (७) पुरुषदत्ता (4) मनोवेगा (8) काली र समान हैं। (१०) ज्वालामालिनी (११) महाकाली (१२) गौरी । (१३) गान्धारी (१४) वैरोटी (१५) अनन्तमती (१६) अपराजितपृच्छा मे अन्य ग्रन्थो से नाम वैषम्य है। मानसी (१७) महामानसी (१८) जया (१६) विजया प्रत. उसके नामों की तालिका पृथक् से दी जा रही है जो (२०) अपराजिता (२१) बहुरूपिणी (२२) कृष्माण्डी इस प्रकार है : (२३) पद्मा (२४) सिद्धायिनी। (१)चक्रेश्वरी (२) रोहिणी (३) प्रज्ञा (४) बजप्रतिष्ठासार सग्रह-(१)चक्रेश्वरी (२)रोहिणी(३) शंखला (५) नरदत्ता (६) मनोवेगा (७) कालिका प्रज्ञप्ति (नम्रा) (४) बजशृखला (प्रतिष्ठासारोद्धार () ज्वालामालिनी (8) महाकाली (१०) मानवी पौर प्रतिष्ठातिलक में पविशृंखला) (५) पुरुषदत्ता (११) गौरी (१२) गान्धारिका (१३) विराटा (१४) मथवा संसारी (प्र० सा० में खड्गवरा) (६) मनोवेगा तारिका (१५) अनन्तागति (१६) मानसी (१७) महा(७) काली (मानवी) (८) ज्वालिनी (ज्वालामालिनी) मानसी (१८) जया (१६) विजया (२०) अपराजिता (६) महाकाली (१०) मानवी (११) गौरी (गोमेधका) (२१) बहरूपा (२२) अम्बिका (२३) पदमावती (१२) गान्धारी (१३) रोटी (प्र. ति० मे वरोटिका) (२४) सिद्धायिका। अपराजितपृच्छा की यह नाम-सची (१४) अनन्तमती (१५) मानसी (१६) महामानसी श्वेताम्बर ग्रन्थो की अपेक्षा दिगम्बर ग्रन्थों की सूची के (१७) जयदेवी (जया) (१०) तारावती (१९) अपरा- अधिक निकट है।
SR No.538028
Book TitleAnekant 1975 Book 28 Ank Visheshank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1975
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size15 MB
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