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________________ प्राचीन ऐतिहासिक नगरी : चूना (बाहड़मेर) १३०१ माघ सुदि १०के दिन पालनपुर में प्रतिष्ठा- प्रमोदार्य पाश्वंतिचत ठिकादयंकारितं ॥पाचंद्रवर्क नंद. महोत्सव प्रायोजित हुपा और सेठ सहजाराम के पुत्र तात ॥ शुभमस्तु । बच्छड ने बाहड़मेर पाकर बड़े उत्सव के साथ दो स्वर्ष ४ -"संवत् १६६३ वर्षमय (मार्ग०) सुब बिय कलशों की प्रतिष्ठा करवा कर श्री आदिनाथ मन्दिर के (ख) रतरगच्छ ५० सीरराजमनि पं० गिरराजमुनि पं. शिखर पर चढ़ाये । वि० सं० १३१२ में श्री जिनेश्वर सूरि हिरांण (नं.) वपमुखसाधुसहितयात्रा कृता संतमानके शिष्य चण्डतिलक ने "अभयकुमार चरित्र" महाकाव्य पाकारि (?)॥" यहां भारम्भ किया। प्राचार्य श्री जिनप्रबोधसूरि ने यहा ___ जूना के खण्डहरो की बस्ती में भाज पुरातत्व एवं वि० सं० १३३५ मार्ग शीर्ष बदी चतुर्थी के दिन पद्यवीरि, शिल्पकलाकृतियों की दृष्टि के लिए श्री आदिनाथ भगवान सुधाकलश, तिलककीति, लक्ष्मीकलश, नेमिप्रभू, हेमतिलक का जैन मन्दिर ही अपने प्राचीन पाषणों को लड़खड़ाती और नेमोतिलक की बड़े समारोह के साथ दीक्षित किया। जूना (बाहड़मेर) के वर्तमान खण्डहरो के रूप में हालत में सजोये हुए है। मदिर के मूलगम्भारे का विशाल शिखर सदियो पहले ही धरातल पर पा चुका है। विद्यमान जैन मन्दिर में आज भी वि० स० १३५२ का इसके पाश्वं भाग के गोखों पर क्षतिग्रस्त कई प्रतिमाएँ एक, १३५६ के दो एवं २६६३ का एक, कुल मिलाकर चार शिलालेख विद्यमान है जो इस प्रकार है बनी हुई है। गूडमण्डप का प्रागे का भाग गिर चुका है। १-ॐ॥संवत १३५२ वैशाख मधि४ श्री बाहर सभा एव भूगार मडल के अनेको खम्भे अब भी विद्यमान है। कई खम्भों पर उक्त शिलालेख दृष्टिगोचर हो रहे मेरी महाराजकुल श्रीसामंतसिंहदेवकल्याण राजे तन्नियुक्तश्री २ करणो मं० बोरा सेल [0] बेला तुल [.] भाँ है। खम्भों के निचले भाग पर कुछ सुन्दर महिलागिगनप्रभृतयो धर्माक्षराणि प्रयच्छति यया । श्री प्रादि प्राकृतियों में प्रतिमाएं बनी हुई है। खम्भो के ऊपरी नाथमध्ये सतिष्ठामानश्रीविन्धमर्द क्षेत्रपालवीचड- भाग को शिल्पकला की दृष्टि से सजाने-सवारने का शिल्पकार ने अथक प्रयल किया है। स्थानीय विषैले राजदेवपो उभयमार्गीवसमायतसार्थ उष्ट्र १० वृष २० जन्तुमो की प्राकृतिया इन खम्भों पर बनी पूई है । खम्भों उभयादपि ध्वं सार्थ प्रति द्वयोदेवयोः पाइलापदे धीमप्रिय भौर मन्दिर की छतो के बीच बाले पाषाणों पर कुछ देवीवश विशोपका प्रबोवन महोतव्याः प्रसौं लागा महाजनेन । देवतापो की पाकृतियां भी दिखाई देती है। मन्दिर के म (भा) निता ॥ यथोक्त' बहुभिवसुधा भुक्ता राजभिः ऊपरी गोलाकार गुम्बज के प्रांतरिक भाग की शिल्पकला सगरादिभिः । यस्य पस्य सदा भूमिः तस्य तस्य तदा प्रत्यन्त ही सूक्ष्म एवं सुन्दर बनी हुई है जो प्राब के फलं ॥१॥ देलवाड़ा एव राणकपुर के जैन मन्दिरों की छतों से कुछ २--ॐ ॥ संवत् १३५६ कातिवयां श्री युगादि मिलती-जुलती है। कुछ गुम्बज गिराये जा चुके है और देवविधिवत्यै श्रोजिनप्रबोधसूरिपट्टालंकारश्रीजिनचंद्रसूरि कुछ गिरने की स्थिति में है। इन गुम्बजों के पास के सुरूपदेशेन सा० गाल्हणसुत सा. नागपालश्रावकेण सा. पाषाणो में बनी लक्ष्मी, सरस्वती एवं अन्य देवी प्रतिमाएं गहणाविपुत्रपरिवृतेन मध्यचतुहिकका स्व० पुत्र सा. अत्यन्त ही सुन्दर बनी हुई है। इस मन्दिर के अतिरिक्त मूलदेवयोर्थ ससंघप्रमोदार्य कारिता । प्राचंद्रवर्क दो अन्य मन्दिर भी विद्यमान है, लेकिन उसके पार्श्व भाग नंदतात् ।। शुभमस्तु ।" के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है । पास में विखरे खंडहर ३-ॐ ॥ संवत् १३५६ कातिश्यां श्रीयुगाविवेव. इनकी प्राचीनता एवं विशालता का अवश्य ही परिचय दे विधिपत्ये श्री जिनप्रबोजरिपट्टालंकारधीजिनचंद्रसरि. पुदुरूपदेशेन सा०पाहणसुत सा. राजदेवसत्यत्पुत्रेण सा० रहे है। लखणधावकेण सा. मोकलसिंह तिहूणसिंहपरिवृतेन १० दिसम्बर, १९७० को जो प्राचीन एव धार्मिक वामातः सा पउमिणपिसुश्रावकायाः अयोथं सर्वसंध. जैन मूर्तियाँ जना की एक पहाड़ी पर बन Fram
SR No.538027
Book TitleAnekant 1974 Book 27 Ank 01 to 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1974
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size6 MB
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