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वर्ष
२७ ०३
अनेकान्त
धनद नामक एक ग्वाला ने एक दिन सरोवर से एक हजार पंखड़ियो का बड़ा सुन्दर कमल तोड़कर अपने स्वामी को भेंट करना चाहा उसने कहा कि सर्वश्रेष्ठ पुरुष को भेंट करो। उसने राजा को भेंट किया। राजा ने कहा कि मुझसे श्रेष्ठ दिगम्बर मुनि है । वह मुनिराज को भेंट करने लगा । उन्होंने कहा कि सर्वश्रेष्ठ तीर्थकर भगबान होते है। उसने वह फुल बारहवें तीर्थंकर वासुपूज्य को भेंट किया जिससे उसे इतने विशेष पुण्य का बहुआ कि वह पार्श्वनाथ तीर्थङ्कर के तीर्थंकाल मे चम्पापुरी देश का बड़ा प्रतापी और पराक्रमी जैन सम्राट् कुरकुण्ड हुआ, जिसने अपनी राजधानी चम्पापुरी में बड़ा विशाल पौर दर्शनीय मन्दिर वासुपूज्य भगवान का बनवाया ।
महाराजा बसुधर्म के राज्य काल मे चम्पापुरी मे धन कुबेर सेठ, भट्ट सम्पत्ति का स्वामी त्रिपदत्त रहता था। उसकी पुत्री धनन्तवती इतनी सुन्दर थी कि कुडल मंडित नामक विद्याधर राजा ने उसे हर लिया तथा उत्तम भोगों और सुखों का लोभ तथा मरण का भय देकर उसे अपनी पटरानी बनाना चाहा। अनन्तवती के शील प्रभाव से बन देव ने उसकी सहायता की, तो मिल्लराज नामक भीलों के सरदार ने उसे अपनी रानी बनाना चाहा, परन्तु वह शीत से न हिंदी और समस्त जीवन बाल ब्रह्मचारिणी रही। वह संसारी भोगों से उदासीन, सम्यग्दर्शन के निका क्षित श्रंग में सुप्रसिद्ध महिला रत्न चम्पापूरी की निवासी थी ।
गौरी शंकर बाजार, सहारनपुर
जन्तर रटता रहा जिसके प्रभाव से मर कर इसी चम्पा
चम्पापुरी के
पुरी में सम्राट् पवाडी वाहन के राज्य काल में वह उसका नाम सेठ के यहाँ सुदर्शन नामक पुत्र हुम्रा, जो इतना धर्मात्मा था कि गृहस्थ काल में भी भ्रष्टमी तथा चतुर्दशी की रात्रि को श्मशान भूमि में ध्यान लगाता था और इतना सुन्दर था कि चम्पापुरी की महारानी भी उस पर मोहित हो गई थी, परन्तु वह शील से नही डिगा । नाराज होकर रानी ने उस पर झूठा कलंक लगा दिया और राजा ने उसे सूली का दण्ड दिया, परन्तु सुदर्शन के शील के प्रभाव से सूली का सिंहासन इसी चम्पापुरी नगरी में बन गया।
घरवपति सेठ भानदस थे जिनकी सुमना था। इनके पास नामक पुष था जो सोलह करोड़ दीनारों से विदेशों तक में व्यापार करता था । उसने विदेशों तक में जैन धर्म का प्रचार किया।
चम्पापुरी की पवित्र भूमि में काम भावना नष्ट करने करने की इतनी शक्ति है कि इसने इस युग में प्रथम बाल ब्रह्मचारी तीर्थंकर वासुपूज्य को उत्पन्न किया। इसके प्रभाव से धनन्तवती जैसी उत्तम बाल ब्रह्मचारिणियां व सेठ सुदर्शन जैसे ब्रह्मचारी का जन्म चम्पापुरी में हुआ जिनके शील से प्रभावित होकर स्वर्ग के देव उनकी बन्दना करने के लिए चम्पापुरी प्राते थे ।
समस्त संसार में केवल चम्पापुरी ही एक ऐसी पवित्र और महान नगरी है कि जहाँ वासुपूज्य तीर्थंकर के पांचों कल्यानक हुए है। किसी दूसरे तीर्थकर के पाँचों कल्याणक माज तक एक नगरी में नहीं हुए ।
समस्त संसार में केवल चम्पापुरी ही एक ऐसी धार्मिक नगरी है, जहाँ समस्त २४ तीर्थंकरों के समवशरण धाये। महातपस्वी मुनिराज धर्मघोष ने चम्पापुरी में केवलज्ञान प्राप्त किया।
प्राह्निका पर्व में स्वर्ग के देव और विद्याधर, हरिव पुराण, सर्गे २२, इलोक ३ के अनुसार, तोर्थंकर वायुपूज्य की पूजा तथा गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण, कल्याणक मनाने के लिए चम्पापुरी माया करते थे !
इस प्रकार, हम देखते हैं कि इस युग के शुरू से ही चम्पापुरी जैन धर्म का अत्यन्त प्रभावशाली केन्द्र रहा है जिसका वर्णन यति वृषभ ने तिलोमपणत्ति में, प्राचार्य गुणभद्र ने उत्तर पुराण में प्राचार्य जिनसेन ने हरिवंश पुराण में तथा तदुपरात पडित सुमेरचन्द दिवाकर ने अपनी रचना "निर्वाण भूमि चम्पापुरी" में किया। ऐसी महान धार्मिक, ऐतिहासिक नगरी का कथन कोई पानी कैसे कर सकता है। यह गुणीजनों के अनुग्रह का ही प्रताप है कि हमें ऐसी पवित्र निर्माण भूमि चम्पापुरी का वर्णन करने का शुभ अवसर प्राप्त हुआ ।
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