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नरवर की श्रेष्ठ कलाकृति "सहनकूट जिन बिम्ब" इसके अतिरिक्त, एक सहस्रकूट की रचना दिल्ली के १८१८ छोटी प्रतिमाएं तथा एक बड़ी प्रतिमा है सो दि. जैन नया मन्दिर, धर्मपुरा में विद्यमान है, जो ३ मार्च, . कुल ५५ हुई फिर माठ पंक्तियां २१, २१ प्रतिमानों वाली सन् १९६० मे धर्मपुरा के महिला-वर्ग ने अपने धन है जो १६८ हुई। वारहवीं पंक्ति में १७, तेरहवीं में ११ संग्रह से निर्मित कराया था। इसमें ला.हर सुखराय जी और चौदहवीं में केवल एक, इस तरह ५५+१६८+१७ का भी उल्लेख है जो इस मन्दिर के मूल सस्थापक थे। +११+२५२ कूल प्रतिमा एक तरफ हैं चारों तरफ यह रचना सफेद संगमर्मर की चोकोर बेदी के रूप में २५२४४%१.०८ सख्या बिलकुल सही है। इस का है इसमें सभी प्रतिमाएं खड्गासन है । इसमें प्रत्येक दिशा नक्शा निम्न प्रकार अवलोकनीय है :में १४-१४ पंक्तियां है । नीचे से प्रथम तीन पंक्तियों में
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श्री दि० जैन नया मन्दिर धर्मपुरा दिल्ली स्थित सहस्रकट को डिजाइन
उपर्युक्त धर्मपुरा का सहस्रकूट अत्यधिक माधुनिक लिखा था। उसमें सहस्रकूट चैत्यालयकी चर्चा की गई है, पर है। प्रतः ऐतिहासिक दृष्टि से आज उसका भले ही विशेष वहां के सहस्रकूट मे १००८ प्रतिमानों का उत्कीर्णन कैसामहत्व न हो, पर मागे चलकर सहस्रकूट रचना की कैसा हुआ है इस संबंध में कोई चर्चा नहीं की। पाशा है शृखला में यह अति महत्वपूर्ण कड़ी सिद्ध होगा। कि भविष्य में नीरज जी इस दिशा में कुछ प्रयत्न करेंगे।
देवमढ़ (ललितपुर के पास) में भी पत्थर का एक इसकी रचना सं० १२३७ के पहले हुई थी, क्योंकि प्रहार विशाल प्राचीन सहस्रकट चैत्यालय है जो नं.५ का मन्दिर क्षत्र स्थित भ. शान्तिनाथ के मूति-लेख में बाणपुर के कहलाता है इसका निर्माण काल सं० ११२० हैं। इसके सहस्रकूट चैत्यालय का उल्लेख है जो निम्न प्रकार है। अतिरिक्त श्री नीरज जैन, सतना ने अनेकांत के १६वें वर्ष यह मूर्ति-लेख स० १२३७ का है प्रतः बाणपुर का सहस्रके ५१ पृष्ठ पर 'वानपुरका चतुर्मुख जिनालय' शीर्षक लेख कुट चैत्यालय नि.सन्देह १२३७ से पूर्व की रचमा है।