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५६, वर्ष २७, कि० २
अनेकान्त हस्ति अंकित है। मूर्ति में अंकित सिंह के कारण यह पीट पर वानर अकित हैं। दोनों के साथ उनके यक्ष एवं प्रतिमा महावीर की ज्ञात होती है ।
यक्षी क्रमशः महायक्ष एवं रीहिणी तथा त्रिमुख एवं प्रज्ञप्ति ३. तीथंकरों की संयुक्त प्रतिमायें । है। चौकी पर सिंहो के जोड़े एवं धर्मचक्र है। कलचुरिकला मे तीर्थकरों की सयुक्त प्रतिमाये श्रासन
ब-शासन देवियाँ एवं स्थानक दोनों मुद्राओं में प्राप्त हुई है। इनमे स्थानक कलचुरि कला मे जैन शासन देवियो की प्रतिमाये सयुक्त प्रतिमायें अधिक है। बाईसवे तीर्थकर नेमिनाथ प्रासन एव स्थानक मुद्राओं में प्राप्त हुई हैं । इसके अतिकी गोमेध एवं अविका सहित प्रासन प्रतिमा धुबेला रिक्त इनकी संयुक्त प्रतिमायें भी प्राप्त हुई है । प्रासन संग्रहालय मे संरक्षित है। तीर्थकर नेमिनाथ की प्रतिमा प्रतिमाओं मे अम्बिका एवं चक्रेश्वरी की प्रतिमायें प्रमुख दोनों की अपेक्षा लघु है। नेमिनाथ दोनों के मध्य ध्या- है। इनके अतिरिक्त सोहागपुर से कुछ अन्य शासन देवियो नस्थ बैठे है। उनके नीचे यक्ष गोमेध एवं यक्षी अम्बिका की मूर्तियां प्राप्त हुई है जिनकी उचित लाछन क अभाव है । गोमेष दाहिने और अम्बिका बायें ललितासन मुद्रा मे में समीकरण संभव नहीं है। बैठे है। द्विभुजी गोमेघ के वामहस्त में पद्म एवं अबिका कारीतलाई से प्राप्त सफेद छीटेदार लाल बलुमा के वाम हस्त में एक शिशु है। गोमेध के दाहिने पैर के पाषाण निर्मित पाम्रादेवी की एक प्रतिमा प्राप्त हुई है। निकट भी दोनों ओर दो-दो पूजक है।
इस प्रतिमा में वाईसवें जैन तीर्थङ्कर नेमिनाथ की शासन ___कलचुरिकालीन तीर्थकरो की स्थानक मयुन मूर्तिया, देवी अंबिका ललितासन में सिंहारूढ है, जो उनका वाहन प्रासन मूर्तियो की तुलना में ज्यादा है। संयुक्त स्थानक है। द्विभजी यक्षी के दक्षिण कर मे प्रामलुबि एव वाम मूर्तियो मे - ऋषभनाथ एव अजितनाथ, अजितनाथ एव कर से अपने कनिष्ठ पूत्र प्रियशंकर को सम्हाले है। संभवनाथ, पुष्पदंत एव शीतलनाथ, धर्मनाथ एव शाति- प्रियशकर उसकी गोद में बैठा है। ज्येष्ठ पुत्र शुभकर नाथ, मल्लिनाथ एवं मुनिसुव्रतनाथ तथा पाश्वनाथ एव अपनी माता के दक्षिण पाद के निकट बैठा है। अम्बिका नेमिनाथ की मूर्तिया है। इनमें से अधिकाग द्विमुनिकाये का चेहरा मुस्कराता हआ है। मस्तक के ऊपर स्थित कारीतलाई से प्राप्त हुई है।
प्राभ्रवृक्ष वाला भाग खंडित है। अम्बिका का केशविन्याम कारीतलाई से प्राप्त लालबनूया पत्थर गे निमित
मनोहर है। अग पर यथोचित प्राभपण है। यक्षी के दोनो ४' ७" आकार की अजितनाथ एवं सभवनाथ की द्वि
पोर एक-एक परिचारिका खड़ी है। दक्षिण पार्श्व की मूतिका प्राप्त हुई है जो सम्प्रति रायपुर संग्रहालय मे है।
परिचारिका अपने वाम कर से अधोवस्त्र को सम्हाले हये
. १०वी शती मे निर्मित द्वितीय जैन तीर्थकर अजिननाथ है तथा दक्षिण कर मे पद्म है।
है तथा दक्षिण कर म पद्म एवं तृतीय जैन तीर्थकर सभवनाथ की हुम द्विमुनिका में स्थानक शासन देवियो मे मे मात्र अबिका वी दोनों तीर्थकर कायोत्सर्ग प्रासन में खडे है। तीर्थडरी प्रतिमा ही प्राप्त हुई है। कारीतलाई से प्राप्त ३'१" के हाथ एव मस्तक खडित है। दोनो के मस्तक के पीछे आकार की इस प्रतिमा मे देवी अम्विका पाम्रवृक्ष के तेजोमण्डल, एक-एक छत्र, एक-एक दूदभिक, गजा के नीचे एक सादी चौकी पर त्रिभंगी मद्रा में खडी है। दोनो युगल और पुष्प मालाये लिये हये विद्याधर अकित है। पुत्रो-प्रियंकर एवं शुभंकर की स्थिति उपरिवणित उनके अलग-अलग परिचारक के रूप में सौधर्म एवं ईशान प्रतिमा के सदृश्य ही है । यक्षी के तन पर विविध प्राभस्वर्ग के इन्द्र चावर लिये हये खडे है। तीर्थरो के षण है। चरणो के निकट श्रद्धालु भक्त जन उनकी पूजा करते हए आम्रवृक्ष पर बाईसवें जैन तीर्थड्डर नेमिनाथ की दिखलाये गये है।
छोटी सी पद्मासन प्रतिमा है। वक्ष के दोनो मोर खड़ी दोनों तीर्थकर अलग-अलग पादपीठ पर खडे है। एक-एक विद्याधरी पुष्पवृष्टि करती दिखाई गई है। अजितनाथ के पादपीठ पर हस्ति एवं संभवनाथ के पाद- अम्विका की पूजक एक स्त्री उसके दायें मोर है और