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अनेकान्त
श्रमिकों द्वारा वृक्ष लगाते समय प्राप्त हुई, वे भी बहुत ही होता रहा। यहां के मोसवाल पारख-गोत्रीय देकोशाह पुरानी एवं खंडित हालत में हैं। यह स्थान पूना के मूल के पुत्र ने वि० सं० १५२१ मे दीक्षा ग्रहण की जो प्रागे मन्दिरों से करीबन एक फलोग दूर पहाड़ी पर स्थित है। चलकर श्री प्राचार्य जिनसमद्रसूरि के नाम से लोकप्रिय इस पहाड़ी के भग्नावशेषों एवं अन्य स्थलों का अवलोकन हए। करने पर ऐसा अनुभव होता है कि यहां पर विशाल एवं
वि. सं. की १७वी शताब्दी तक यही स्थान बाह्ड़मेर शिल्पकलाकृतियों का अत्यन्त ही सुन्दर जैन मन्दिर था।
के नाम से जाना जाता रहा। मौरंगजेब के समय वि. यहाँ के अवशेषों को देखनेसे मन्दिर का प्रवेश-द्वार-शृगार
सं० १७४४ के लगभग यहाँ पर वीर दुर्गादास राठौड़ का चौकी, रंग-मंडप, सभा-मंडप, मल गम्भारा, परिक्रमास्थल,
निवास रहा। राठौड़ दुर्गादास ने बादशाह औरंगजेब के मन्दिर के चारों ओर बनी प्राचीरें और नीचे उतरने
पौत्र, अकबर के पुत्र और पुत्री बुलन्द अख्तर और एवं चढ़ने के लिए पहाड़ी के दोनों तरफ विशाल पक्की
सफियायुनिसा को यहीं जूना के दुर्ग में सुरक्षित रखा पाषाणों की पगडण्डी माज भी तितर-बितर अवस्था में
था। जूना का प्राचीन दुर्ग परमारों और चौहानों की देन विद्यमान है।
है। "ऐतिहासिक घटना-चक्रों के बीच इस पर छोटेजैन धर्मावलम्बियों का जूना (बाहड़मेर) तीर्थस्थल
बड़े माक्रमण बराबर होते रहे जिसके कारण इसका पतन रहा है। यहां कई प्राचार्य महात्मानों ने पाकर चातुर्मास
होना प्रारम्भ हो गया और धीरे-धीरे यहाँ के लोग आसकिये और कई जैन धार्मिक ग्रन्थों की रचना भी की।
पास के स्थानो पर जाकर बसने लगे। वि० सं० १६४० श्री प्राचार्य कुशलसूरि ने वि० सं० १३८२ में साचोर से
तक इस नगर के प्राबाद होने के कारण वर्तमान जना पाकर बाहड़मेरू में चातुर्मास किया। श्री प्राचार्य पम
ही बाहड़मेर कहा जाता था। वि० सं० १६०८ में रावत सूरि बाहड़मेर आये जिनका स्वागत तत्कालीन चौहान ।
भीमजी ने स्वतन्त्र रूप से बाड़मेर बसाया जो प्राजकल राणा श्री शिखरसिंह, श्रावक साह, परतापसिंह, साह
राजस्थान प्रदेश का जिला मुख्यावास है। सातसिंह भादि ने किया। इस प्रकार, जैन साधु-सन्तों, प्राचार्य-महात्मानों का इस नगरी में बराबर प्रागमन
DD जूनी चौकी का बास बाड़मेर (राजस्थान)
भावश्यक सूचना अनेकान्त "महावीर निर्वाण विशेषांक' मागामी दो अंक (फरवरी १९७५ अंक एवं मई १९७५ प्रक) सम्मिलित रूप से महावीर निर्वाण विशेषांक के रूप में योजित हैं एवं शीघ्र ही प्रकाशित होंगे।
महावीर निर्वाण विशेषांक के लिए जिन विद्वानों एवं मनीषियों ने अपने लेख एवं रचनाएं पभी तक नहीं भेजी हैं उनसे सानुरोध निवेदन है कि वे शीघ्र ही भेजने की कृपा करें।
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