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________________ भनेकान्त गृहपतिवंशसरोक्हसहबारश्मिः सहनकूटयः। पाणपुरे व्यषितासीत भोमानिह देवपालकृति ।।" इस सहन्नकूट चैत्यालय को गृहपति वंश के श्री देवपाल ने बनवाया था। इनके ही वंशजों में से श्री गल्हण ने महार क्षेत्र में शांतिनाथ मन्दिर का तथा जगहण और उदयपद ने भ० शांतिनाथ की रमणीक मूर्ति का निर्माण कराया था (देखिये अनेकांत छोटेलाल स्मृति प्रक पृ.६३) चूंकि नीरज जी ने अपने लेख में उल्लेख किया है कि वाणपुर में सं० १.०२ का शिलालेख मिलता है अतः सभव है कि वाणपुर का सहनकट चैत्यालय सं १००२ के पास-पास ही देवपाल ने निर्मित कराया हो। अभी हाल ही, भारतीय ज्ञानपीठ ने जैन कला और स्थापत्य के चित्रों की प्रदर्शनी मुनि विद्यानन्द हाल दरयागंज, दिल्ली में लगाई थी। उसमें कभरिया, (महसाना) के सहस्रकूट चैत्यालय का चित्र देखने को मिला। इसमें पद्मासन श्वेताम्बर प्रतिमानों का समूह है । इसमें १७ पंक्तियां हैं। नीचे से प्रथम दो पंक्तियोंमें १५, १५ प्रतिमाएँ हैं । फिर माठ पंक्तियों में ८, प्रतिमाएं हैं। बीच में एक बड़ी प्रतिमा है, फिर दो पंक्तियों में १५, १५ प्रतिमाएं है इसके बाद १३ वीं पंक्ति, में १३, चौदहवीं में ११, पन्द्रहवीं में ,सोलहवीं में पौर सत्ररहवीं में ३ प्रतिमाएं हैं, जिनका कुल योग १६७ होता है। चारों दिशामों की १६७४४-६६८ प्रतिमाएं होती हैं। इस मूर्ति, संख्या पर 'श्रमण' अक्टूबर १९७४ में श्री अगरचन्द जी नाहटा का लेख पठनीय है कुंभरिया का नकशा नीचे प्रस्तुत है शिल्प सादृश्य एवं नकशे की डिजाइन से इसका मेल कुछ कुछ नरवर वाले सहस्रकट से मिलता जुलता सा है। अभी लगभग दो माह पूर्व श्री भगरचन्द नाहटा दिल्ली पधारे थे । 'सहस्रकूट' शिल्प के संबंध में उनसे चर्चा हुई थी। श्रमण' में भी उन्होंने लिखा है कि श्वेताम्बर माम्नाय में सहस्रकूट संबंधी कुछ साहित्य मिलता है, पर दिगम्बर माम्नाय में इस संबंध में कोई चित्र या साहित्य या कोई लिखित प्रमाण नहीं मिलता है। उन्होंने कई विद्वानों से परामर्श भी किया था, पर कोई संतोषजनक उत्तर न मिल सका। इतना तो निविवाद है कि दिगम्बर सहस्रकूटों में मूर्ति-संख्या १००८ सुनिश्चित ही है। इस १००८ संख्या का प्रतीक भले ही भगवान के १००८ शुभ लक्षण हों, सहस्रनाम हों या कोई और ही कारण हो, विद्वज्जन इस दिशा में शोध करें। पर सहस्रकूट जिनालय में प्रतिमाओं की संख्या सभी जगह १००८ ही पाई जाती है। पूजामों में भी ऐसा ही उल्लेख है। श्वेताम्बरीय सहस्रकूट में १०२४ प्रतिमामों का उल्लेख मिलता है। पर कहीं-कहीं इस संख्या में भी फेर-बदल मिलता है। इस पर श्री नाहटाजी ने अपने लेख में विस्तार से विवेचेन किया है। प्रस्तुत लेख में उन्हीं के समाधान हेतु एवं दिगम्बर सहस्रकूटों की चर्चा हेतु लिखा गया है। त्रुटियों के लिए विद्वत् जन समा करें। झांसी स्थित सहस्रकूट पर एक पूजा भी प्राप्त हुई है जो भब से मगभग ४०-५० वर्ष पूर्व स्व. श्री बसन्तलाल जी हकीम ने रची थी जो प्राये प्रस्तुत है। श्री नाहटा जी के मत से सहन्नकूट में १०२४ भिन्न-भिन्न तीर्थंकरों की मूर्तियां होती हैं, पर मेरे विचार से एक ही तीर्थकर की १००० प्रतिमाए होती हैं विद्वज्जन शोध करें। कुंभारिया (महसाना) स्थित सहनकट की रिवाहन
SR No.538027
Book TitleAnekant 1974 Book 27 Ank 01 to 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1974
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size6 MB
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