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________________ राजुल कुछ चीत्कार कर रहे थे। इस हृदयकंपी चीत्कार को उनकी कोमल पगलियों को बोध रहे थे। किन्तु उनको सुन, कुमार नेमिनाथ का कोमल करुण हृदय विहवल हो चुभन का भान उन्हें न था। रक्त रिसने लगा था, किन्तु उठा। वे अपने कुतूहल को रोक न पाए। उन्होंने सारथी ध्यान उधर भी न था। जब संसार के भाकर्षणों से नाता से पूछा ! सारथी, पशुओं को क्यों घेरा गया है ? टूट जाता है तब बाह्य जगत के सुख दुख प्रभावित नहीं सारथी ने नम्रता पूर्वक कहा-देव, आपके पाणिग्रहण कर पाते। तब मानव अपने महान लक्ष्य की ओर दत्त के आनन्द में प्रायोजित भोज तथा बारात के स्वागत चित्त बढ़ा चला जाता है। हृदय में एक दिव्य ज्योति भोज के हेतु इन्हें एकत्रित किया गया है। इनके मांस से उद्भासित होती है जिसके पावन प्रकाश में वह शाश्वत विविध प्रकार के स्वादिष्ट व्यञ्जन बनाए जाएगे। प्रात्म सुख की अनुभूति का अनुभव करता है। नेमि प्रभु नेमिनाथ के हृदय में अहिंसा बीज रूप में विद्यमान थी। गिरिनार के सर्वोच्च शिखर पर पहुंच गये। वहां उन्होंने साधारण सी यह घटना कुंवर नेमिनाथ की जीवन सीपी शेष वस्त्रो को भी एक ओर रख दिया और प्राकृतिक मे स्वाति-बिन्दु सी हलक गई । अहिंसा का बीज दिगम्बर वेश में आत्मचिन्तन मे निमग्न हो गए। अंकुरित हो उठा । उन्होंने कुछ स्वगत, कुछ प्रगट रूप मे हाथ पैरो में मेहदी रचाए, मंगल परिधानों में सजी एक दीर्घ निःश्वास छोड़ते हुए कहा-मेरे पाणिग्रहण के संवरी तथा प्राभूषणोसे अलंकृत वधू राजुलने जब यह सुना निमित्त इतने प्राणियों का बध, एक मानव के विवाह कि उसके भावी पति नेमि कुमार विरक्त होकर गिरिनार समारम्भ के उत्साह में इतने निरीह प्राणियो का बलिदान, चले गए है तो क्षण भर को वह निस्तब्ध रह गई। उसे क्या इन पशुओं को सुख दुःख की अनुभूति नहीं होती। लगा मानो पुरुष के अहम ने नारी के पार्कषणों को क्या मूकता ही इनका अपराध है । म ससार माग में चुनौती दी है। उसके मन ने कहा यदि वे मेरा सजाप्रवेश नही करूगा ? सारथी रथ यही रोक दो? सवरा अलंकृत रूप तथा लावण्ययुक्त देह देख भर लेते, ___सारथी ने रथ रोक दिया। नेमि कुमार ने विवाह तो क्या वह उसका मोह छोड़ सकते थे? के सूचक सभी वस्त्राभरण उतार कर रख दिए और पैदल इस विचार के पाते ही राजुल नेमिनाथ को गिरनार चल पड़े जनागढ़ की विशद पर्वत शृखला की ओर। रथ के उच्चतम शिखर से फिर भूमि तल पर लाने विचार के रुकते ही 'उग्रसेन' मत्रीगण तथा सम्मानितजन बहा करने लगी। कुछ क्षणो बाद वह उठ खड़ी हुई। इसी प्रागए सवने नेमि प्रमु की अोर साश्चर्य देखा उन्होने उन्हें समय उसके माता पिता वहां आ पहुचे । माँ ने उसे गोद रोकने के प्रयत्न किए। नेमि प्रभु एक क्षण रुके और मे भर कर कहा-बेटी राजुल हृदय को दुखी मत करो। उपस्थित जन-समूह को सम्बोधित कर बोले जो शाश्वत तुम्हारा विवाह शीघ्र ही दूसरे सुयोग्य राजपुत्र के साथ सुख के मार्ग पर चल पड़ा हो, उसे कोई शक्ति नही रोक होगा। राजुल ने कहा-मां, आत्म संकल्प से बरण किया सकती। उनकी वाणी में अपार ऊजो थी । अखि तेजस्वी हुआ पुरुष ही नारी का एकमेव पाराध्य होता है। मैंने थीं। सब चित्र लिखित से देख रहे थे और नेमिप्रभु आत्म सकल्प पूर्वक नेमि कुमार का वरण किया है। अब गिरिनार पर्वत की ओर वेग से पांव उठा रहे थे। इस जन्म में किसी और पुरुष के साथ मेरा विवाह न हो जूनागढ़ से गिरिनार तक २४ मील का मार्ग तय सकेगा। मैं अन्तःप्रेरणा से गिरिनार जा रही हैं। यदि करना था। मार्ग अत्यन्त कठिन, कंटकाकीर्ण, पथरीला नारी के आर्कषण की जीत होती है, तो प्रभु गिरिनार के । पथ पर नेमि प्रभु ऐसे सर्वोच्च शिखर से पृथ्वी तल पर उतर पायेगे, और यदि बढ़ रहे थे जैसे नित्य के अभ्यस्त हों रथ से नीचे उतर कर पुरुष की संकल्प शक्ति विजयिनी होती है, तो मै पृथ्वी जिनके सुकुमार चरणो ने कभी भूमि का स्पर्श तक नही तल से गिरिनार के उच्चतम शिखर पर पहुंच जाऊंगी। किया था वे प्रसन्नवदन, उल्लसित चित्त उस दुर्गम वन्य पथ इतना कह कर वह चल पड़ी। मीलों मार्ग तय कर पर द्रुत गति से चले जा रहे थे, काटे और नुकीले पत्थर वह गिरिनार पहुंच गई। देखा उसके पति, उसके पारा ध्य
SR No.538027
Book TitleAnekant 1974 Book 27 Ank 01 to 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1974
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size6 MB
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