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________________ १३०, वर्ष २८, कि० १ अनेकान्त लांछन सिंह है। धर्मचक्र के नीचे एक स्त्री लेटी है। राजस्थान से महावीर की अनेक प्रतिमायें एवं देवालय महावीर का यक्ष मातंग अंजलिबद्ध एवं यक्षी सिद्धायिका प्रकाश में आये है। प्रोसिया में भगवान महावीर का चंबरी लिये हुए है।" एक प्राचीन मन्दिर है जिसमें विशालकाय महावीर स्वामी श्याम बलुपा पाषाण से निर्मित ४' ४" '" की मूर्ति है । यह मदिर परिहार नरेश वत्सराज के समय प्राकार की जबलपुर से प्राप्त महावीर की एक सुन्दर । टर का है। जैनतीर्थ सवंसंग्रह में प्रोसियां का विवरण देते हुए प्रतिमा फिल्डेलफिया म्यूजियम प्राफ पार्ट में सुरक्षित लिखा है कि यहाँ सोयशिखरी विशाल मदिर बड़ा रमणीक है। भगवान महावीर की यह नग्न प्रतिमा कायोत्सर्ग है। मूलनायक प्रतिमा महावीर जी की है जो ढाई फुट मुद्रा में खड़ी है। हृदय पर श्रीवत्स चिहांकित है। हस्त ऊंची है । देवालय भव्य परकोटे से घिरा हुअा है, तोरण घुटने तक लबे है। शीर्ष के ऊपर विळत्र तथा उसके दर्शनीय एव स्तभों पर तीर्थदूरों की प्रतिमायें उत्तीर्ण है। किनारे दो हस्ती अंकित है। बंगाल के बॉकूडां जिले के पाक बेडरा नामक स्थल विश्वविख्यात कलातीर्थ इलोरा की गफायें (नवीं पर जैनकला के अनेक अवशेष उपलब्ध हुए है जिन में शती) तीर्थङ्कर प्रतिमानों से परिपूर्ण है । गुहा संख्या ३० भगवान महावीर की भी प्रतिमाये है। उा में से एक में, जो छोटा कैलाश के नाम से जानी जाती है, महावीर पंचतीर्थी परिवर तोरण भाभण्डलादि प्रतिहार्य युक्त है। की बैठी हुई पाषाण मूर्तियाँ पदमासन एवं ध्यानमुद्रा में । दूसरी प्रतिमा के परिकर मे अष्टग्रह प्रतिमायें विद्यमान उत्कीर्ण हैं। पार्श्व में चावरयुक्त यक्ष-गंधर्व आदि की आकृतियां हैं। सिंहासनारूढ़ बैठे महावीर की मूर्ति के ऊर्ध्व भाग मैसूर के होयलेश्वर देवालय से दो फाग की दूरी में क्षत्र है। पर जैनों के तीन देवालय है, जिन में चौबीस तीर्थड्रो की प्रतिमायें भी अंकित है। प्राब स्टेशन से एक मील की दूरी __दूसरी गुफा में पद्मासनारूढ़ ध्यानमुद्रा में महावीर पर देलवाड़ा में पाँच जैन मन्दिर है जिनमे तीर्थङ्करों की की भनेक प्रतिमायें है ।। इन्द्रसभा नामक गुहा में सिंहा प्रतिमायें विद्यमान है । कुभारिया तीर्थ का कलापूर्ण महासनारूढ़ महावीर की बैठी मूर्तियाँ ध्यानावस्था में है। वीर मदिर कलात्मक दृष्टि से सुन्दर है।" इस मंदिर के जगन्नाथ नामक गुहा के दालान में महावीर की मूर्तियाँ छठे खण्ड में भगवान महावीर के जीवन का भाव उत्कीर्ण है जिस में महावीर के पिछले २७ भव, ५ कल्याणक और सातवीं-पाठवी-शती में निर्मित ऐहोल की एक गुहा मे जीवन की विशिष्ट घटनायें-जैसे चंदनबाला का प्रसंग, महावीर की प्राकृति भी दृष्टिगोचर होती है। सिह, कान में कीलें ठोकने और चण्डकौशिक सर्प के उपसर्ग मकर एवं द्वारपालो का खुदाव, उनका परिधान एलीफेंटा प्रादि की घटनायें-खदी है। एक छत के सातवे भाग में के समान उच्चकोटि का है। उड़ीसा के निकट उदयगिरि- भगवान महावीर देशना दे रहे है, गणधर बैठे हुए हैं, संघ खण्डगिरि की एक गृहा में चौबीस तीर्थङ्करों की प्रतिमायें के मनुष्य अलग-अलग वाहनों पर सवारी करके देशना उत्कीर्ण है। सुनने को पा रहे है, इस तरह का भाव उत्कीर्ण है। १३. महंत घासीराम स्मारक संग्रहालय, रायपुर, सूचीपत्र, १६. बंगाल के जैन पुरातत्व की शोध में पाँच दिन : श्री चित्रफलक क। भंवरलाल नाहटा, अनेकांत, जलाई-अगस्त १९७३ ।। १४. स्टेला केमरिच - इण्डियन स्कल्पचर इन दि फिल्डेल- १७. 'कुभारिया का महावीर मन्दिर : श्री हरिहर सिंह - - फिया म्यूजियम आफ आर्ट, पृ० १२। श्रमण, नव-दिसम्बर १६७४; कुभारिया तीर्थ का १५. मोसियां का प्राचीन महावीर मंदिर : श्री अगरचन्द । कलापूर्ण महावीर मंदिर : श्री अगरचन्द नाहटा श्रमण नाहटा, अनेकांत, मई १९७४ । अप्रैल १९७४ ।
SR No.538028
Book TitleAnekant 1975 Book 28 Ank Visheshank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1975
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size15 MB
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