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वर्धमान पुराण के सोलहवें अधिकार पर विचार
- यशवन्त कुमार मलैया
खटौरा वासी नवलसाह चदोरिया ने विक्रम सं० जातियों में जो वैष्णव ह, उन्हें ब्राह्मण उच्च वैश्य मानकर १८२५ में श्री वर्धमानपुराण की रचना की थी। उन्होने उपवीत देते है। वैसे भी वैदिक प्राचार मे यज्ञोपवीत इसके सोलहवें अधिकार मे आत्म-परिचय लिखा है जिसमे पहनने आदि को छोड़कर वैश्यों व मच्छूद्रों के अधिकार प्रसङ्गतः कुछ जाति-विषयक चर्चा की है। यह कुछ में विशेष अन्तर नही है'। दृष्टियों से महत्वपूर्ण है। एक तो विवरण क्रमबद्ध रूप से कवि ने ८४ वैश्य जातियों गिनाई है। ८४ नामों के रखने का प्रयास किया गया है, दूसरे कुछ ऐसे तथ्यो सकलन के पीछे ८४ अक का मोह ही है। ८४ वैश्य
और मान्यतामों का उल्लेख है जिनका कही अन्यत्र उल्लेख जातियों की अनेक नामावलिया मिलती है। अठारहवी नहीं है। प्रस्तुत लेख मे इस विषयवस्तु का तुलनात्मक शताब्दी की 'फूलमाल पच्चीसी' में ८४ जन जातिया विश्लेषण करने का प्रयास किया जा रहा है।
गिनाई गई है । टाड ने ८४ वणिक् जातियों की नामावर्धमानपुराण की जो हस्तलिखित प्रतिया उपलब्ध वली दी है। 'राजस्थानी जातियो की खोज' में ८४ वैश्य है, उनके पाठों में कही कही अंतर है। ऐसा प्रतीत होता है जातियों की एक अन्य नामावली दी है। कभी-कभी कभी प्रतिलिपिकारो ने यहा-वहा सुधार करने का प्रयास ब्राह्मणों में गौड़ों और द्रविणों मे कुल मिलाकर ८४ किया होगा। मुद्रित ग्रथ शुद्धतर प्रति पर आधारित ब्राह्मण जातियाँ कही जाती है, कभी कहा जाता है प्रतीत होता है कारण उसमे उपलब्ध पाठातर स्वाभाविक गुर्जर ब्राह्मणों और गूर्जर बनियों के ही ८४ भेद है।
और ग्रंथ की भाषा के साथ एकरस लगते है। खडेलवाल जैनों के और खण्डेलवाल ब्राह्मणो के ८४ ही
षोडश अधिकार मे कवि ने अपने आत्मपरिचय मे गोत्र कहे जाते हैं। क्रमबद्ध रूप से अपना वर्ण, अपने वैश्य वर्ण की चौरासी
वैश्य जातियों के ८४ नामों की अलग-अलग सूचियो जातिया, स्वजाति के तीनों भेद, फिर गोलापूर्व जाति के
में कुछ नाम आपस में मिलते है, कुछ नही मिलते । टाड भद्रावन 'बैंक', अपने 'बैक' के चार 'खेरे, और फिर निज
ने एक जैन यति का उल्लेख किया है जो वणिक् जाति कूल के इतिहास का स्वयं तक वर्णन किया है।
की सूची मग्रह कर रहे थे । लगभग १८०० नामो के कवि ने अपना वर्ण वैश्य और फिर वैश्यों मे
एकत्र करने के बाद उन्होंने एक अन्य यति से १५० अन्य चौरासी जातियां लिखी हैं। यहा पर यह बात ध्यान
नामों की सूची पाई, जिससे उन्होने असंभव मानकर यह करने की है कि वणिक् और वैश्य शब्द शास्त्रीय दृष्टि
काम स्थगित कर दिया । टाड की सूची में राजस्थान से पर्यायवाची नही है। इनका समतुल्य प्रयोग नही किया
वाली जातियाँ ही है। वर्धमान पुराण की सूची में कुछ जा सकता। फिर भी उत्तर भारत की समस्त जैन
बँदेलखण्ड की जातियाँ भी है। जातियां वैश्य ही है (सभवतः कुछ अपवादो को छोड़ कर)। दक्षिण में वैश्यों के अलावा ब्राह्मण व शूद्र वर्ण
नवलशाह चदेरिया ने ८४ नामो को अपनी जानके भी जैन है"२ । प्रोसवाल, अग्रवाल, श्रीमाल आदि कारी के अाधार पर तीन भागो मे बॉटा है। पहले साढ़े
बारह अर्थात् तेरह प्रसिद्ध जैन जातियाँ गिनाई गयी है। १. हिंदी विश्वकोष, १९२३ ई०, भाग ६, पृ० ६०१ २. Tne Gazetter of India, Vol. 1, 1965, p. ३. Ghurye G.S., Caste and Race in India, 541.
1932, p. 86.