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________________ तीपरों के शासन-वेव और देवियाँ इन विरोधी स्वरों में शासन देवताओं को उपास्य के इनमें यक्ष व्यन्तर देवों की एक जाति मानी गई है। ये रूप में मानने और उनकी पूजा करने की परम्पराविरुद्ध भी बारह' प्रकार के होते हैं-माणिभद्र, पूर्णभद्र, शलभद्र, मान्यता के विरोध में असह्य क्षोभ की ध्वनि है जो तत्का- मनोभद्र, भद्रक, सुभद्र, सर्वभद्र मानुष, धनपाल, स्वरूप लीन लोक मानस को प्रतिबिम्बित करती है। यद्यपि उग्र यक्ष, यक्षोत्तम और मनोहरण । इनके माणिभद्र और पूर्णभद्र विरोध होने के बावजूद दिगम्बर परम्परा के कुछ भट्टारकों ये दो इन्द्र होते हैं। और श्वेताम्बर परम्परा के कुछ प्राचार्यों की रुचि मंत्र- पिशाच जाति के व्यन्तरों में भी यक्ष नामक देव होते तंत्र की ओर विशेष रूप से रही, उनके कारण शासन है। पिशाच देवों के १४ भेद' बतलाये गए हैं-कूष्माण्ड, देवताओं को विशेष महत्व प्राप्त हो गया। विभिन्न कल्पों यक्ष, राक्षस, संमोह, तारक, अशुचि काल, महाकाल, शुचि, और विधानो की रचनाएँ इसी का परिणाम है। इस सतालक, देह महा देह, तूष्णीक और प्रवचन । प्रवृत्ति का एक क्लेशकारी परिणाम यह भी निकला कि छह दिशाओं के छह रक्षक' देव होते है-विजय, देवियों के शीर्ष पर वीतराग तीर्थकरों की मूर्तियाँ बनने वैजयन्त, जयन्त, अपराजित, अनावर्त और पावतं । ये भी लगी। यह सब होने पर भी शासन देवताओं को तीर्थंकरों यक्ष कहे जाते है। के समकक्ष दर्जा कभी नहीं मिल सका, उन्हे तीर्थंकरों के २४ यक्षो के नामो मे किन्नर, गन्धर्व, कुबेर भोर उपासक के रूप मे ही मान्यता प्राप्त हुई। वरुण ये नाम भी सम्मिलित है। किन्नर और गन्धर्व ये यक्ष यक्षियों का पारस्परिक संबन्ध और उनकी जाति: . व्यन्तर निकाय के देवों के भेद है । अतः ये दोनों व्यस्तर तीर्थकरों के इन २४ यक्षों और २४ यक्षियों के सबध देव होने चाहिये । कुबेर और वरुण ये दोनों लोकपाल देव में कुछ जिज्ञासाए मन में जागृत होती है और अपेक्षा है। चारों दिशाओं की रक्षा करने वाले देवों को लोकपाल की जाती है कि इनका कुछ साधार समाधान प्राप्त हो। कहते है । चारों दिशामों की रक्षा करने वाले चार लोकउदाहरणत: पाल होते है -सोम, यम, वरुण और कुबेर । ऐसे लोकये यक्ष यक्षी किस देव निकाय या देवों की पाल भवनवासियों और कल्पवासियों मे अर्थात दोनों किस जाति के होते हे ? निकायों में होते हैं । भवनवासियो मे प्रत्येक इन्द्र के पूर्वा(२) इन यक्ष-यक्षियों का परस्पर में क्या सम्बन्ध दिक दिशामों के रक्षक क्रम से सोम, यम, वरुण और धनद. होता है, अर्थात ये युगल पति-पत्नी होते है अथवा नही? (कुबेर) नामक चार-चार लोकपाल होते है। इस प्रकार यहाँ यक्ष शब्द से किसी एक ही जाति के देवों का भवनवासियों में ४० लोकपाल होते है। इसी प्रकार. वैमा. ग्रहण नही होता । यक्ष शब्द तीर्थंकरो के सेवक या शासन निक'देवों में भी चार-चार लोकपाल होते है। ये लोकरक्षक के अर्थ में लिया गया है, ऐसा देवता देवो के किसी पाल सौधर्म, ईशान, सनत्कुमार, माहेन्द्र, ब्रह्म, लांतव. निकाय का हो, उसकी किसी भी जाति का हो । यक्ष देवों मह शुक्र, सहस्रार और मानतादि चार इन सब इन्द्रों के की एक जाति होती है और यक्ष जाति ज्योतिष्क निकाय चार-चार होते है - सोम, यम, वरुण और कुवेर । सौधर्म को छोड कर शेष सभी निकायों में प्राप्त होती है। इन्द्र के लोकपाल नियम से द्विचरमशरीरी होने व्यन्तर देवों में साठ जातियाँ होती है-'किन्नर, उपर्युक्त विवरण से यह स्पष्ट हो जाता है कि कबेर किम्परुष. महोरग, गन्धर्व, यक्ष, राक्षस, भत पौर पिशाच। और वरुण नामक यक्ष लोकपाल थे। वे या तो भवनबासी १. तत्वार्थ सूत्र, ४।११। २. तिलोयपण्णत्ती, ६।४२; त्रिलोकमार, २६५-२६६। ३ तिलोयपण्णत्ती, ६।४८-४९ त्रिलोकसार २७१-२७२ । ४., प्रतिष्ठासारोद्धार, ३॥१९६-२०१ । ५. पत्तेक इंदयणं सोमो यम वरुण धणद णामा य । पुवादि लोयपाला हवंति चत्तारि-चत्तारि। -तिलोयपण्णती, ३३७१। ६. तिलोयपणती, ८२८७-२६६ ।
SR No.538028
Book TitleAnekant 1975 Book 28 Ank Visheshank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1975
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size15 MB
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