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मग मोर जैन संस्कृति
१३६ का उपदेश उसी लोक भाषा मे होता था।
उनका विहार इस प्राच्यखंड में भी हुमा था। वह चौहोस श्रमण संस्कृति की विशेषताएँ :
तीर्थकरों में प्रथम थे। बाइसवें तीर्थकर अरिष्टनेमि का
निर्वाण सौराष्ट्र के उज्जयन्त (गिरनार) पर्वत पर हमा इस धार्मिक एवं सांस्कृतिक परम्परा के प्रस्तोता जितेन्द्रिय होने के कारण जिन या जिनेन्द्र, समस्त पूज्य
था। शेष वाइस तीर्थंकरो की निर्वाण-भूमियां विहार प्रांत गुणों से युक्त होने के कारण अर्हत्, दिगम्बर या दिग्वास
में ही है, जिनमे से १३वें तीर्थकर वासुपूज्य का निर्वाणरहने के कारण बातरशन मुनि, व्रतपूर्वक सदाचरण के
स्थल भागलपुर जिले का मन्दारगिरि (चम्पापुर) है और मार्ग पर ग्रारूढ होने के कारण व्रात्य, समस्त अन्तरग एवं
मन्तिम तीर्थकर वर्धमान महावीर का पटना जिले का बहिरंग से मुक्त होने के कारण निर्ग्रन्थ, पूर्ण समत्व के
पावापुर (मध्यमा पावा या अपावापुरी) है। शेष बोस साधक एवं उद्घोषक होने के कारण समण, स्वेच्छा एवं
तीर्थकरों का निर्वाण इसी प्रदेश के हजारीबाग जिले में श्रमपूर्वक तप, त्याग, सयम का मार्ग अपनाने के कारण
स्थित समेदाचल (समेद शिखर या पारसनाथ पर्वत) पर श्रमण, संसार को दु.खरूप जान कर और मान कर उससे
हुमा था। नौवे तीर्थकर पुष्पदन्त की जन्मभूमि काकन्दी
थी। कुछ विद्वान मगेर जिले के काकन नामक स्थान से पार होने के लिए धर्म रूपी तीर्थ का उद्घाटन करने के
उसका समीकरण करते है। दसवें तीर्थकर शीतलनाथ की कारण तीर्थकर कहलाते थे । अहिंसा पर आधारित यह परम्परा निवृति-प्रधान थी। मनुष्य-मनुष्य के बीच किसी
जन्मभूमि भदिलपुर या भद्रिकावती थी-कुछ विद्वान प्रकार का ऊंच-नीच मादि भेद-भाव इसे प्रभीष्ट नही था।
भद्दिय की पहिचान मुंगेर (मुद्गलगिरि) से करते हैं, सभी प्राणियो का हित सपादन इस सर्वोदय मार्ग का प्रयो.
और कुछ मद्रिलपुर की पहिचान हजारीबाग जिले के जन था । इसकी दृष्टि उदार, सहिष्णु और अनेकान्तिक ।
मदिया नामक ग्राम से करते है जो किसी समय मलय थी, कदाग्रह उससे दूर था। प्राज्ञा-प्रधानता की अपेक्षा
जनपद की राजधानी थी। काकन्दी पोर मदिलपुर की परीक्षा-प्रधानता पर वह बल देती थी। स्वपुरुषार्थ द्वारा
पहचान मिहार के बाहर अन्य प्रदेशों में भी की गयी है। परम प्राप्तव्य की प्राप्ति उसका लक्ष्य था। वह वेदो. बारहवं तीर्थकर वासुपूज्य की जन्मभूमि भागलपुर जिसे याज्ञिक हिसा और वैदिक कर्म-काण्ड की विरोधी थी। का चम्पापुर था । उन्नीसवें तीर्थकर मल्लिनाथ की तथा महाभारतोत्तर काल के श्रमण-धर्म-पुनरुत्थान मान्दोलन का २१व ताथकर नामनाथ का जन्म भूमि उत्तरी बिहार की प्रधान केन्द्र मगध रहा और तदनन्तर लगभग दो सहस्र मिथिला नगरी थी। बीसवें तीर्थकर मनिसुव्रत की जन्मवर्ष पर्यन्त इस प्रदेश को उसका प्रमुख गढ़ रहने का भूमि स्वय राजगृह नगरी थी और अन्तिम तीर्थकर महा. सौभाग्य प्राप्त रहा। अतएव कतिपय आधुनिक विद्वानों वीर का जन्म तो उत्तरी बिहार मे, विदेह देश एवं शक्ति ने उक्त श्रमण या जैन सस्कृति और उसके धर्म को मगध शाली वज्जि गणतन्त्र की राजधानी महानगरी वैशाली के संस्कृति और मागध धर्म नाम भी दिए है।
एक उपनगर (कुण्डलपुर, कुण्डग्राम, बसुकुण्ड या क्षत्रिय
कुण्ड) में हुआ था, किन्तु उन्हे केवलज्ञान की संप्राप्ति श्रमण परम्परा एवं मगध :
दक्षिणी बिहार मे ही ऋजुकूला नदी के तटवर्ती जम्भिकइस परम्परा के प्रथम प्रस्तोता प्रादिदेव ऋषभ थे, ग्राम के बाहर हई थी। उनकी प्रथम देशना और धर्मचक्र जो स्वयम्भू महादेव, ब्रह्मा और प्रजापति भी कहलाए। प्रवर्तन मगध की राजधानी राजगृह के विपुलाचल पर ऋग्वेद के कई मंत्रों में उनके प्रत्यक्ष एवं परोक्ष उल्लेख हना था और निर्वाण पटना जिले में स्थित पावापुर में है और प्रागेतिहासिक सिंधुघाटी सभ्यता के अवशेषो में हुआ माना जाता है। उनके इन्द्रभूति गौतम प्रावि ग्यारह उस युग में उनकी पूजा के प्रचलन के संकेत पाये जाते गणधर भी परम विद्वान एवं तेजस्वी ब्राह्मण ही थे। मगध है। उनका जन्म अयोध्या मे, केवलज्ञान प्रयाग मे अक्षय- नरेश बिम्बिसार श्रेणिक उनके श्रावक संघ का मुखिया वट के नीचे, और निर्वाण कैलाश पर्वत पर हुए थे, किंतु था, उसकी पट्टराणी चेलना उनके श्राविका संघ की