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________________ १३२, वर्ष २८, कि०१ अनेकान्त है। इनके पासन के नीचे अंकित प्रतीक धारण-धर्म के वे सोलह स्वप्न देखे थे जिनमें एक प्राकाश की ओर उछलता प्रतीक हैं । त्रिछत्र, त्रिशक्ति (ज्ञान-इच्छा-क्रिया) के हुमा सिंह भी था। स्वयं राजा सिद्धार्थ ने इसका फल यह सिद्धान्त हैं जो सभी भारतीय सम्प्रदायो में समान श्रद्धा बताया था कि होने वाला बालक अतुल वीर एवं पराक्रमी के साथ माने जाते है । मस्तक के पीछे लगा हुआ प्रभा- होगा। मण्डल धर्म-चक्र का रूप है। यह काल चक्र है जो काल उपरोक्त वर्णन से यह स्पष्ट होता है कि भारतीय और धर्म-चक्र के रूप में विष्णु और शक्ति के हाथों में है कला आत्मवशी भगवान महावीर के जीवन चरित्र से प्रोत. और जिन तथा बुद्ध से सम्बद्ध है । मस्तक पर तीन छत्रों प्रोत है। प्रात. स्मरणीय महावीर स्वामी-- भगवान वर्धवाला छत्र है। यह त्रिशक्ति का प्रतीक है। यह शिव पौर मान का जीवन चरित्र भक्तो के लिए अमत है, भारतीय बुद्ध का प्रिशूल तथा दुर्गा का त्रिकोण है । भगवान् महा जनता के लिये संजीवन है और विश्व की भटकती जनता वीर पद्मासन पर आरूढ़ दिखाये जाते हैं। पद्म सृष्टि का के लिए जगमगाता प्रकाश-स्तम्भ है। प्रतीक है। 00 भगवान महावीर का वाहन सिंह है। हिन्दू, बौद्ध एवं जैन मतावलम्बियों ने सिंह को उच्च स्थान प्रदत्त किया व्याख्याता, प्राचीन भारतीय इतिहास, है। शतपथ ब्राह्मण में सिंह शक्ति का प्रतीक माना गया शासकीय महाविद्यालय, है । भगवान महावीर के जन्म के पूर्व उनकी माता ने डिन्डौरी (मडला) मध्य प्रदेश [पृ० ११५ का शेषांश ज्योति प्रसाद जैन-- पी० सी० राय चौधुरी जैनिज्म इन बिहार ( पटना, १. जैनिज्म दी मोल्डेस्ट लिविग रिलीजिन १९५६) (बनारस, १९५१) विमला चरण साहा -महावीर : हिज लाइफ एण्ड टीचिग्स २. तीर्थङ्करों का सर्वोदय मार्ग (दिल्ली, १९७४) (लन्दन, १६३७) ३. दी जन सोर्सेज मार दी हिस्टरी माव एन्सेट बैजनाथ सिह विनोद-मगध, इतिहास और संस्कृति इडिया (दिल्ली, १९६४) ,(बनारस १६५४) ४. प्रमुख ऐतिहासिक जैन (दिल्ली, १९७५) शशिकान्त जैन-खारवेल एण्ड अशोक (दिल्ली, १६७३) ५. भारतीय इतिहास - एक दृष्टि (दि० सं० वाराणसी, १९६६) हीरालाल जैन एवं प्रा० न० उपाध्ये-महावीर : युग और ६. रिलीजन एंड कल्चर प्राव दी जेन्स (दिल्ली जीवन-दर्शन (दिल्ली १९७४) १९७५) ७. श्री वीर शासन (लखनऊ, १९७४) नन्दलाल -ज्योग्रफीकल डिक्शनरी भाव एसेन्ट एण्ड मेडि- ज्योतिनिकुंज, वल इडिया। चारबाग, लखनऊ-१
SR No.538028
Book TitleAnekant 1975 Book 28 Ank Visheshank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1975
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size15 MB
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